छत्तीसगढ़ - आखिर ऊंट किस करवट बैठेगा?

By Shobhna Jain | Posted on 9th Aug 2018 | VNI स्पेशल
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रायपुर,9 अगस्त (वेदचन्द जैन/ वीएनआई) देश मे 2019 के चुनाव से पहले राजनैतिक सरगर्मियां ज़ोरों पर है खास तौर पर आम चुनाव से पहले राजस्थान,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और मिजोरम के आसन्न चुनावों को आम चुनाव से पहले का ट्रेलर माना जा रहा है उस पर सब की नजरे टिकी है. छत्तीसगढ के चतुर्थ विधानसभा के चुनाव में अब कुछ माह ही शेष हैं। वर्ष के अंत में प्रदेश की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अंतिम निर्णय यहां के मतदाता सुनिश्चित करेगें मगर इस चुनाव चुनाव में विगत की अपेक्षा सत्ता संघर्ष का नवीन दृश्य दिखेगा । राजनैतिक समीकरणों के चलते सत्तासीन भाजपा, प्रतिपक्ष कांग्रेस के साथ अजीत जोगी का नवोदित क्षेत्रीय दल छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस एक नये समीकरण की आधार शिला रखेगा.

भारत के नवोदित प्रदेशों मेंं से एक है छत्तीसगढ़। जैवविविधता और वनों से भरपूर छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति समृद्ध व वैभवशाली है।देश मेंं धान का कटोरा की उपमा से विख्यात छत्तीसगढ़ की धरती खनिज की प्रचुरता भूसंपदा से संपन्न है। छत्तीसगढ़ का भूगर्भ जितना संपन्न है भू पर निवास करने वाला छत्तीसगढ़ का निवासी उतना ही विपन्न है। विषमता की इस खाई को समाप्त करने का स्वप्न संजोए अठारह वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश से पृथक कर नवीन प्रदेश का गठन किया गया था किंतु आज देश मेंं छत्तीसगढ़ नक्सली घटनाओं के लिये चर्चित होता है। लगभग ढाई करोड़ की जनसंख्या के प्रदेश में अठारह वर्षों में दो मुख्यमंत्रियों का शासन रहा है,प्रथम अजीत जोगी और दूसरे डा. रमन सिंह।
 
छत्तीसगढ़ गठन के पश्चात प्रदेश की बागडोर प्रशासनिक सेवा छोड़ कर नेता बने अजीत जोगी के हाथों को मिली। तब श्री जोगी सांसद थे,मुख्यमंत्री पद ग्रहण कर विधान सभा मेंं प्रवेश करने के लिए भाजपा के विधायक से स्थान रिक्त कराकर मरवाही विधान सभा से निर्वाचित हुए। नवोदित प्रदेश में विपक्ष से टकराव के साथ नयी शैली का उदय हुआ। दुख की बात यह रही कि शांतिपूर्ण इस नवोदित राज्य में अजीत जोगी की आक्रामक राजनीतिक शैली  केपरिणामतः पक्ष विपक्ष के वैचारिक संघर्ष के सीमा की मर्यादाओं की दीवार ढहने लगी,विचारधारा का द्वार लांघते हुए व्यक्तिगत स्तर पर जा पहुंची. भले ही जोगी की राजनैतिक शैली से कांग्रेस में शत्रुओं की संख्या बढ़ती गई मगर प्रदेश के गरीब सर्वहारा वर्ग में गहरा प्रभाव बन गया, जोकि न्यूनाधिक अब भी दृष्टिगोचर होता है।

2003 के विधानसभा चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी के बैनर के माध्यम से जोगी को चुनौती दी, हालांकि छत्तीसगढ़ में एनसीपी को उल्लेखनीय सफलता तो नहीं मिली मगर सात प्रतिशत मत प्राप्त कर न केवल अजीत जोगी को सत्ता से दूर कर दिया अपितु कांग्रेस भी ऐसी दूर हुई कि लगातार पन्द्रह वर्षों से भाजपा के रमन सिंह निर्बाध मुख्यमंत्री के पद पर आरूढ़ हैं। मुख्यमंत्री रमन सिंह को पन्द्रह वर्षों से न तो विपक्ष से कोई चुनौती मिली न/ न ही भाजपा के अंदर कभी उनके नेतृत्व पर कोई प्रश्नचिह्न लगा। अपेक्षाकृत शांत सौम्य और सरल व्यवहार के कारण रमन सिंह सभी से मधुर व्यवहार बनाए रखने में निपुण हैं। प्रदेश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा खाद्यान्न बांटने में रमन सरकार ने राष्ट्रव्यापी प्रशंसा अर्जित की और रमन सिंह को चाऊर वाले बाबा की उपमा मिली। वर्तमान में चाऊर वाले बाबा की उपमा धूमिल होकर विलुप्त प्राय हो गई क्योंकि केन्द्र में नरेंद्र मोदी की सरकार ने आरंभ मेंं ही स्पष्ट कर दिया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों के बल पर ये कार्य संचालित करे। छत्तीसगढ़ के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री ने राजनीति में अपने वंश को स्थापित किया, मुख्यमंत्री रमनसिंह के पुत्र अभिषेक सिंह लोकसभा के सदस्य हैं । अजीत जोगी की पत्नी डा.रेणु जोगी 2005 से  कांग्रेस की विधायक हैं ,पुत्र अमित जोगी भी गत चुनाव में प्रदेश में सर्वाधिक मतों से विजयी होकर विधायक हैं।यही नही अब रेणु जोगी ने फिर से कॉग्रेस के टिकट का अनुरोध किया है.

छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के मध्य ही सीधा संघर्ष होता रहा है और मतों के प्रतिशत में अल्प अंतर रहता है। प्रदेश में यह पहला चुनाव होगा जब कांग्रेस के साथ जोगी नही होंगे और उस का सीधा मुकाबला भाजपा से होगा। यह  देखना दिलचस्प होगा कि क्षेत्रीय ताकत बनकर उभरी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस दोनों दलों को कितनी चुनौती देगी. त्रिकोणीय संघर्ष मेंं सर्वाधिक दुविधा कांग्रेस के सामने है। अठारह वर्षों की अवधि में पहले तीन वर्ष कांग्रेस का बाद के पंद्रह वर्षों से भाजपा की सरकार है। कांग्रेस की सामने संकट यह है कि वह अपनी सरकार के कार्यकाल को बेहतर नहीं बता सकती क्योंकि तब अजीत जोगी मुख्यमंत्री थे न/न ही जोगी के कार्यकाल की आलोचना कर सकती। छजपा जोगी के तीन वर्षीय शासनावधि को भाजपा के कार्यकाल से बेहतर बता चुनाव प्रचार कर कांग्रेस का मुंह बंद रखने को विवश कर रमन सरकार पर प्रहार करेगी। नवगठित क्षेत्रीय दल ने दो वर्षों मेंं  पूरे प्रदेश मेंं संगठन खड़ा कर लिया है। दलित वर्ग में अजीत जोगी की लोकप्रियता ही नवगठित क्षेत्रीय दल का मुख्य आधार है। कांग्रेस के प्रादेशिक नेता कांग्रेस से अलग होकर श्री जोगी के क्षेत्रीय दल गठन को पार्टी के लिए यह कहते हुए लाभकारी मानते हैं कि विगत चुनाव में अजीत जोगी भीतरघात कर कांग्रेस को हानि पहुंचाते थे। यदि यह मान भी लिया जाए जब भीतरघात से कांग्रेस को जो नेता भीतरघात कर हानि करता था,खुला घात करेगा तो हानि ही होगी,किंतु कांग्रेसी नेता इसे लाभदायक बता रहे है।

दूसरी तरफ मुख्य मंत्री रमन सिंह कांग्रेस और जोगी के घमासान से उत्साहित हैं और जोगी कांग्रेस को प्रदेश की एक बड़ी ताकत बताकर दोनों के संग्राम को हवा दे रहे हैं।भाजपा भलीभांति समझ रही है कि पंद्रह वर्षों के शासन की निरंतरता से परिवर्तन की चाह  प्रबल हो जाती है,मगर 2003 के चुनाव में विद्याचरण शुक्ल के असंतोष का जो लाभ मिला था, वही लाभ अजीत जोगी के दल से मिल सकता है। अब तक छत्तीसगढ़ में किसी भी क्षेत्रीय दल को सर्वाधिक सात प्रतिशत मत मिला है।2003 की स्थिति से 2018 की स्थिति भिन्न है। स्वर्गीय श्री शुक्ल कुलीन वर्ग की राजनीति करते थे वहीं अजीत जोगी का प्रभाव दलित आदिवासी वर्ग पर अधिक है।प्रदेश में इस वर्ग की बहुलता है।

गठबंधन की बेला मेंं भाजपा की स्थिति स्पष्ट है,छत्तीसगढ़ मेंं वह अपने बल पर चुनाव समर का सामना करेगी,कांग्रेस का प्रयास है कि बसपा से तालमेल हो सके जिससे जोगी के कारण होने वाली दलित मतों की हानि की भरपाई की जा सके,कांग्रेस की इस मंशा को भांपकर दिल्ली में उपचार करा रहे अजीत जोगी ने अस्वस्थ अवस्था मेंं ही बसपा सुप्रीमो मायावती से डेढ़ घंटे की भेंट कर अपने साथ, साथ साथ चलने की भूमिका तैयार कर ली। चुनाव आते आते प्रदेश में एक गुप्त तालमेल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। गांधी परिवार से अजीत जोगी के व्यक्तिगत और पारिवारिक घनिष्ठ संबंध हैं। मतों का विभाजन रोकने के लिए दोनों के मध्य अघोषित समझौता हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। भारतीय जनता पार्टी से जनता शब्द के साथ कांग्रेस को जोड़कर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नाम से दल का गठन कर चुके अजीत जोगी की योजना स्पष्ट है सत्ता के मार्ग का सेतु बनना। छत्तीसगढ़ में ऊंट सीधा बैठा तो  करवट लेने के लिए अजीत जोगी की पार्टी का सहयोग लेना होगा। स्पष्ट है कि  जोगी के दल  के एक मजबूत घटक बनने \ की प्रबल संभावना है। वी एन आई - (लेख मे प्रकाशित विचार लेखक के निजी विचार है)


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