'नई दिल्ली 31 जुलाई (जेसुनील, वीएनआई)्मखमली आवाज के मालिक प्रख्यात पार्श्व गायक मोहम्मद रफी अपने एक फिल्मी गीत की रकम लेकर स्टुडिओ की लिफ्ट मे घुस रहे थे, लिफ्ट ऑपरेटर के चेहरे पर परेशानी देख उन्होने अपने साथी से पूछा, पता लगा बेटी की शादी के लिए पैसा नही होने की चिंता उसे परेशान कर रही थी उन्होंने तुरंत जेब मे हाथ डाला और उसे अपने एक गाने के लिए मिले सारे पैसे दे दिये और मुसकरा कर कहा' बेटी के लिये दुआये करूंगा'. मोहम्मद रफी की 35 वी पुण्य तिथि के मौके पर रफ़ी साहिब के संगीत को समर्पित रफ़ी फाउंडेशन मेमोरियल सोसाइटी ने दिल्ली मे एक संगीतमय कार्यक्रम " चल उड़ जा रे पंछी..." आयोजित कार्यक्रम मे यह संसमरण उनके दामाद परवेज ने सुनाया ।
फाउंडेशन के सचिव ज़ोरावर चौगानी ्ने बताया कि रफ़ी फाउंडेशन साल दर साल रफ़ी साहिब की पुण्य तिथि पर कार्यक्रम आयोजित करता रहा है, "हम रफी साहब की बरसी पर उन्हें याद करते हैं और संगीत की सभाएं आयोजित करते हैं। कई साल से यह सिलसिला जारी है। यह भारतीय संगीत के क्षेत्र में मानवीय बाधाओं और सीमाओं के परे उनके महत्वपूर्ण योगदान को याद करने का एक तरीका है।" इस बरस के मुख्य अतिथि थे रफ़ी साहिब की बेटी यास्मीन और दामाद, रफ़ी साहिब के दामाद परवेजजी ने बताया की कैसे रफ़ी बड़े गायक ही नही एक दरियादिल, बड़े दिल वाले इंसान थे । दरियादिली कायह आलम था कि संगीत कार सी.अर्जुन ने उनका कदम देख एक बार बेहद सहमते हुए उनसे एक गाने के लिए कहा , रफ़ी ने वो गाना गाया और वो गाना सुपरहिट साबित हुआ ।
कार्यक्रम एक दिव्य संगीत अनुभव था । रफी 40 साल तक भारतीय सिनेमा से जुड़े रहे। उन्होंने एक के बाद एक भावनात्मक सुपर हिट गीत दिये. आलम यह रहा कि बाबुल की दुआये लेती जा विदाई गीत भारत मे बेटियो के विदाई के वक्त का विदाई गीत बन गया 'चौदहवीं का चांद', 'अभी न जाओ छोड़ के' 'तेरी आंखों के सिवा' और 'तुम जो मिल गए हो' जैसे कई यादगार गीत दिए। उन्हें 1967 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था। उनका 31 जुलाई, 1981 में 56 साल की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।वी एन आई
चल उड़ जा रे पंछी'...मोहम्मद रफी की पुण्य तिथि पर विशेष