नई दिल्ली, 19 नवंबर (वीएनआई )| पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपनी मौत में यह संदेश छोड़ गईं कि लोगों से की गई प्रतिबद्धता को कोई भी ताकत कभी भी नहीं मार सकती, चाहे वह जितनी भी शक्तिशाली हो।
इंदिरा गांधी की सौवीं जयंती के अवसर पर उन पर आधारित एक फोटो प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में मुखर्जी ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि अपने प्रधानमंत्री रहने के काल में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने जैसे उनके फैसले समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। मुखर्जी ने कहा, "बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला साहसिक था जिससे देश को बहुत लाभ हुआ। इस फैसले का असर उस वक्त देखने को मिला जब 2008 में वित्तीय संकट के समय अमेरिका व यूरोप के बैंक भयावह संकट से जूझ रहे थे, उस समय भारतीय बैंक पूरी मजबूती से खड़े रहे। इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण 13 जुलाई 1969 को किया था।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व शांति और निरस्त्रीकरण में इंदिरा गांधी के योगदान को 'कई खामियों वाली एनपीटी' के कड़े विरोध में देखा जा सकता है। वह संधि की मूल भावना से इत्तेफाक रखती थीं लेकिन वह देशों के ऐसे विभाजन के खिलाफ थीं जिसमें एक को परमाणु हथियार बनाने की छूट थी और दूसरे को ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए भी परमाणु मैटेरियल के इस्तेमाल की अनुमति नहीं थी। प्रणव ने कहा कि 1974 में पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद भारत पर कितने ही प्रतिबंध लगाए गए लेकिन इंदिरा गांधी डिगी नहीं। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी जानती थीं कि स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई के बाद सिखों में उनके प्रति गुस्सा है। उन्हें सलाह दी गई कि वे अपनी सुरक्षा में से सिख कर्मियों को हटा दें लेकिन उन्होंने इसे नहीं माना और कहा कि इससे खराब संदेश जाएगा।
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