नई दिल्ली, 18 जुलाई, (शोभना जैन/वीएनआई) दक्षिण अफ्रीका के पूर्व विवादित राष्ट्रपति जैकब जुमा को गत सप्ताह हुई जेल के बाद वहा भड़की व्यापक हिंसा, दंगों, लूटपाट को ले कर एक अतयंत विचलित करने वाली फोटों ने पूरी दुनिया का ध्यान वहा की अराजक स्थति की और खिंचा हैं. वायरल हुयें इस चित्र में बहुमंजला ईमारत में लगी आग में अपने छोटे से बच्चें के साथ फंसीे एक मॉ ईमारत में लगी आग से अपने बच्चें को बचाने के लियें हताशा में नीचें खड़ी भीड के पास फेंक रही हैं, ताकि भीड़ उस बच्चें को लपक कर उस की प्राण रक्षा कर सकें. दक्षिण अफ्रीका में स्थति बेहद चिंताजनक हैं. सड़्कों पर, दुकानों, प्रतिष्ठानों, मॉल्स में लूटपाट हो रही हैं.बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर लूट के सामान के पेकेटों के पेकेट और लूट के सामान से भरी टृआलीयॉ ले कर भागतें नजर आ रहे हैं.इस हिंसा को देखते हुए देश की सबसे बड़ी रिफाइनरी को फिलहाल एहतियात के तौर पर बंद कर दिया गया है. सड़कों पर टायर जल रहे हैं. अनेक लोगों का मानना हिं कि बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारियों के मुकाबलें सुरक्षा बल कम हैं.इस लूटपाट का शिकार हो रहें अनेक भारतीय मूल लोगों की आशंका हैं कि हिंसा लूटपाट जातीय दंगों का रूप ले सकती हैं. व्यापक हिंसा और दंगों की खबरों के बीच, विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने भी कल दक्षिण अफ्रीका की विदेश मंत्री नलेदी पंडोर से बात की, जिन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी सरकार कानून-व्यवस्था को लागू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और सामान्य स्थिति की जल्द बहाली सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है.विदेश मंत्रालय के सचिव संजय भट्टाचार्य ने भी भारत में दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त जोएल सिबुसिसो नदेबेले से मुलाकात की.इसी बीच खबरें हैं कि साउथ अफ्रीका में रह रहे भारतीयों ने भारत सरकार से मदद की गुहार गई थी. सोशल मीडिया पर लगातार साउथ अफ्रीका से संदेश शेयर कि जा रहे थे. वहा लंबें समय् रह रहें भारतीय मूल के एक कारोबारी ने आशंका व्यक्त की अगर समय रहतें सरकार ने स्थति को काबू पाने के लियें कदम नहीं उठायें तो हिंसा के नस्लीय रूप लेने की आशंका है.वैसे कहा जा रहा हैं कि यह हिंसा क्वाज़ुलु नताल,डर्बन, पीटेरमेटिस और जोहान्सबर्ग जैसे ईलाको में ही हैं जहा भारतीय बड़ी तादाद में हैं, वहा उन्हें हिंसा और लूटपाट का निशाना बनाया जा रहा है.दक्षिण अफ्रीका में १३ लाख भारतीय रहते हैं और उन में बड़ी संख्या इन्हीं ईलाकों में रहते हैं. एक भारतीय मूल के प्रवासी के अनुसार" फिलहाल तो कुछ ही इलाकों में ऐ सी स्थति हैं . हम लोग दक्षिण अफ्रीकी सरकार से मदद मांग रहे हैं, लेकिन अब तक कुछ विशेष कदम उठायें नहीं गयें है." लेकिन अफ्रीकी सरकार का कहना है ऐसा करने वाले राजनीति या नस्लभेद से प्रेरित नहीं हैं. बल्कि वे अपराधी हैं जिनका मकसद बस मौके का फायदा उठाकर लूटपाट करना है.्निश्चित तौर पर दक्षिण अफ्रीका में पीढीयों से रह रहे और उसे अपना घर मानने वाले भारतीयों के लियें यह बेहद चिंताजनक़ हालात हैं.लेकिन यह बात भी सामनें आ रही हैं कि वहा की वर्तमान अराजक स्थति का निशाना अकेलें भारतीय ही नहीं है,बल्कि समस्या एक वर्ग विशेष को निशाना बनायें जानें की बजाय कहीं ज्यादा व्यापक हैं. देश की खस्ता आर्थिक स्थति,लगातार बढती आर्थिक असमानता, देश की आंतरिक राजनीति, या यूं कहें सत्तारूढ राजनैतिक दल अफ्रीकी नेशनल कॉग्रेस की आतंरिक कलह आदि तमाम वजहों ने मिल कर देश में एक फौरी अराजक स्थति ने विस्फोटक रूप ले लिया हैं.लेकिन निश्चित तौर पर अगर ऐसें में सरकार ने समय रहतें इस बेहद चिंताजनक स्थति से निबटने नहीं उठायें गयें तो अंग्रेजी उपनिवेशवाद के खिलाफ दशकों तक संघर्ष करनें और मंडेला जैसे नेता के तप से आजादी पायें इस देश में स्थतियॉ किस और जायेंगी कुछ नहीं कहा जा सकता हैं.
