लुप्त हो रही है अनूठी बहुरूपी कला 'बहुरुपिया उत्सव'

By Shobhna Jain | Posted on 3rd Oct 2018 | देश
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नई दिल्ली, 3 अक्टुबर (वीएनआई) किसी जमाने मे जनता के दिलो के करीब रही और प्राचीन काल से चली आ रही बहुरूपी कला मृत प्राय हो रही है. भारत की इसी संघर्षरत कला को संबल देने और लोगों में इस कला के प्रति सम्मान जगा कर बहुरूपी कला को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राजधानी मे आगामी 5 से 7 अक्टूबर तक दिल्ली में तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव” का आयोजन कर रहा है, जिसमे आम जन इन बह्रूपियो की कला देख सकेगे और देख सकेंगे वे कैसे अपना काम करते है. 

इस उत्सव की परिकल्पना करने वाले रंगकर्मी विलास जानवे ने बताया “बहुरूपी कला एक ऐसी कला है जो लोगों को मन से जोडती है.. उनके भीतर दबी हुई भावनाओं और अपेक्षाओं को उजागर करने का अवसर देती है इस अनूठी कला के  इस मर्म को ये उत्सव उजागर करेगा. इस उत्सव में राजस्थान,गुजरात ,महाराष्ट्र .,गोवा,तेलंगाना ,कर्नाटक,तामिलनाडू, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 70 बहुरूपी कलाकार अपनी  विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे ...उत्सव के दौरान  इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पूरे परिसर में बहुरूपी कला पर पहली बार फोटोग्राफस ,पेंटिंग्स ,म्यूरल,मूर्ति कला और इंस्टालेशन कला की प्रदर्शनी लगेगी | इस प्रदर्शनी को दिल्ली के युवा और प्रतिभावान डिज़ाईनर और  फिल्मकार रुपेश सहाय क्यूरेट कर रहे हैं तथा इसकी परिकलपना में भी उनका सहभाग है |
 श्री जानवे ने बताया कि कृष्ण भगवान की बहुरूपी कलाकार के रूप से हम सभी परिचित है से इतिहास के सन्दर्भ में देखें  तो राजा महाराजा और बादशाह के दरबारों में बहुरूप धारण करने वाले विशेषज्ञ कलाकारों  और ऐय्यारों का ज़िक्र आता है जो स्वयं नाना प्रकार के स्वांग रच कर एक ओर अपने शासक का मनोरंजन करते तो दूसरी तरफ उनके लिए जासूसी का भी काम करते |

वे अपने शासकों को  वेश बदल कर प्रजा का सच्चा हाल जानने को प्रेरित करते तो कभी वेश बदल कर दुश्मन को चकमा देकर उसके चंगुल से आज़ाद भी कराते | राज्याश्रय प्राप्त करने वाली इस कला को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है| कालांतर में इस कला को जागीरदारों, निजामों और गाँव-कस्बों के सम्पन्न घरों ने प्रश्रय दिया और उसके बाद बहुरूपी कलाकार गाँवों, कस्बों और शहरों में बीस पच्चीस दिन का डेरा लगा कर जन साधारण का मनोरंजन करने लगे | बहुरुपिया एक ऐसा हुनरमंद कलाकार होता है जिसके लिए रंगमंच की अनिवार्यता नहीं होती ...एक ही कलाकार लेखक ,कवि ,संवाद रचेयता,अभिनेता,गायक ,वादक,नर्तक, रूप और वेश सज्जाकार होता है जो गाँव गाँव ,नगर नगर घूम कर लोगों का  मौलिक मनोरंजन करता है और जीवन यापन के लिए बक्शीश और आश्वासन पाता है | 

