नई दिल्ली, 17 अ्क्टूबर ( वीएनआई) देश, विदेश में आज महान संत,तपस्वी और दार्शनिक आचार्य विद्यासागर समाधि और जीवन दर्शन , विद्द्या शिरोमणि 108 श्री समयसागर जी का अवतरण दिवस पूरी श्रधा से मनाया गया. यह पहला मौका हैं जब कि आचार्य श्री विद्द्यासागर के समाधिस्थ होने के बाद उन का अवतरण दिवस मना.इस मौके पर पूरे भक्ति भाव से मंदिरों में पूजा और धार्मिक अनुष्ठान किये गये और भंडारों अर जन कल्याण के अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया .
राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में जैन आचार्य विद्यासागर महाराज ने गत 18 फरवरी 2024, रात्रि 02ः35 बजे समाधि ली. आज उन की स्मृति को नमन करते हुये साधु संतों और श्रधालुओं ने उन्हें भाव भीनी श्रद्धाजंली दी नमन किया
दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा थी। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था।
22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने दीक्षा ली थी। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने अपने संन्यास जीवन के लिए बहुत कठिन नियम बनाए थे।भीषण सदी-गर्मी में आचार्यश्री कपड़ा, कंबल, चटाई, रजाई, पंखा, कूलर, हीटर और एसी आदि का उपयोग आचार्यश्री नहीं करते थे सीमित आहार लेते थे । लकड़ी के पटा पर बैठकर सुबह से शाम हो जाती थे। तीन से चार घंटे की अल्प निद्रा लेते थे। शेष समय ध्यान में लीन रहते थे।
आचार्यश्री 24 घंटे में एक बार खड़े होकर आहार लेते थे। । आचार्यश्री को नमक , गुड़, फल, सब्जी, सूखे मेवे और दूध का त्याग थे। केवल दाल, रोटी, चावल और पानी आहारों में लेते थे। उन्होंने ्दिगंबर जैन परंपरा का पालन करते हुये लाखों किलो मीटर की यात्रा पैदल करपूरे देश में विहार किया।
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा जानते थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई किताबें लिखी हैं। 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके जीवन पर मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी महाकाव्यकी भी रचना की है। इसे कई विश्वविद्यालयों के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।
आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नाम से काव्य लिखा है। वी एन आई
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