नयी दिल्ली 29 अप्रैल (वीएनआई) वर्ष 1950 में ही बॉलीवुड को अपना "ओरीजनल माचो मैन" मिल गया था और वे थे शेख मुख्तार. छह फीट दो इंच ऊंचे, बेहद रौबदार शख्सियत, चेहरे पर चेचक के हल्के से दाग , जब वह परदे पर आते थे तो सामने सभी कलाकर फीके पड़ जाते थे और उनके प्रशंसको ने उन्हे दे दिया "माचो मैन "का खिताब ,लेकिन वर्ष 1950 से लेकर 1970 के दशक में बेजोड़ कलाकार का दर्जा पा चुके इस "माचो मैन" का अंत समय बेहद उथल पुथल भरा व नाटकीय तरीके से बेहद दर्दनाक रहा.
अपनी पहली ही फिल्म एक ही रास्ता (सन 1939) जिसमे वे प्रसिद्ध अभिनेत्री नलिनी जयवंत के साथ थे, वे छा गये थे और फिर तो उनकी फिल्मो की गाड़ी क्या चली, लोग अपने" माचो मैन " के मुरीद हो गये. अभिनेता के रुप में शेख मुख्तार की बेहद पुख्ता पहचान थी . प्रशंसको में कद्दावर, रोबदार शख्सियत वाले अपने "माचो मैन "को लेकर दीवानगी थी.
उन्होंने 40 फिल्मों में अभिनय किया और 8 फिल्मों का निर्माण किया . भूख, टूटे तारे, दादा, घायल, उस्ताद पेड्रो, मंगू, मि. लम्बू, बेगुनाह, डाकू मानसिंह, गुरु और चेला जैसी यादगार फिल्मो ने धूम मचा दी थी. कराची में जन्म के बाद ,पिता के तबादले की वजह से वो दिल्ली आ गए और यहीं उनकी शिक्षा हुई. कद, काठी और रोबदार व्यक्तित्व की वजह से ही पिता उन्हें अपनी तरह पुलिस कर्मी बनाना चाहते थे लेकिन किस्मत उन्हे "माचो मैन" बनाने के लिये रूपहले पर्दे की और खींच रही थी . रंग मंच का शौक उन्हें कलकत्ता ले गया जहाँ उन्होंने एक रंग मंच कंपनी में नौकरी कर ली और सन 1938 से आरंंभ हो गयी उनकी अभिनय यात्रा . वर्ष 1980 तक चली उनकी सभी फिल्में खूब चली रहीं, कितुं अन्तिम फिल्म नूरजहाँ उनका अंत ही साबित हुई. नूरजहां अपने समय की बहुत बड़ी फिल्म थीं. निर्माता के रुप में नूरजहां शेख के लिए एक सपना थीं. अपने जीवन की सारी पूंजी शेख ने इस फिल्म पर झोंक दी थीं.
इस जमाने के महंगे और जाने माने कलाकार प्रदीप कुमार और मीना कुमारी नूरजहां की प्रमुख भूमिकाओं में थे.फिल्म देखकर दर्शको को बरबस मुगले आजम और पुकार जैसी विशाल फिल्मों के सेट याद आ जाती थी.दिल्ली के डिलाइट सिनेमा में नूरजहां का आल इंडिया प्रीमियर शो रखा गया. उस अवसर पर जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अबदुल्लाह मुख्यमंत्री के रुप में उपस्थित थे. फिल्म को सबने सराहा पर दुर्भाग्य यह रहा कि फिल्म हिट नही हो पायी, उन पर बाजार का कर्ज चढ़ गया. शेख ने हिम्मत नहीं हारी. फिल्म को सरहद पार पाकिस्तान में प्रदर्शित करने की योजना बनाई. अड़चने तमाम थी, रास्ता बेहद मुश्किल होता जा रहा था लेकिन तमाम अड़चनों के बावजूद आखिरकार फिल्म को पाकिस्तान में प्रदर्शित करने का उनका प्लान ठीक होता लगा. लेकिन उनके शायद सितारे गर्दिश में ही चल रहे थे.
फिल्म का पाकिस्तान मे विरोध शुरू हो गया .बमुश्किल पाकिस्तान ने फिल्म प्रदर्शन की हरी झंडी दी. शेख मुख्तार अपनी सफलता से प्रसन्न होकर वापस लौट रहे थे. वे हवाई जहाज में ही थे, तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और" माचो मैन " दुनि्या को अलविदा कर गया. लेकिन फिल्म की सफलता को लेकर उन्होने तमाम दर्द झेले, अपनी सारी जमा पूंजी दांव् पर लगा दी, वह फिल्म पाकिस्तान में बड़ी हिट साबित हुई. पाकिस्तान के लाहौर, कराची, क्वेटा और हैदराबाद में फिल्म देखने के लिए लोगो का हूजूम उमड़ पड़ा था. भीड़ को नियंत्रित कराने के लिए सुरक्षा बलो का सहारा लेना पड़ता था. शेख मुख्तार ने अपने जिस सपने को साकार देखने के लिये तमाम दर्द, तकलीफे झेले, वह सपना पूरा तो हुआ लेकिन "माचो मैन" के दुनिया से जाने के बाद. उनकी अभीनीत फिल्में पूणे के एक लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी हैं.