पंकजा मुंडे का बिफरना कितना भारी?

By Shobhna Jain | Posted on 13th Jul 2016 | राजनीति
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महाराष्ट्र की राजनीति में 'राजधर्म' पर 'धर्म संकट' सा परिदृश्य दिख रहा है। बेलाग मंत्री और किंकर्तव्य विमूढ़ मुख्यमंत्री का ट्विटर संवाद जबरदस्त ट्रेंड कर रहा है। अमूमन माना जाता है और है भी कि मंत्री, मुख्यमंत्री के निर्देशों को मानते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और कैबिनेट मंत्री पंकजा गोपीनाथ मुंडे के बीच जो चल रहा है, कम से कम इस समय पूरे देश का कौतूहल बना हुआ है। इसी 8 जुलाई को मंत्रिमंडल विस्तार और पुनर्गठन के बाद पंकजा से जल संसाधन मंत्रालय छिनते ही आया तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोशल मीडिया में परस्पर सवाल-जवाब देखकर लोग हैरान हैं। शायद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को अंदेशा था कि उथल-पुथल जोरदार होगी, इसीलिए उन्होंने रूस रवाना होने के बाद सूची जारी करवाई। रात 10 बजे जैसे ही वह विमान से उड़े, उनके कवरेज के बाहर होते ही निजी सचिव भीमनवार और केतन पाठक राज्यपाल के पास पहुंचे और सूची पर हस्ताक्षर करवा उसे जारी किया। मजेदार बात यह है कि महाराष्ट्र की राजनीति के एक और बड़े तुरुप, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी पहले ही अमेरिका के लिए निकल चुके थे। यह सब प्रायोजित था या अकस्मात, नहीं पता लेकिन पंकजा मुंडे की नाराजगी का सार्वजनिक तरीका और उसी लहजे में मुख्यमंत्री का जवाब, राजनीति का नया फॉमूर्ला जरूर है, पर कितना उचित, कितना अनुचित, ये वक्त बताएगा! सारा मामला 11 जुलाई को सिंगापुर में होने वाली वल्र्ड वाटर समिट में उन्हें महाराष्ट्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल होने को लेकर हुआ। पंकजा का जल मंत्रालय छिन चुका था, मुख्यमंत्री देश में नहीं थे, संवादों का आदान-प्रदान सीधे फोन के बजाय ट्विटर पर सार्वजनिक होना, अलग ही कहानी कहता है। पंकजा ने लिखा, "सिंगापुर में हो रहे वल्र्ड वॉटर समिट में मुझे हिस्सा लेना था, लेकिन चूंकि मेरा मंत्रालय हटा लिया गया है इसलिए अब मैं इस समिट में हिस्सा नहीं ले रही हूं।" जवाब में मुख्यमंत्री ने रिट्वीट किया, "सरकारी टूर पर देश से बाहर हूं, वरिष्ठ मंत्री के नाते महाराष्ट्र गवर्नमेंट के प्रतिनिधि के तौर पर आपको वल्र्ड वाटर लीडर समिट में हिस्सा लेना चाहिए।" इतनी नसीहत के बाद भी अहमदनगर जिले के पाथर्डी में मुंडे समर्थक भाजपा और युवा मोर्चा के लोगों ने फड़णवीस का पुतला फूंका और खिलाफ में नारेबाजी की। ऐसा लगता है, महाराष्ट्र की राजनीति में आगे बहुत कुछ होने वाला है। लोकतंत्र में मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, वह अपने मंत्रिमंडल में मन मुताबिक सहयोगियों को रख सकते हैं, दायित्व सौंप सकते हैं या समय-समय पर परिवर्तन कर सकते हैं। मौजूदा राजनीतिक चलन, जिसमें आलाकमान की सर्वोपरिता अहम होती है, माना जाता है कि बिना उसके इशारे कुछ भी संभव नहीं। ऐसे में पंकजा का मंत्रालय छीनना अकेले मुख्यमंत्री का निर्णय नहीं