नई दिल्ली, 03 जुलाई, (शोभना जैन/वीएनआई) ओसाका,जापान मे चल रही जी 20 शिखर बैठक इस बार गहराती "ट्रेड वार" की छाया में, एक चिंता के माहौल में हो रही हैं.एक तरफ अमरीका चीन के बीच व्यापार युद्ध चरम सीमा पर है जिस के परिणा्मों को ले कर पूरी दुनिया में संकट बना ही हुआ था वही हाल ही में भारत और अमरीका के बीच व्यापारिक, शुल्क मुद्दो को ले कर भी तनाव उत्पन्न हो गया. हालांकि अमरीकी विदेश मंत्री माईक पोम्पियों की इस सप्ताह की भारत यात्रा से पहले इस गतिरोध को सुलझाने के लिये एक सकारात्मकता नजर आयी, और "व्यापार" सहित "असहजता" वाले अन्य मुद्दों पर कुछ बात आगे बढने की उम्मीद जगी थी,लेकिन ओसाका बैठक से ठीक पहले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक ट्वीट से भारत और अमरीका के बीच व्यापार, शुल्क दरों को ले कर चल रहे इस गतिरोध को दूर करने की दिशा में उत्पन्न सकारात्मकता पर प्रशन चिन्ह सा लग गया.
राष्ट्रपति ट्रंप ने ओसाका की मुलाकात से चंद घंटों पहले अमरीकी निर्यात पर भारत के ऊंचे शुल्क को " अस्वीकार्य" बताते हुए इसे "वापस" लेने का अल्टीमेटम दे डाला. वैसे उस के बाद ओसाका मे कल जब प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई तो मुलाकात में ट्रंप की अल्टीमेटम की भाषा से दूर माहौल में सहजता नजर आयी. बाद में दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत के बारे में भारत ने कहा कि "व्यापार" के मुद्दें के बारें में दोनों देश बाद मे बातचीत करेंगे. वैसे इस मुलाकात में दोनों शिखर नेताओं ने "असहजता" वाले अन्य मुद्दों, ईरान,जी ५, और रूस से एस 400 मिसायल खरीद वाले सौदें पर अमरीका के विरोध पर भी स्ंक्षिप्त चर्चा हुई.दरसल इस द्विपक्षीय बैठक के अलावा भारत , रूस और चीन के बीच भी अहम त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिस में वैश्विक व्यापार गतिरोध वाले मुद्दों पर चर्चा हुई. दरअसल बड़ी महाशक्तियों की इस बढती प्रतिद्वंदिता में भारत की एक अहम भूमिका बनी हैं,ऐसे में उस के सम्मुख संतुलनकारी नीति अपनाते हुए अपने राष्ट्रीय और सामरिक हितों की रक्षा करने की चुनौती हैं साथ ही समान विचारों वाले देशों के साथ उस का भी प्रयास यही हैं कि एक ऐसे व्यापारिक अर्थव्यवस्था बनें जिस का सभी लाभ ले सके.इस शिखर सम्मेलन का थीम ‘मानव केंद्रित भावी समाज' है,लेकिन निश्चय ही दुनिया की आज की और कल की कारोबारी पेचीदगियॉ ही सम्मेलन में मंत्रणा का मुख्य मुद्दा रहेगी.