गौरतलब हैं कि जुमा को जब गत सात जुलाई को रिश्वत और भृष्टाचार के आरोप की पृष्ठभूमि में अदालत की अवमानना करने के लियें जब जेल भेजा गया तो तो उन के गृह राज्य क्वाज़ुलु नताल के गरीब और कमजोर तबके का बॉध टूट गया लगा. जुमा की पार्टी अफ्रीकी नेशनल कॉग्रेस में भी जुमा के इस कदम से विभाजन देखने को मिला जब कि उन के समर्थक राष्ट्रपति व उन के उत्तराधिकारी सिरिल रामफोसा का विरोध करनें लगें. जूमा के अदालत की अवमानना के अपराध आरोप में १५ माह की जेल की सजा सुनायें जानें के बाद देश भर में उन के समर्थकों ने इसे राजनैतिक बदलें की कार्यवाही मानतें हुयें हिंसा करनी शुरू कर दी. जिस ने जल्द ही लूटपाट और दंगों का रूप ले लिया. अब तक इस हिंसा मे ७२ से अधिक लोग मारें जा चुके हैं.क्वाटुलु नताल जुमा का ग़्रह राज्य हैं,ऐसे में जब कि जुलू, जिस समुदाय से जुमा आते हैं और जो देश का सब से बड़ा जातीय गुट हैं , जुलू भड़क गयें.कहा जा रहा हैं कि पूर्व राष्ट्रपति जुमा ने अपने समर्थकों को भड़काया और समर्थकों को लगा कि जुमा के खिलाफ बदलें की राजनैतिक कार्यवाही हुई हैं और बकौल वरिष्ठ पत्रकार पत्र्कार और दक्षिण अफ्री्की मामलों के जानकार विजय नायक के अनुसार" फिर वो ही हुआ जैसा कि डोनाल्ड टृंप ने अपने समर्थकों के साथ व्हाईट हाउस पर घेराबंदी के लियें उकसाया था.जुलू बेकाबू हो गयें लेकिन इस के साथ ही वहा निरंतर बढती आर्थिक असमानता,कोविड से सरकार के नहीं निबट पानें, अफ्रीकी नेशनल कॉग्रेस की अंदरूनी कलह, जुमा और राष्ट्रपति सिसिल रामफोसा के बीच की रस्साकसी, आदि अनेक वजहों ने आग में घी डालनें का काम किया.है.भारतीय चूंकि वहा आर्थिक दृष्टि से सुद्र्ढ हैं. इस लियें श्वेतों व देश के अन्य समृद्ध वर्गों की तरह वो भी निशाना बने हैं यही वजह हैं कि वहा रहने वालें भारतीय मूल के लोगों सहित श्वेत व अन्य वर्गों में थोड़ी असुरक्षा तो है ही. खतरा हैं देश गृह युद्ध की तरफ नहीं बढें.विजय के अनुसार " देखना होगा कि रामफोसा सरकार स्थति से कैसे निबटती हैं.उस के सम्मुख भी "केच २२" की स्थति हैं.नायक द्वारा लिखित पुस्तक " दि लेंड ऑफ मंडेला" खासी चर्चित रही हैं.
