ऐसे थे मनमोहन सिंह

By Shobhna Jain | Posted on 27th Dec 2024 | राजनीति
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नई दिल्ली,27 दिसंबर ( वीएनआई) भारत के पूर्व प्रधानमंत्री  तथा दिवंगत राजनेता मनमोहन सिंह  की दिली तमन्ना थी कि वे पाकिस्तान में अपने पुरखों के गॉव जायें लेकिन वे वहा जा कर अपना पैदाईस वाले गॉव के घर नहीं बल्कि अपने गॉव के उस स्कूल में जाना चाहते थे जहा  कि वो कक्षा चार तक पढे थे. कॉग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने पूर्व प्रधान मंत्री के साथ अपनी यादें शेयर करते हुये यह बात कही. राजीव  शुक्ला ने  बताया कि  कैसे एक शाम उदास आवाज मे सिंह ने उनसे अपने मन की बात कही तो उन्होंने उनसे पूछा कि क्या वे पाकिस्तान मे अपने जन्म वाले गॉव को देखना चाहते थे हैं तो डॉ सिंह ने कहा कि वे अपने गॉव का वह स्कूल जाना चाहते हैं जहा वह ्कक्षा चार तक पढे थे.

ऐसा था शिक्षा के प्रति उनका समर्पण, शायद इसी लिये उन को अपनी श्रद्धाजंली देते हुये अमेरिकी मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत कहानी लोगों को आत्मविश्वास से भर देती है. 15 साल का सिख शरणार्थी लड़का, जिसके परिवार को 1947 में भारत के विभाजन के बाद अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. बाद में यही लड़का ऑक्सफ़र्ड और कैंब्रिज में पढ़ने जाता है और टॉप का टेक्नोक्रेट बनता है.

पूर्व प्रधान मंत्री डॉ सिंह का कल  तरा 9:51 पर  92 साल की उम्र में निधन हो गया.मनमोहन सिंह के परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं.  मनमोहन सिंह दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे. वो 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. मनमोहन सिंह लगातार दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे और उनकी व्यक्तिगत छवि काफी साफ-सुथरी रही. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा मनमोहन सिंह  के बेहद  बड़ें प्रसंशक रहे हैं.

भारत में आर्थिक सुधारों का श्रेय उन्हें ही जाता है. फिर चाहे उनका 2004 से 2014 का प्रधानमंत्री का कार्यकाल रहा हो या फिर इससे पूर्व वित्त मंत्री के रूप में उनका कामकाज.1991 में भारत की अर्थव्यवस्था जब मुद्रा संकट से जूझ रही थी, तब वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था को लाइसेंस राज से मुक्त करना शुरू किया था. इसका नतीजा यह हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आई और वृद्धि दर भी तेज़ हुई.

मनमोहन सिंह के निधन की ख़बर को विदेशी मीडिया में भी अच्छी ख़ासी जगह मिली है.ख़ास कर पश्चिम के मीडिया में मनमोहन सिंह के योगदान और उनकी विशेषज्ञता पर काफ़ी कुछ कहा जा रहा है.मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था. यह हिस्सा अब पाकिस्तान में है. मॉ के निधन के बाद उन का पालन पोषण  उन के दादा दादी ने किया. गरीबी का अलम ये था कि उन्हें लेंप पोस्ट के नीचे बैठ कर पढाई करनी पड़ी लेकिन अपनी कुशाग्र बुद्धि और सरलता के बूते वे ऑकस्फोर्ड तक अध्य्यन करने गये.   पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया और ऑक्सफॉर्ड से डी फिल किया.

मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि कैंब्रिज में पढ़ाई के दौरान उन्हें आर्थिक तंगी से गुज़रना पड़ा था. दमन सिंह ने लिखा था, ''उनकी ट्यूशन और रहने का खर्च सालाना लगभग 600 पाउंड था. पंजाब यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप से उन्हें करीब 160 पाउंड मिलते थे, बाकी के लिए उन्हें अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था. मनमोहन बेहद सादगी और किफायत से जीवन बिताते थे. डाइनिंग हॉल में सब्सिडी वाला भोजन अपेक्षाकृत सस्ता था, जिसकी कीमत दो शिलिंग छह पेंस थी.'' मनमोहन सिंह का जन्म 1932 में जिस गाँव में हुआ था, वो अविभाजित भारत का हिस्सा था. अब ये गाँव पाकिस्तान में है. पाकिस्तान बनने के बाद मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया था.

भले ही वे देश की आर्थिक नीतियॉ चलाने में महारथी मानी जाते हो, लेकिन डॉ सिंह की सरलता इस बात से समझी जा सकती हैं  कि दमन सिंह ने अपने पिता को "घर के कामों में पूरी तरह असहाय" बताते हुए कहा कि "वो न तो अंडा उबाल सकते थे और न ही टीवी चालू कर सकते थे.'  इतिहास में मनमोहन सिंह को इस शख़्स के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने भारत को आर्थिक और परमाणु अलगाव से बाहर निकाला.1991 में भारत की अर्थव्यवस्था जब मुद्रा संकट से जूझ रही थी, तब वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था को लाइसेंस राज से मुक्त करना शुरू किया था. इसका नतीजा यह हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आई और वृद्धि दर भी तेज़ हुई.

मनमोहन सिंह के निधन की ख़बर को विदेशी मीडिया में भी अच्छी ख़ासी जगह मिली है.ख़ास कर पश्चिम के मीडिया में मनमोहन सिंह के योगदान और उनकी  आर्थिक विशेषज्ञता पर काफ़ी कुछ कहा जा रहा है.

2014 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ''मेरा पूरा विश्वास है कि मौजूदा मीडिया और संसद में मौजूद विपक्षी पार्टियों की तुलना में इतिहास मेरे प्रति ज्यादा दयालु होगा.'' वर्तमान  आज आपका आकलन शायद सही ऑक पा रहा  हैं. आज. वी एन आई



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