नई दिल्ली,1 नवंबर,(शोभनाजैन,वीएनआई) दुनिया भर ,विशेष तौर पर भारत मे बोलचाल की भाषा मे बेहद प्रचलित स्थान और मिथकों में रचा-बसा टिंबकटू कोई काल्पनिक जगह नही बल्कि पश्चिमी अफ्रीकी देश माले का समृद्ध सांस्कृतिक, आध्यात्मिक विरासत वाला एक शहर है, जहा कि समृद्ध विरासत की वजह से इसे संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक इकाई युनेस्को ने इसे अपनी वि्श्व विरासत सूची मे दर्ज कर रखा है.
राजधानी मे इसी सप्ताह सम्पन्न तीसरे भारत अफ्रीका फोरम शिखर बैठक मे हिस्सा लेने आये माले के राष्ट्रपति इब्राहिम बी.कीता ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान उन्हे माले की यात्रा करने और विशेष तौर पर इस शहर की यात्रा करने और स्वयं वहा उनकी मेजबानी करने का यह न्यौता दिया. गौरतलन है कि आतंकवाद से जूझ रहे माले का यह शहर आतंकियो के निशाने पर है् , आतंकियो ने इस शहर को उड़ा देने की धमकी दी है.लेकिन खराब हालात के टिंबकटूवासी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की मिसाल माने जाते हैं.
पॉचवी सदी मे बना यह शहर 15वीं -16वी सदी मे सांस्कृतिक और एक व्यापारिक नगरी के रूप मे सामने आया.टिंबकटू को भले ही दुनिया का अंत माना जाता रहा हो, पुराने समय में इसकी हैसियत महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों के केंद्र के रूप में थी.ऊँटों के काफ़िले सहारा रेगिस्तान हो कर सोना ढोया करते थे.प्राचीन इस्लामी पांडुलिपियों का एक समृद्ध संग्रह है टिंबकटू मे. इसके बारे मे कहा जाता है कि मुस्लिम व्यापारी इस शहर हो कर पश्चिमी अफ़्रीका से सोना यूरोप और मध्य-पूर्व ले जाते थे, जबकि उनकी वापसी नमक और अन्य उपयोगी वस्तुओं के साथ होती थी.ऊँटों के काफ़िले सहारा रेगिस्तान हो कर सोना ढोया करते थे
और इस फलते-फूलते व्यापार ने टिंबकटू को उस ज़माने के धनी शहरों में ला खड़ा किया.एक किंवदंती तो यह भी है कि प्राचीन माले राष्ट्र के नरेश कंकन मोउसा ने चौदहवीं सदी में काहिरा के शासकों को इतनी भारी मात्रा में स्वर्णजड़ित उपहार दिए कि सोने की क़ीमत मुँह के बल गिर गई. एक और दिलचस्प किस्सा भी मशहूर रहा कि उस ज़माने में टिंबकटू में सोने और नमक की क़ीमत बराबर हुआ करती थी.लेकिन इससे भी ज्यादा टिंबकटू की ख्याति पुराने समय में एक धार्मिक केन्द्र के रूप में भी थी. शहर इस्लाम का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था. लेकिन सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में अटलांटिक महासागर के व्यापार मार्ग के रूप में उभरने के साथ ही 'संतों के नगर' टिंबकटू का पतन शुरू हो गया.
लेकिन समृद्ध सांस्कृतिक वाला यह शहर आज गर्मी और बालू के टिब्बों वाले एक सुनसान से शहर के रूप मे ही ज्यादा जाना जाता है.माले की राजधानी माले के इस इलाक़े के गवर्नर के अनुसार बाहरी दुनिया से टिंबकटू का संपर्क मात्र बालू की सड़कों के ज़रिए है, जहाँ दस्युओं का आतंक है. लेकिन आवाजाही के साधन आसान नही होने के बावजूद टिंबकटू के आकर्षण के मारे हज़ारों पर्यटक आज भी इस रहस्मय शहर की ओर खिंचे चले आते हैं.और इस कारण पर्यटन यहा का बड़ा रोज़गार का साधन है. टिंबकटू के सांकोर विश्विद्यालय से पढ़े हज़ारों विद्वानों ने एक समय संपूर्ण पूर्वी अफ़्रीका में इस्लाम को फैलाया था. यह विश्वविद्यालय अब भी भारीं संख्या में छात्रों को आकर्षित कर रहा है. साढ़े छह सौ साल से भी ज़्यादा पहले मिट्टी-गारे से निर्मित विशालकाय जिंगरेबर मस्जिद भी उसी बुलंदी से क़ायम है. तो, टिंबकटू सिर्फ मिथको , कल्पनाओ और किसी उपन्यास का काल्पनिक शहर नही अपितु एक जीवंत शहर है.वी एन आई