एससीओ मे भारत के होने के मायने

By Shobhna Jain | Posted on 16th Jun 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 16 जून, (शोभना जैन/वीएनआई) हाल ही में सम्पन्न "शंघाई सहयोग संगठन" (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारत इस संगठन का पूर्णकालिक सद्स्य बन गया. शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में चीन, रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत के साथ हालांकि पाकिस्तान भी इस क्षेत्रीय समूह का पूर्णकालिक सद्स्य बना है लेकिन अंतरराष्ट्रीय पटल पर तेजी से अपनी पहचान बना रहे भारत के लिये इस समूह के पूर्णकालिक सदस्य बनने के खास मायने है. 

वर्ष 2001 में शंघाई, चीन मे रूस, चीन,  किर्गीज गणराज्य ,कजाख्स्तान, ताजिकस्तान और उज्बेकिस्तान राष्ट्रपतियों ने इस समूह का गठन किया . भारत,ईरान और पाकिस्तान  दोनों को ही 2005 मे इस समूह में बतौर प्रेक्षक दर्जा मिला था और अब उसे इस समूह मे पूर्णकालिक सद्स्य का दर्जा मिल गया है, जिस की खास अहमियत है. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले सप्ताह इस शिखर बैठक में हिस्सा लिया था.एससीओ को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है. दरअसल यह समूह है तो क्षेत्रीय समूह, लेकिन  अभी तक यह चीन के वर्चस्व में रहा है. भारत की उम्मीद है कि इस क्षेत्रीय सहयोग समूह से आतंकवाद, सुरक्षा,रक्षा, उर्जा आपूर्ति,क्षेत्रीय संपर्क बढेगा, संपर्क बढने यानि आपसी  जुड़ाव से क्षेत्र मे व्यापार और निवेश बढेगा. दरअसल ये सभी मुद्दे भारत की चि्ताओ से जुड़े है. आतंकवाद  विशेष तौर पर सीमा पार का आतंकवाद जैसी समस्या,जिसे भारत दशको से जूझ रहा है, भारत का मत है कि इस मंच से सामूहिक समन्वित प्रभावी प्रयासो से इस से निबटने में काफी मदद मिल सकती है. 
 
श्री मोदी ने इस सम्मेलन मे मौजूद पाक राष्ट्रपति की मौजूदगी मे आतंकवाद को मानवता के लिये बहुत बड़ा खतरा बताते हुए उम्मीद जाहिर की कि आतंकवाद और क्षेत्र की अन्य साझी समस्याओं से निबटने मे एस्सीओं मे भारत के प्रवेश से नयी गति मिलेगी और एससीओं और भारत दोनों को ही इस का लाभ मिलेगा. साथ ही इस मौके पर मौजूद सम्मेलन के अध्यक्ष चीन के राष्ट्रपति शी चिन पिंग की मौजूदगी  में  उन्होने इस बात पर जोर दिया कि  संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता इस क्षेत्रीय सहयोग का प्रमुख अंग होना चाहिये. यहां यह बात अहम है कि  यह सम्मेलन चीन के विस्तारवादी मंसूबे की परिचायक महत्वाकांक्षी 'बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव' 'बीआरआई' के कुछ ही सप्ताह पूर्व हुए सम्मेलन के बाद हुआ जिस का भारत ने अपनी उसी आपत्ति के चलते बहिष्कार किया था कि इस परियोजना  का एक हिस्सा चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा,पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरेगा जबकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस गलियारे का इस क्षेत्र से गुजरना भारतीय संप्रभुता पर अतिक्रमण है. सम्मेलन के बाद  चीन के राष्ट्रपति के साथ हुई द्विपक्षीय मुलाकात मे भी इसी आपसी सहयोग बढाने के लिये अनेक मुद्दो पर सहमति के अलावा  ब्रह्मपुत्र के पानी और उसके डेटा को लेकर अहम एमओयू हुआ. दरअसल भारत और चीन का आपसी तालमेल अच्छा होना दोनों ही देशों के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है.िसी सोच के चलते एससीओं मे  दोनो की मौजूदगी पर अब सब की निगाहे है- क्या यह आपसी सहमति के बिंदु वाले मंच के रूप मे उभर पायेगा?

दरअसल तेजी से बदल रहा अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम  मे दुनिया मे सत्ता समूह भी बदल रहे है. माना जा रहा है कि एससीओं के पूर्ण कालिक सदस्य के नाते भारत इस क्षेत्र में आतंकवाद से निबटने और सुरक्षा और रक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर समन्वित प्रयास करने पर और प्रभावी जोर दे सकेगा. ्शिखर बैठक मे पाक राष्ट्रपति की मौजूदगी में श्री मोदी ने पाक द्वारा भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों के और उस ्को अप्रत्यक्ष  तौर पर लपेटते हुए कहा था कि जब तक इस क्षेत्र के देश धार्मिक कट्टरता और आतं्कवादियों के पोषण और वित्तीय सहायता के मुद्दों पर  समन्वित और कड़े प्रयास नही  किये जाते  ्तब तक आतंकवाद से सख्ती से नही निबटा जा सकता है. उम्मीद है कि  रक्षा तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दों से निबटनेबके लिये  उस के क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी ढॉचा( रीजनल अन्टी टेरारिसम स्टृक्चरल)पर उसे एससीओं के जरिये सुरक्षा क्षेत्र मे सहयोग मिलेगा

क्षेत्रीय सहयोग को बढाने की दृष्टि से यह समझना भी अहम होगा कि समूह में भारत को अपनी उर्जा जरूरतों मे भी काफी मदद मिल सकती है. भारत दुनिया की सबसे ज्यादा उर्जा की खपत वाला देश है जिसे बड़ी तादाद मे खनिज तेल आयात करना पड़ता है. इस क्षेत्र के अनेक सदस्य देशों के पास तेल और प्राकृतिक गैस का  बहुत बड़ा भंडार है,निश्चित तौर पर  इस से भारत की मध्य एशिया मे  गैस और तेल खनन परियोजनाओं तक ज्यादा पहुंच हो सकती है. इस के अलावा भारत  पहले ही अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे को प्राथमिकता दे रहा है जिस से भारत का रूस ्यूरोप तथा मध्य एशिया के बीच जल पोत, रेल तथा सड़क संपर्क बनाये जाने का प्रस्ताव है. इस तरह की योजनाओ ्को कार्य रूप देने से इस क्षेत्र मे संपर्क बढेगा, जिस से  आपसी व्यापार और निवेश काफी बढ सकता है. भारत ने उम्मीद जताई है कि एससीओं की पूर्ण सदस्यता से संगठन और उसे दोनो को नई गति मिलेगी ही, बदलते अंतरराष्ट्रीय सत्ता समूह मे यह गठबंधन वाकई प्रभावी हो कर सक्रिय आपसी सहयोग को बढावा देगा, खास तौर पर ऐसे मे जबकि चीन के साथ पाकिस्तान उस के साथ एक साझा मंच पर है, इस पर निगाहे रहेंगी. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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