पोर्ट लुई,मॉरीशस 12 मार्च ( शोभना जैन,वीएनआई) ठीक 180 साल पहले की एक गहराती शाम का सन्नाटा, कलकत्ता से एम,वी एटलस समुद्री जहाज पर सवार हो कर, उथल पुथल भरे हिंद महासागर से गुजरते हुए , एक अजनबी देश मे डरे सहमे, बदहाल 36 भारतीयो का एक जत्था मॉरिशस की पोर्ट लुई बंदरगाह से उतर कर की कीचड़ सनी पथरीली सोलह सीढियो पर डगमगाते कदमो से आगे बढ रहा है,देश पराया, मंजिल का पता नही, रोजी रोटी की तलाश मे सात समंदर पार आ तो गये लेकिन चारो और पसरे अंधेरे मे वे सब एक दूसरे का हाथ थामे बंदरगाह की सोलह सीढीयो से लड़खड़ाते, डगमग़ाते आगे बढ रहे है, ये थे भारत से आये गिरमिटिया मजदूर . लेकिन धी्रे धीरे इन्ही \'गिरमिटियाओ\' ने सोलह सीढीयो से उतर कर अपने डगमगाते कदमो को मजबूती से जमीन पर रखा और एक मजबूत इरादे से अनजानी सी राह की और आगे बढे और इन कदमों ने मॉरिशस का इतिहास बदला,उसे एक मजबूत पहचान दिलवाई. बीमारी, अभाव तथा अन्याय से जुझते हुए उन्होंने अपने अनथक संघर्ष से एक नए मजबूत तथा विश्वास भरे नए मॉरिशस को रचा , खुद भी आगे बढे, और मजबूत इरादो और कड़ी मेहनत के बल पर एक मजबूत देश की बुनियाद रखी और अपने लिये बुना इन्होने एक सुंदर भविष्य .मॉरीशस यात्रा पर आये प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज मॉरीशस और भारत के बीच मित्रता के एक नये अध्याय के शुभारंभ के बीच \'अप्रवासी भारतीयो\' के इस जज्बे को सलाम किया. आज इस घाट पर जा कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए प्रधान मंत्री कहा कि \'अप्रवासी घाट\'- अदम्य साहस की मानवीय भावना को नमन है.उन्होने कहा\' यह घाट भारत और मॉरीशस के स्थाई संबंधो का प्रतीक है हमारा सौभाग्य है कि मॉरीशस हमारा मित्र है अगर कोई ऐसा देश है जिसका हमारे उपर पूरा अधिकार है, तो वह मॉरीशस है.\'
दो नवंबर 1834 की उस शाम के बाद से शुरू हुए इस सिलसिले के बाद से इस तट पर लगभग 180 वर्षों तक ढाई लाख भारतीयो बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों से उतरने का तांता सा लग गया और शुरू हुई पराए देश में दर्द और संघर्ष की कहानियाँ, कहानियॉ एक सुंदर भविष्य बुनने की.इन्ही सोलह सीढीयो का घाट जो पहले \'कुली घाट\' \'क़हलाता था अब \'अप्रवासी घाट \'कहलाता है.
अप्रवासी घाट मॉरीशस की पहचान का एक महत्वपूर्ण चिह्न है क्योंकि 70 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी के पूर्वज इसी आप्रवासी डिपो से होकर यहां पहुंचे थे. गौरतलब है कि मॉरीशस की लगभग 70 प्रतिशत आबादी भारत वंशी है. .गौरतलब है कि इस अप्रवासी घाट की \'वो सोलह सीढ़ियां \' एक स्मृति स्थल के रूप में इस घाट पर संजो कर रखी गई हैं। यूनेस्को ने इस घाट को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया है। आप्रवासी घाट में आज भी कुली डिपो, अप्रवासी डिपो की इमारतें संघर्ष के प्रतीक् स्वरूप संजोकर रखी गयी है हैं.इनके रहने के लिए बनी झोपड़ियां, रसोई, शौचालय और अस्पताल की इमारत के अलावा 16 सीढ़ियां सब की सब.ये मज़दूर ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान गन्ने की खेती में \'मुफ़्त\' मज़दूरों के रूप मे या यू कहे बेगार करने के लिये लाये गये थे क्योंकि मॉरिशस के फलते-फूलते चीनी उद्योग में बड़ी संख्या में मज़दूरों की ज़रूरत थी.
आज मॉरीशस यात्रा के दूसरे दिन प्रधान मंत्री ने नेशनल असेंबली को संबोधित करते हुए कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र हमारी नीति प्राथमिकतो मे सबसे उपर है, उन्होने कहा कि समय आ गया है कि हिंद महासागर के आस पास एक मजबूत ग्रुप बनाया जाये, यहा तक कि बदलते विश्व मे भी महासागर प्रगति की कुंजी है प्रधान मंत्री ने कहा \' भारत को गर्व है कि वह आपका साथी है दोनो देशो के संबंध सदैव ही प्रसन्नता और एक दूसरे के लिये शक्ति का स्त्रोत रहे्गे .कि दोनो देशो की नियति हिंद महासगार की लहरो से जुड़ी हुई है इस अवसर पर प्रधान मंत्री ने मॉरीशस मे भारतीय सहयोग् से दूसरे साईबर नगर के निर्माण का भी एलान किया.ततकालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 मे मॉरीशस मे पहले साईबर नगर के निर्माण की घोषणा की थी . बाद मे प्रधान मंत्री ने भारत मे निर्मित अपतटीय गश्ती पोत (ओपीवी) सीजीएस बाराकुडा मॉरीशस तटरक्षक बल को विधिवत भेंट किया, इसका इस्तेमाल समुद्री डकैती रोकने और समुद्री तस्करी, अपराध रोकने के लिये हो सकेगा। उन्होने उम्मीद जताई की कि बाराकुडा से हिंद महा सागर और सुरक्षित हो सकेगा उन्होने कहा बाराकुडा जलपोत हिंद महासागर मे हमारी शांति और सुरक्षा की हमारी साझी वचन बद्धता का प्रतीक है, हिंद महासागर जो हमारा साझा समुद्रीय घर है
साल 2006 में यूनेस्को में स्थाई प्रतिनिधि भास्वती मुखर्जी, जो वर्ल्ड हैरिटेज कमेटी में भारत की प्रतिनिधि भी थे, ने मॉरीशस और अफ़्रीकी समूह की ओर से आप्रवासी घाट को वर्ल्ड हैरिटेज साइट का दर्जा देने की मांग की थी..मॉरिशस के जाने माने साहित्यकार अभिमन्यु अनत की कविता यहां के अप्रवासी घाट की एक दीवार पर उद्धृत है।
\"आज अचानक
हिन्द महासागर की लहरों से तैर कर आई
गंगा की स्वर-लहरी को सुन
फिर याद आ गया मुझे वह काला इतिहास
उसका बिसारा हुआ
वह अनजान अप्रवासी...
बहा-बहाकर लाल पसीना
वह पहला गिरमिटिया इस माटी का बेटा
जो मेरा भी अपना था, तेरा भी अपना\"
उन्नीसवीं सदी में मजदूरों के रूप में भारत से गए इन मजदूरों के वंशज आज मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गयाना तथा अन्य कैरिबियायी द्वीपों में सफलता की बुलंदियों को छू रहे हैं और अनेक देशों मे वे आज राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। गौरतलब है कि मॉरिशस के राष्ट्रपति प्रयाग जब पिछले वर्ष अपने पुरखों के गांव पटना के वाजितपुर पहुंचे तो वहां की धूल को माथे पर लगाकर फफक-फफक कर रो पड़े थे.वी एन आई