सुनील कुमार ,वी एन आई ,दिल्ली 16 -12 - 2016
रुपये पैसों की दास्तान
कहा जाता है जिंदगी और सिक्के में एक समानता है ,दोनों को आप अपने हिसाब से खर्च कर सकते हैं लेकिन सिर्फ एक बार खर्च कर सकते हैं
‘रुपया’ शब्द संस्कृत के शब्द ‘रुपयक’ से निकला है हुई जिसका अर्थ ‘चांदी’ है और रुपया का संस्कृत में मतलब ‘चिन्हित मुहर’ है।
रुपये का इतिहास 15 वीं सदी तक का है जब शेर शाह सूरी ने इसकी शुरुआत की थी। उस समय तांबे के 40 टुकड़े एक रुपये के बराबर थे।
मूलतः रुपया चांदी से बनाया जाता था जिसका वजन 11.34 ग्राम था। ब्रिटिश शासन के दौरान भी चांदी का रुपया चलता था ।
सन् 1815 तक मद्रास प्रेसिडेंसी ने फनम पर बेस्ड मुद्रा जारी कर दी थी। तब 12 फनम एक रुपये के तुल्य था।
सन् 1835 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तीन प्रेसिडेंसियों बंगाल, बाॅम्बे और मद्रास ने अपने अपने कॉइंस जारी कर दिए थे।
बैंक नोटों की एक्सिस्टिंग सीरीज को महात्मा गांधी सीरीज कहा जाता है। इसे सन् 1966 में 10 रुपये के नोट से शुरु किया गया जिस पर महात्मा गांधी की तस्वीर थी।