नई दिल्ली, 18 मार्च, (शोभना जैन/वीएनआई) पिछले कुछ वर्षों मे चीन के साथ संबंध सुधारने के भारत के तमाम सकारात्मक प्रयासों के बावजूद चीन ने फिर वही किया जिस का उस से अंदेशा था. चीन ने एक बार फिर पाक स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को " वैश्विक आतंकवादी" घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया है। विश्व संस्था द्वारा इस सरगना के आतंकी संगठन को 2001 में ही आतंकी संगठन घोषित किये जाने के बावजूद चीन ने इस के सरगना को आतंकी घोषित करने को लेकर यह अड़ंगा चौथी बार लगाया है।
चीन के इस वीटों से अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस का यह प्रस्ताव गिर गया. इस बात से नाराज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने चेतावनी भी दी कि अगर चीन इसी नीति पर अड़ा रहा तो जिम्मेदार सदस्य परिषद में अन्य कदम उठाने पर मजबूर हो सकते हैं। दरअसल पुलवामा आतंकी हमले के दोषी ्जैश , जिस ने इस ह्मले के फौरन बाद ही हमले की जिम्मेवारी ली थी, इस के बावजूद ऐसे आतंकी सरगना मसूद अजहर को 'वैश्विक आतंकी' घोषित होने से बचाने के लिए चीन द्वारा वीटो लगाने से उस ने एक बार फिर साबित किया हैं कि विश्व शक्ति के रूप में भले ही वह अपने को तेजी से स्थापित करने का प्रयास कर रहा हो, लेकिन आतंकवाद को प्रश्य दे कर इस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को दॉव पर लगा कर वह केवल अपने एक सामरिक मोहरे को बचाने की भूमिका तक सीमित है.ऐसे में जब कि डोकलॉम तनातनी के बावजूद गॉधीनगर में ्चीन के राष्ट्रपति की शाही ्मेहमान नवाजी,"वुहान" जैसे कदमों का आखिर क्या मायने रह जा्ते हैं , निश्चय ही इन तमाम हालात में भारत को चीन के प्रति अपने रवैयें मे बदलाव के बारे में सोचना होगा है.दरसल इस बार चीन का यह कदम इस लियें भी और गंभीर हो जाता हैं कि अभी तक भारत आतंकी गुट और उस के सरगना अजहर के खिलाफ भारत में हुए आतंकी हमलों में लिप्त होने के बारें मे जो तमाम सबूत और जानकारी देता रहा था , उस पर चीन का कहना होता था कि उस के पास आतंकी के खिलाफ पर्याप्त जानकारी नही थी. इस बार पुलवामा हमले के बाद भारत ने अमरीका, इंगलेंड और चीन सहित ्संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के "१२६७ अल कायदा सैंक्शन्स कमेटी'' से जुड़े सदस्य देशों के पास सबूतं के डॉजियर भेजे जिस के बाद तीनो विकसित देशों सहित अनेक देशों ने उसे आतंकी घो्षि्त करने का प्रस्ताव पेश किया लेकिन चीन का रूख वही ढाक के तीन पॉत वाला रहा जो को २००८ के मुंबई आतंकी हमलों और फिर उस के बाद २०१६ और २०१८ मे रहा जब कि उस ने अजहर को बचाने के लिये वीटो किया था. ऐसे मे समझन लेना जरूरी है भारत ने भले ही अप्रैल २०१८ मे वुहान औपचारिक शिखर बैठक के जरियों संबंधों मे सुधार लाने की पहल की हो लेकिन पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ चलाये जा रहे सीमा पार आतंक पर भारत की चिंताओं का चीन पर कोई असर नही है.
हालांकि भारत इस वक्त चुनाव मोड मे हैं लेकिन विदेश नीति एक सतत प्रक्रिया हैं ऐसे में भारत को अब चीन के प्रति अपना रवैया कुछ बदलना होगा. चीन भारत के साथ दोहरे माप दंड अपनाता रहा है और चाहता हैं कि भारत उस के रूख ्का सम्मान करे.भारत सीमा विवाद झेल रहे अपने इस पड़ोसी के साथ संबंध सामान्य बनाने की मंशा से उस के साथ संबंधों में सतर्कता बरतते हुए कई मर्तबा यथा स्थति पर ऑख मूंदने वाला रवैया अख्त्यार करता भी रहा है.तैवान और तिब्बत के बारे में चीन की संवेदनाओं के प्रति भारत तो अपनी प्रतिक्रिया में सतर्कता रहा है लेकिन ्चीन अरूणाचल प्रदेश में घुसपैठ, सीमा का अतिक्रमण जैसे अनेक कदमों से आपसी भरोसे को ख्त्म करता रहा है. पाकिस्तान मे अजहर जैसे आतंकी को बचा कर सीमापार के आतंक के प्रति भारत की चिंताओं की धज्जियॉ उड़ाता है वही अपने यहा उघुर मुसलमानों के मानवाधिकारों का हनन करता रहा है. आर्थिक रिश्तों की बात करे तो चीन के साथ व्यापार में भी अब भारत को जस का तस रवैया अपनाये, तभी सही रहेगा चीन के साथ व्यापार घाटा पिछले कुछ वर्षों में निरंतर घट रहा है. जरूरत हैं एक तरफ भारत पाकिस्तान के सीमा पार के आतंक को ले कर अंतर राषट्रीय डिप्लोमेटिक दबाव बढाये और अपने सुरक्षा तंत्र को अधिक मजबूत करे. दरअसल अगले दो महीनों मे 'वित्तीय कार्यवाही कार्य बल एफ ए टी एफ' की पुनर्विचार बैठक होगी, जो खासी अहम होगी. इस में पाकिस्तान द्वारा आतंक से निबटने के लिये उठाये गये उपायों की समीक्षा की जायेगी ऐसे में भारत को विश्व बिरादरी के सम्मुख पाकिस्तान के आतंक का चेहरा और प्रभावी और तेजी से बेनकाब करना होगा, जिस से पाकिस्तान को आतंक से निबटने के लिये कड़े कनून बनाने पर मजबूर होना पड़ेगा,ऐसे मे फिर चीन ्पर नजरे रहेंगी क्यॉकि वह पाकिस्तान में जो भारी निवेश कर रहा है उस से पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियॉ को बढावा ही मिलता हैं
भारत को चीन के प्रति अपनी नीति में संबंध सामान्य बना्ने की आस में बेवजह की नरमी छोड़ यथा स्थति को समझ सावधानी से साथ आगे बढना होगा. इस के साथ ही अब समय आ गया हैं कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुधारों के लिये विश्व समुदाय मे अपनी हिस्सेदारी का दबाव बनाये और साथ ही विश्व बिरादरी यह सुनिश्चित करे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पुन्र्गठन कर इस का स्वरूप ऐसा बनाया जायें जिस से चीन ्जैसे देश वीटों का दुरूपयोग कर अपना एजेंडा नही चलासके.
परिषद के नियमों के अनुसार चीन की यह तकनीकी रोक छह महीनों के लिए वैध है और इसे आगे तीन महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है.ऐसे में ्चीन के पास अजहर के खिलाफ नये प्रस्ताव पर भारत सहित विश्व जन मत का सम्मान करने का एक और मौका तो हैं ही. भारत इस पूरे घटनाक्रम पर कह चुका हैं ‘‘हम निराश हैं. लेकिन हम सभी उपलब्ध विकल्पों पर काम करते रहेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय नागरिकों पर हुए हमलों में शामिल आतंकवादियों को न्याय के कठघरे में खड़ा किया जाए.''
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