ऑकड़ों के अनुसार खस्ताहाली के दौर से गुजर रही दक्षिण अफ्रीका की सकल घरेलू उत्पाद दर पिछलें वर्ष १९४६ के बाद से बाद से सब से नीचें चली गयी और अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई इस वर्ष के पहलें तीन माह में ्बेरोजगारी ३२.६ प्रतिशत की रिकॉर्ड दर तक पहुंच गई और इस के साथ ही कोविड का टीका जन सामान्य को उपलब्ध नही होनें और कोविड से नहीं निबट पानें से खास तौर पर देश के कमजोर तबकें में असंतोष और बढ गया हैं.
दक्षिण अफ्रीका में भारतीय उच्चायुक्त रहें वरिष्ठ राजनयिक राजीव भाटिया के अनुसार" दरसल दक्षिण अफ्रीका का वर्तमान घटना क्रम के बारे में विशेषज्ञों का भी कहना हैं कि वहा के हालात ऐसे बन रहे थे कि अभी जो कुछ हो रहा हैं, उस से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहियें. देश में बेहद आर्थिक असमानता बेहद गहरी है, एक तरफ विकसित दक्षिण अफ्रीका का टेग हैं तो दूसरी तरफ वहा गरीब तंगी बस्तियों में में रहनें वाले अश्वेत हैं. वर्ष २००९ से २०१८ तक देश के राष्ट्रपति रहे जुंमा पर भृष्टाचार के दाग हैं. भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीका में बसे गुप्ता ब्रदर्स के साथ मिल कर जुलू पर भृष्टाचार के गंभीर आरोप रहे हैं. लेकिन इस के साथ जुमा अब भी एक बड़ी वर्ग के लोकप्रिय नेता हैं, ए एन सी पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है. इन तमाम कारणों से मिल कर अब स्थति विस्फोटक हो गई हऐं यानि जटिल है. एक गरीब सामान्य अश्वेत सोच रहा हैं वो तो आज भी वहीं खड़ा हैं जहा कि १९९४ तक अंग्रेजों के काल में था" राजनयिक मानतें हैं " ऐसे में यह सोच सही नहीं हैं कि वहा निशाना सिर्फ भारतीयों को ही नहीं माना जायें. दक्षिण अफ्रीका एक बहु नस्लीय समाज हैं. निश्चित तौर पर भारत सरकार को वहा का घटनाक्रम को धैर्य से देखतें हुयें ध्यान से नजर रखनी होगी."
इन खबरों के बीच याद आता हैं,मई १९९४ में दक्षिण अफ्रीका के जुझारू,तपें हुयें सत्याग्रही नेल्सन मंडेला का शपथ ग्रहण समारो्ह, जिस की रिपोर्टिंग करने के लियें मै दक्षिण अफ्रीका गई थी.उस दिन सुबह से माहौल में खास कर अश्वेत समुदाय के हर्षोऴास के बीच वहा बसें श्वेतों के चेहरों पर आने वालें कल की स्थतियों को लेकर आशंकायें साफ नजर आ रही थी. लेकिन उस वक्त मंडला ने एक कुशल राजनेता की ही तरह स्थतियॉ इस तरह से संभाली कि हिंसा, उत्पात, लूटपाट हुई ही नही. आज के हालात के बारे में माना ही जा रहा है कि यहां पर दिखाई देने वाला विरोध प्रदर्शन और हिंसा केवल पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी को लेकर ही सीमित नहीं है बल्कि इसके पीछे कहीं न कहीं असमानता की नीति जो देखनेंमें तो भलें खत्म हो गई लेकिन जमीन पर अब भी जारी है, उसी सब को ले कर अब गुस्सें का उबाल फूट उठा हैं.हालांकि पूर्व राष्ट्रपति जूमा अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत और राजनीति से प्रेरित बताते हैं, लेकिन उन से जुड़ी की एक संस्था ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति के जेल में बने रहने तक देश में शांति होने की उम्मीद नहीं है. बहरहाल देखना होगा कि वहा रास्ता क्या बनता हैं, क्या दक्षिण अफ्रीका में जल्द ही हालात सामान्य हो सकेंगे बनेंगे और धीरें धीरें देश के उस सामान्य अश्वेत के उस समानता के सपनें को पूरा किया जा सकेगा जिस की उम्मीद में वह २७ वर्षो से जग तो रहा हैं, लेकिन अब संयम खो रहा हैं. समाप्त
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