बहुरुपिया आमजन का मनोरंजन करते हुए जनजागरण का भी काम करता है | जब मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे तब बहुरूपियों को शादी ब्याह और उत्सवों में बुलाया जाता था | बहुरूपिये भी पौराणिक, ऐतिहासिक ,सामाजिक और फ़िल्मी किरदार बन कर अपनी कला का लोहा मनवाते | इनाम पाते और अपने परिवार का गुज़ारा करते | नित नया वेश बना कर बहुरुपिया समाज के हर वर्ग का मनोरंजन करता है | उत्तर और पूर्व भारत में वह एकल या युगल वेश धरता है जबकि दक्षिण भारत में बहुरुपिया समूह में अपनी कला प्रदर्शित करते हैं | इन दिनों इस  नायाब कला  जुड़े हुए लोग अपने अस्तिव के लिए जूझ रहे हैं | मनोरंजन के दूसरे साधनों ने इस विलक्षण कला को हाशिये में ला खड़ा किया है | 

भारत की बहुत पुरानी कला रही है, इस कला का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है ...अपने भक्तों का रक्षण और उद्धार करने के  लिए भगवान श्री कृष्ण ने नाना रूप धरे .. ..इतिहास के सन्दर्भ में देखें तो राजा महाराजा और बादशाह के दरबारों में बहुरूप धारण करने वाले विशेषज्ञ कलाकारों  और ऐय्यारों का ज़िक्र आता है जो स्वयं नाना प्रकार के स्वांग रच कर एक ओर अपने शासक का मनोरंजन करते तो दूसरी तरफ उनके लिए जासूसी का भी काम करते | इन दिनों इस  नायाब कला  जुड़े हुए लोग अपने अस्तिव के लिए जूझ रहे हैं | मनोरंजन के दूसरे साधनों ने इस विलक्षण कला को हाशिये में ला खड़ा किया है |  

 .... उत्सव में बहुरूपियों का कमरा भी प्रदर्शित होगा जिसमें बहुरुपिया तैयार कैसे होता है उत्सव की कोर  टीम के सदस्य विलास जानवे (उदयपुर ),रुपेश सहाय (आम लोगों के लिए बहरूपियों के साथ सेल्फीनई दिल्ली ),सुनील मिश्र (भोपाल ),कृष्णा काटे (पुणे) उत्सव की प्रस्तुतियों और नवाचारों को लेकर काफी उत्साहित हैं |  शाम को एक कार्निवाल में घूमते हुए बहुरूपिये मुख्य मंच पर आकर एकल ,युगल और सामुहिक किरदारों की विविधता का जानदार प्रदर्शन कर लोगों का मौलिक मनोरंजन करेंगे.

उत्सव के पहले चुनिन्दा बहुरूपी कलाकार दिल्ली के कुछ विद्यालयों में अपने प्रदर्शन देकर बच्चों के सामान्य ज्ञान और व्यवहार ज्ञान को बढ़ाएंगे | इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कलादर्शन विभाग के प्रमुख डाक्टर अचल पांड्या ने बताया “ केंद्र के परिसर में 7 अक्टूबर (रविवार) को सुबह 9.30 से 12.30 तक “बहुरुपिया बच्चों के साथ” नामक कार्यक्रम में बहुरूपिये बच्चों की पसंद के कोमिक और कार्टून चरित्र जैसे छोटा भीम ,कृष्णा,हनुमान, जिन्न, जोकर,चाचा चौधरी, साबू , स्पाइडर मेन और कई मनोरंजक  वेश बना कर घूमेंग | केंद्र के सदस्य सचिव डा.सच्चिदानंद जोशी ने बताया कि “मनोरंजन पक्ष के साथ इस उत्सव का अकादमिक पक्ष भी  महत्वपूर्ण है, इसमें पत्रकारिता और कला से जुड़े संस्थानों के विद्द्यार्थियों को भी बुलाने की योजना है ताकि वे इस प्राचीन कला के अलग अलग पक्षों से रूबरू हो सकें और अपना अनुभव बढ़ा सकें | उत्सव के दौरान प्रलेखन के अलावा फिल्म निर्माण, और मोनोग्राफ  निर्माण होगा जो शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए एक महान उपलब्धि होगी”| वीएनआई  


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