होगा। मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि से आईं पंकजा को यह सब नागवार लगा होगा, लेकिन विरोध का ये तरीका कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। राजनीति में बड़ा-छोटा कोई नहीं होता, वजनदार ही सब कुछ होता है। माना कि अभी पंकजा वजनदार हैं, उनके साथ कई फैक्टर भी हैं। लेकिन कब तक? उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति का ककहरा उन्होंने पिता गोपीनाथ मुंडे से सीखा था, जिनका महाराष्ट्र में जनाधार था, वजूद था। इसी कारण वह आज मंत्री हैं। पंकजा मुंडे वर्ष 2009 में पहली बार परली विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं। 2012 में उन्हें उन्हें भाजयुमो की प्रदेश की कमान भी सौंपी गई। गोपीनाथ मुंडे के अचानक निधन के बाद विरासत में मिला राजनैतिक प्रसाद पंकजा के लिए एकाएक था जरूर था, लेकिन कब तक? राजनीतिक गरिमा और भावभंगिमा दोनों ही महत्वपूर्ण होती है, यह पंकजा कब समझेंगी? पंकजा पहले भी कई कारणों से विवादों, सुर्खियों और चचार्ओं में रहीं। जून 2015 में 206 करोड़ के चिक्की खरीदी में घिरने के बाद, सफाई देते फिर रही थीं। उनके मंत्रालय ने एक दिन ही में, सारे सरकारी प्रस्तावों के मंजूरी दी जो चर्चित रही। इसके बाद दिसंबर में दूसरी बार चर्चाओं में फिर आईं जब उनके दिवंगत पिता गोपीनाथ मुंडे पर बनी फिल्म को 12 दिसंबर को उन्होंने रिलीज नहीं होने दिया और कहा कि कहानी को लेकर उनका कोई विरोध नहीं, लेकिन बनाने से पहले उनसे अनुमति लेनी चाहिए थी, जो डायरेक्टर संजय सिंह सूर्यवंशी ने नहीं किया। फिल्म उनके पिता पर है, जिसमें मां, दादी और परिवार के अन्य सदस्यों के चरित्र को दर्शाया गया है, इसलिए फिल्म बिना उनकी अनापत्ति के कैसे रिलीज होगी? बाद में संजय सूर्यवंशी ने कहा कि फिल्म बनाने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है, 12 जनवरी को रिलीज करेंगे। इसी तरह अप्रैल में लातूर के सूखाग्रस्त क्षेत्रों के दौरे पर गई पंकजा एक बार फिर विवादों में तब आ गईं, जब वहां ली सेल्फी को सोशल मीडिया में पोस्ट किया, जिसकी आलोचना सरकार की सहयोगी शिवसेना ने भी की। पंकजा ने तुरंत बेतुकी सफाई देते हुए कहा कि सेल्फी स्थानीय प्रशासन के रिलीफ वर्क की तारीफ थी, कैसे वो ही जानें? अब वरिष्ठ मंत्री पंकजा के ट्वीट, राजनीतिक गलियारों में चर्चित जरूर हैं लेकिन उन का इस तरह बिफरना जरूर किसी नतीजे तक पहुंचेगा वह भी तब, जब पुनर्गठन के बाद शिवसेना ने सरकार को शुभकामना देकर भावी कुशंकाओं को विराम दे दिया यानी बदलाव को स्वीकृति। कहीं यह बड़बोली पंकजा के राजनीतिक पर कतरने की शुरुआत या दमदार राजनीतिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि को चुनौती तो नहीं? न तो अब प्रमोद महाजन हैं और ही गोपीनाथ मुंडे। ऐसे में पंकजा बजाय सधी राजनीति के, कांटों भरी राह पर क्यों हैं, वो ही जानें! अब वजह कुछ भी हो, लेकिन आने वाले दिन पंकजा, आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त फड़णवीस और महाराष्ट्र की राजनीति के लिए जरूर खलबली भरे होंगे। आईएएनएस

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