अगर देखा जायें तो जमीनी हकीकत हैं कि अमरीकी रा्ष्ट्रपति अगले वर्ष फिर से राष्ट्रपति चुनाव के लिये उम्मीदवार बन रहे हैं, ऐसे में उन का पूरा ध्यान घरेलू मतदाताओं को " अमरीका फर्स्ट" के नारे से लुभाने का हैं कि वे एक मजबूत राष्ट्र्पति हैं और उन के लिये अमरीका के हित सर्वोपरि हैं. लेकिन अमरीका की इन संरक्षंणवादी नीतियों को ले कर दुनिया भर में चिंता व्याप्त है. चिंता इस बात को ले कर हैं कि अमरीका की संरक्षणवादी नीतियॉ अगर इसी तरह चलती रही तो इस से अमरीका दुनिया भर की बाजार पर हावी हो जायेगा. अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की बात करें तो इन नीतियों का चीन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा हैं, यह दूसरी बात हैं कि चीन भी ऐसी ही संरक्षणवादी नीतियों के जरियें विश्व बाजार में अपनी पैंठ बना रहा हैं इसी सब के चलते दोनों के बीच तनातनी ने व्यापार युद्ध का रूप ले लिया जो अब चरम पर पहुंच गया हैं.और अगर भारत और अमरीकी व्यापारिक गतिरोध की बात करे तो इसी माह अमेरिका द्वारा स्टील और अल्यूमीनियम समेत कुछ उत्पादों पर ज्यादा शुल्क लगाए जाने के जवाब में भारत ने भी 16 जून को बादाम और अखरोट समेत 28 उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया था, जिस से ट्रंप बुरी तरह से नाराज हो गये . इसी प्रष्ठभूमिं में पी एम मोदी से होने वाली मुलाकात से ठीक पहले उन्होंने शुल्क हटाने का अल्टेमेटम दे दिया.गौरतलब हैं कि ट्रंप प्रशासन ने गत पॉच जून को सामान्य तरजीही प्रणाली (जीएसपी) व्यापार कार्यक्रम के तहत लाभार्थी विकासशील राष्ट्र का भारत का दर्जा खत्म कर दिया था. जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस अमेरिकी ट्रेड प्रोग्राम है जिसके तहत अमेरिका विकासशील देशों में आर्थिक तरक्की के लिए अपने यहां बिना टैक्स सामानों का आयात करता है। अमरीका के इस कदम का भारत के रत्न, चमड़ा और संसाधित खाद्य पदार्थों जैसे निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ा.एक पूर्व राजनयिक के अनुसार डब्ल्यु टी ओं के सदस्य होने के नाते भारत पहले से ही अपने शुल्क दरें व अन्य सम्ब्द्ध कानून अंतर राष्ट्रीय कानून के अनुरूप ही रखता हैं ऐसे में ट्रंप प्रशासन का पक्ष तर्क संगत नही ्कहा जा सकता है. भारत सदैव ही व्यापार के मुक्त प्रवाह का समर्थन करता रहा है.अमरीका के इस कदम के बाद बाद भारत ने भी जवाबी कार्रवाई के तहत अमेरिका से मंगाई जाने वाले दाल-दलहन, लौह एवं इस्पात उत्पादों समेत 29 उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाया गया है। इसमें मटर, बंगाल चना और मसूर दाल, बादाम, अखरोट, सेब, लोहा और इस्पात शामिल हैं। इन उत्पादों पर आयात शुल्क में 25 से 90 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है, अब राष्ट्रपति ट्रंप इसी "जबावी वृद्धि" को वापस लेने पर जोर दे रहे हैं.
वैश्विक आर्थिक स्थति की अगर बात करे तो विश्व व्यापार संगठन के मुताबिक, वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही में विश्व व्यापार सूचकांक घट कर 96.3 प्रतिशत हो गया। यह वर्ष 2010 से सबसे निम्न स्तर माना जाता है। उधर संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास सम्मेलन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, गत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय प्रत्यक्ष निवेश की मात्रा 13 प्रतिशत गिरकर 13 खरब अमेरिकी डॉलर तक रही, जो वर्ष 2008 के वित्तीय संकट से सबसे निम्न है। इस सब के चलते जी 20 शिखर बैठक खासी अहम मानी जा रही है.दरसल इस शिखर बैठक में वित्तीय स्थिरता, डब्ल्यूटीओ सुधार, कालाधन और आतंकवाद का मुद्दा बैठक में भारत के एजेंडा में शीर्ष हैं साथ ही ऊर्जा सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा, बहुपक्षवाद में सुधार करना और विश्व व्यापार संगठन(डब्ल्यूटीओ) में सुधार जैसे अहम मुद्दों पर भी भारत अपनी चिंता्यें रखेगा. भारत का मानना हैं कि डब्ल्यूटीओ को मजबूत करना चाहिए और इसे एक ऐसा संगठन बनाना चाहिए, जिसके जरिये वैश्विक व्यापार का नियमन किया जा सके लंबे समय से खासतौर पर 2008 की आर्थिक मंदी के बाद जी-20 एक बहुत महत्वपूर्ण वैश्विक मंच हो गया है. गौरतलब हैं कि जी-20 के सदस्य देश विश्व की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में करीब 85 फीसदी का योगदान करते हैं.
जी-20 में भारत,अमेरिका. अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी,, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन शामिल हैं.समाप्त
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