एक नहर जो 'मौत'के बाद भी 'जिंदा'हुई

By Shobhna Jain | Posted on 26th Mar 2018 | देश
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सोल, कोरिया 26 मार्च (शोभनाजैन,वीएनआई) निरंतर मैली होती जा रही 'गंगा' और तेजी से गंदे नाले मे तब्दील हो रही 'यमुना' सरीखी नदियों के शुद्धीकरण के प्रयासो की खबरो के बीच एक खबर -कभी दक्षिण कोरिया के 'सोल' शहर का 'काला धब्बा' मानी जाने वाली 'चंग्येचन नहर' के काया कल्प की. यह नहर जो अब पर्याय, बन चुकी है आईने से साफ जल से भरी हुई नहर का,जिसकी निर्मल कल कल करती जल धारा किनारो पर लगे घने दरख्तों की शाखें और बेले, ठंड़ी हवा के झोंको के साथ मिल कर लहराती है.इसी माहौल में उड़ते हुए पंछी, हवा को चीरते हुए अन्य पक्षियों के साथ अपने पँखों को फैलाए लक्ष्य की ओर बढ़ते दिखते है । इसे शहर के आकर्षक पर्यट्क के रूप मे विकसित किया गया है.यही नही इस नहर के काया कल्प से इस इलाके का तापमान शहर से अपेक्षाकृत चार- पॉच डिग्री तक कम हुआ है. 

देशी विदेशी पर्यटको के लिये यह एक मनपसंद स्थल बन गया है .नहर के पानी मे लगे सतरंगी फव्वा्रे पूरे माहौल को स्वप्निल बनाते है . नहर मछलियो के अठखेलियो और जलपाखियों से गुलज़ार है. शहर के लोग और सैलानी अपने मनपसंद पर्यटक स्थल् पर पानी की फुहारो और ठंडी हवाओ का लुत्फ उठाते है, एक और खास बात यह है कि इस क्षेत्र मे आने वाले वाहनों की संख्या में भी कमी लाई गयी है । अब लोग यहा बसों का ज्यादा इस्तेमाल करते है जिसकी वजह से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है' कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी दक्षिण कोरिया यात्रा के दौरान सोल मे चंग्येचन शहर नवींकरण परियोजना का दौरा किया था और इस जल के इस तिलिस्म को देखा.

भारत स्थित दक्षिण कोरिया के सांस्कृतिक केन्द्र के प्रमुख तथा वरिष्ठ राजनयिक श्री किम ने वीएनआई को बताया कि ये नहर अब शहर की सबसे खूबसूरत जगहों मे मानी जाती है और पर्यावरण संतुलन के लिये उठाये जा रहे कदमो का शानदार उदाहरण बन चुकी है. दरअसल चंग्येचन नहर एक सूखा सा गंदा नाला बन चुकी एक मरी हुई नहर को 'पुनर्जीवित' करने के अजूबे की कहानी है, अदम्य इच्छा शक्ति की एक अनूठी मिसाल है.

श्री किम बताते है कि स्वतन्त्र होने के बाद 1950 के दशक मे उत्तरी कोरिया के आक्रमण के कारण दक्षिण कोरिया तबाही के बाद के उबरने के दौर मे था . चंग्येचन नहर जो कि हान नदी की एक सहायक नदी थी, वह भी तब विलुप्त हो चुकी थी,600 साल का इतिहास अपने मे समटे हुए चंगेचन नहर जोसम शासनकाल मे सोलवासिओं को पानी देने के लिये बनायी गयी थी हालाँकि इसका शाब्दिक अर्थ ‘स्वच्छ खुली हुई नहर’ है लेकिन उस जमाने मे सीवर और धोबीघाट की वजह से हुई गंदगी के कारण सबसे ज़्यादा मौतों का कारण भी यह नहर बनी. वो समय ऐसा था जबकि सोल मे सबसे ज़्यादा मौतें इसी इलाके मे हो्ती थी, 1960 मे औद्योगिक प्रगति की होड़ मे इसको पाट कर इस पर एक सड़क बना दी गयी थी और 1968 मे इसके ऊपर बना दिया गया 5.8 किलोमीटर का कंक्रीट का एक 'एलेवेटेड हाईवे', जिस पर या्त्रा करने वालों ने कल्पना मे भी शायद नही सोचा था कि इस हाईवे और उसके नीचे बनी सड़क के नीचे प्रकृति का अनमोल खज़ाना छिपा हुआ है.यह भी सच है कि तब तक यह नहर काफी गंदी और कचरे का ढेर सा बन चुकी थी 

राजनयिक के अनुसार इस जगह डीज़ल और टायर का प्रदूषण फैला हुआ था । बरसात के दिन तो क़यामत के दिन होते थे ,पैदल चलने वालों के कारण अधिक भीड़ हो जाती और केवल 1.5 मीटर जगह बचती ट्रक खड़े करने और विक्रेताओं के लिए ,इससे जाम लग जाता, पैदल यात्री पथ बंद कर दिया जाता था. धोबी घाट भी यहीं था लेकिन वर्ष 2002 में सोल की दूरदृष्टि वाली तत्कालीन महापौर पार्क ग्युन -हये जो अब कोरिया की राष्ट्रपति है, उन्होने इस 'मरी हुई नहर को पनर्जीवित' करने का अभियान शुरू किया. एक कार्य योजना बनी, और उसे पूरी शिद्दत से लागू करने का अभियान शुरू हुआ उन्होने इस नहर को पुनर्जीवित करने के अभियान को अपना चुनावी मुद्दा भी बनाया और इसी मुद्दे पर चुनाव भी जीता । वर्ष 2003 मे युद्ध स्तर पर शुरू हुआ मरी हुई नदी को जिंदा करने का अभियान. परियोजना 2005 मे पूरी हो गयी कंक्रीट के जंगल के नीचे दफन कर दी गयी इसकी 6 किलोमीटर (लगभग चार मील) तक की सूखी पड चुकी धारा मे दोबारा प्राण फूंके गये. नदी को साफ किया गया और पानी की साफ धारा के साथ यहा और पानी डाला गया । 90 करोड़ डॉलर की इस परियोजना को सार्वजनिक रूप से पहले तो काफी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा लेकिन यह नहर दृढ इच्छा शक्ति का एक अनुपम उदाहरण है.हान नदी से निकलने वाली लगभग 10.9 किलोमीटर लंबी यह चंग्येचन नहर सोल में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है और बाद मे भी यह हान नदी में मिल जाती है जो बाद मे पीत सागर से जा मिलती है 

नदी को पुनर्जीवित करने के बाद अब चंग्येचन नहर के उपर सुनहरी धूप इठलाती हैं, क्रीक के नीचे उजाला, हवा और हरियाली है,जल धारा मे रंगीन रोशनी वाले फव्वारे पानी को सतरंगी बना रहे है. किनारे पर घने दरख्त है, मछलियाँ और जल जंतु पानी मे अठखेलिया करते है, साफ़ पानी मे जलचर बढते जा रहे है । यहा तापमान में भी कमी आई है । यह सब कोई जादू से नही अपितु दृढ इच्छा शक्ति के बूते एक लक्ष्य के पूरी होने के कहानी है, एक सीख,प्रेरणा है सभी के लिये. वीएनआई 


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