वैज्ञानिक सोच वाले विलक्षण आध्यात्मिक जैन संत मुनि श्री क्षमासागर जी

By VNI India | Posted on 29th Apr 2025 | आध्यात्मिक
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महावीर जी ( राजस्थान) 28 अप्रैल (वी एन आई/ शोभना, अनुपमा जैन)   सुबह  की  के सूर्य की किरणें ना केवल महावीर जी दिगंबर जैन मंदिर के लाल पत्थर से बने मंदिर के शिखर को  अपनी आभा से और रोशन कर रही थी बल्कि सफेद संगमरमर से बने पूरे मंदिर और परिसर को अपनी स्वर्णिम आभा  से  और भी पवित्र बना थी थी. वातावरण पूरी तरह से दिव्य था.मंदिर के अंदर से श्रद्धालुओं  के पूजा पाठ और मंत्रोच्चार की ध्वनि से पूरा परिसर गूंज रहा था.वातावरण पूरी तरह से दिव्य...  इस पवित्र वातावरण मे मंदिर परिसर मे परिक्रमा करते वक्त अचानक एक स्थल पर  दिगंबर अवस्था मे, बेहद कृशकाय देह  में  लिपटी मद्धम सी लेकिन दृढ निश्चय   से भरपूर एक  प्रभावीआवाज सुनाई देती हैं. यह प्रभावी वाणी  थी  आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री क्षमासागर जी  की . मुनि श्री सागर विश्वविद्यालय से एम.टेक. की डिग्री प्राप्त   करने के बादअपने गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा बताए गए शांति और मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही सभी  ंप्रकार के मोह के बंधनो ,सांसारिक सुखों और भौतिक वस्तुओं का त्याग कर संन्यासी बन गए। इस तरह की उच्च शिक्षा पाने वाले  संत पढाई पूरी करने के बाद नौकरी की दुनिया में प्रवेश करने और गृह्स्थ आश्रम मे प्रवेश  करने से पहले  ही दिगंबर जैन मुनि बन कर तप त्याग का जीवन अपनाना अद्भुत हैं.

अनूठे कवि, दार्शनिक और  वैज्ञानिक सोच वाले घोर तपस्वी   मुनि श्री की विचार धारा  दरअसल धर्म के वैज्ञानिक पहलू   दर्शन हैं , ्जहा धर्म और  विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नही बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं य़ह सोच निश्चचय ही  आज के आधुनिक  दौर के साथ साथ सदैव प्रासंगिक रहा हैं.

मंदिर में  मुनिश्री का  प्रवचन जारी है., मुनि श्री अहिंसा की महत्ता प्रतिपदित कर रहे हैं.श्रधालु पूरी तन्मयता से उन के प्रवचन सुन रहे थे और  उन की सार गर्भित प्रभावी वाणी सुन कर श्रद्धालुओं क़े कदम वही थम  कर रह जाते हैं.  मुनि श्री  बता रहे थे कि  जीवन को अच्छा बनाने के लिये जरुरी हैं  हम अहिंसक जीवन पद्धति को अपनायें अहिंसा एक विचार ना बन कर हमारा आचरण बन जायें, अहिंसा के लिये जरूरी हैं हम स्वालंबी बनें, अहिंसा के लिये जरूरी हैं क़ी हम साधनो का सदुपयोग करे. और उन का  अपव्यय ना करे चाहे वो जल बरबादी हो या भौतिकता से जूझ रहे समाज  की  बेवजह बढती जरूरतों के  लिये हो रही स्पर्धा.  वे कहते हैं " हम प्र्त्येक परिस्थति में अपनी प्रतिक्रिया सकारात्मक रखे. जरूरी हैं कि हमारे निजी स्वार्थ हमारे संबंधों  अथवा ध्येय  में बाधक ना बने क्यों कि ये सब हमें हिंसा की तरफ ले जाती हैं. जब भी हम मन वचन और काय के हिंसा के दुष्चक्र में फंस रहे होते हैं और हिंसा की तरफ बढती यह प्रवति  थमने का  नाम नही लेती है .घर, परिवार समाज और पूरी दुनिया के साथ जब भी हम शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना का हरण करते हैं तो  ऐसे में हमे हिंसा की तरफ ही ले जाना  अवश्यंभावी हैं  इस सब को रोकने के लिये जरूरी हैं  हिंसा को हम अपने आचरण का हिस्सा ना बनाने से बचे  हमारे मन मे जिस प्रकार का भाव बनते हैं वो ही हमारे जीवन  को निर्धारित करते हैं, ऐसे में जरूरी हैं कि हम आत्म निरीक्षण करते रहे  
मुनिश्री का जीवन त्याग और त्पस्या का एक अप्रतिम उदाहरण हैं. शयद इस विलक्षण  व्यतित्व  का ही प्रभाव रहा कि बरसों पुराना यह दिव्य अवसर आज भी ऑखों मे  जम सा गया हैं.उच्च शिक्षा पाने वाले  संत पढाई पूरी करने के बाद नौकरी की दुनिया में प्रवेश करने और गृह्स्थ आश्रम मे प्रवेश  करने से पहले ही  दिगंबर जैन मुनि बन जायें.  मुनि क्षमा सागर जी की  वैसे पूज्य विद्यासागर के संघ के अधिकतर मुनि उच्च व्यवासायिक शिक्षा प्राप्त  साधु वृंद है. मुनि श्री की प्रेरणा से गठित  मैत्री समूह वर्ष २००१ से समाज मे उच्च शिक्षा के साथ ही युवाओं मे नैतिक मूल्यों के प्रचार प्रसार कर रहे हैंउन के प्रवचन और क्षणिकाये  का प्रसार करने का दायित्व पूरी जिमीवारी से निभा रहा हैं' दरसल मुनि श्री की क्षणिकाये एक सोच  बनाती हैं, एक सोच जगाती हैं
 ऐसी ही एक कविता   में जिस की चिड़िया एक संदेश दे कर समूची मानवता को एक पाठ पढाती हैं
''  मैने पूछा
चिड़िया से कि आकाश असीम है
क्या तुम्हें अपने खो जाने का
भय नहीं लगता?
चिड़िया कहती है
कि वह अपने घर लौटना जानती है।
एक निर्भय समाज की कल्पना और उस मे सभी के सहभागी होने का आह्वान-
जीवन को जीने की कला का संदेश सीखाते हुये मुनिश्री  प्रवचन को समाप्त करने से पूर्व...  एक ऐसे समाज की कल्पना जहा सभी निर्भय है, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की  सर्वोपरि हैं.  एक ऐसा समाज जहा अहिंसा  सर्वोपरि हैं, आज की दुनिया मे तो यह दर्शन और भी प्रासंगिक  है तभी तो उन की एक लघु कविता कहती है'  अभी और धीरे धीरे चलना है मुझे, अभी तो कदमों की आवाज आती हैं.वी एन आई


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