लंगर - सामाजिकएकरसता का प्रतीक, जहा बिना किसी भेद भाव के सभी एक पंगत में करते हैं भोजन

By VNI India | Posted on 15th Nov 2024 | आध्यात्मिक
langar

नई दिल्ली,15 नवंबर ( शोभना जैन/वीएनआई) कुछ वर्ष पहलें  लंदन का साउ थ हॉल गुरूद्वा्रा...  गुरू द्वारे में मत्था टेकने के बाद कुछ श्रद्धालु जिस  ्तृप्ति से   सभी वर्गों के  साथ भले ही वह अमीर हो या गरीब,श्रद्धालु  बिना किसी भेद भाव के एक पंगत मे एक साथ बैठ कर लंगर छक( खा) रहे थे यह दृश्य  आत्मिक सुख देने वाला अनुभव था. वहा मौजूद अनेक  श्रद्धालुओं ने बताया कि गुरूद्वारा दुनिया भर में बने गुरूद्वारों की तरह ना केवल सिख अनुयायियों के  साथ बल्कि जाति धर्म, ऊंच  नीच,जाति धर्म की दीवारों से परे हट कर समाज के सभी वर्ग एक पंगत में भोजन करते हैं. गुरूद्वारे  के एक प्रबंधक के अनुसार गुरूद्वारा विशेष तौर पर उन भारतीयों के लिये वरदान हैं जो   सात समंदर पार अपने घरों से यहा रोजगार कमाने आते हैं और सीमित आर्थिक़ संसाधनों की वजह से सुबह काम पर जाने से पहले यहा अल्ल सुबह भोजन कर के जाते हैं और वापसे में गुरूद्वारा उसी प्रेम से उन्हें गरमा गर्म भोजन परोसता हैं. गुरुद्वारा लंगर (नि:शुल्क रसोई) हॉल समुदाय के सभी लोगों के लिए सातों दिन भोजन उपलब्ध कराता है। यह सिख परंपरा की निरंतरता में, हर हफ्ते  ्हजारों  भोजन परोसने में सक्षम है। इस अनूठी सिख परंपरा में सभी का स्वागत होता है, चाहे वे किसी भी जाति, लिंग, रंग या धर्म के हों। भोजन हमेशा नि:शुल्क और पूर्णतः शाकाहारी होता है, जो समर्पण, सेवा और समानता का प्रतीक है  
गुरुद्वारा, जिसे 'गुर-द्वा-रा' के रूप में उच्चारित किया जाता है, का अर्थ है 'गुरु का द्वार' या 'गुरु के माध्यम से' यहाँ आने वाले लोगों के लिए पका हुआ भोजन प्रदान करता है, जिसे कतार में बिठा कर परोसा जा सकता है, और जो इसे स्वयं नहीं ले सकते उनके लिए गुरुद्वारा भोजन पहुँचाने की भी व्यवस्था कर सकता है।
लंगर का इतिहास गुरु नानक देव जी के युवा काल से जुड़ा है, जब उन्होंने सच्चा सौदा का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने पिता द्वारा दिए गए व्यापार के बीज पूंजी को गरीब और भूखे लोगों को भोजन कराने में लगा दिया, जो कि आज के लाहौर के आसपास हुआ था। इसके बाद, गुरु अंगद देव जी ने इसे संस्थागत रूप दिया, सभी सिख गुरुद्वारों में लंगर की स्थायी व्यवस्था की, जिससे यह सभी के लिए सुलभ हो गया। गुरु अमर दास जी ने तो यहाँ तक कर दिया कि वे मुगल सम्राट अकबर से मिलने से पहले उन्हें संगत के साथ जमीन पर बैठकर लंगर में शामिल होने के लिए कहा। उन्होंने अकबर द्वारा दी गई धनराशि को भी अस्वीकार कर दिया, और लंगर केवल संगत की पवित्र भेंटों के माध्यम से चलाने की ठानी।  अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गुरूद्वारा, सहित  ना केवल भारत के  बल्कि दुनिया भर  के गुरूद्वारों मे रोजाना लाखों लोगों को  चौबीस घंटें भोजन परोसा जाता है।
यद्यपि लंगर को आमतौर पर "नि:शुल्क भोजन" के रूप में समझा जाता है, इसका महत्व नि:शुल्क भोजन से कहीं अधिक है। लंगर सभी लोगों को एकसमान दृष्टि से देखते हुए बिना किसी भेदभाव के सेवा करने की परंपरा है, जिसमें सभी जाति, धर्म और पंथ के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह सेवा, समानता और भाईचारे का प्रतीक है, जहाँ लोगों के बीच के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया जाता है और समाज में एकता का संदेश दिया जाता है।
गुरुद्वारे में जाने से सभी भक्तों को हमेशा शांति और सुकून का एहसास होता है। वहीं भागदौड़ भरी जिंदगी में, गुरुद्वारे में पवित्र मंत्र सुनने में कुछ घंटे आप शांति के बिता सकते हैं। इसी के साथ आप यहां पर लंगर (पवित्र भोजन) परोसा जाता है, जो भक्तों के लिए 24 घंटे तक चलता है।
पंजाब के गोल्डन टेंपल  स्थित गुरुद्वारे को दुनिया की सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई के रूप में भी जाना जाता है। हर दिन 100,000 से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन परोसा जाता है। यहां लंगर की  खास बात यह है कि यह दिन के 24 घंटे और सप्ताह के सातों दिन चलता है।
 गोल्डन टेंपल  गुरुद्वारे के ऊपर का शीर्ष भाग सोने से बना है। इसमें गुरुद्वारे में मानव निर्मित तालाब है जिसे सरोवर कहा जाता है जहां लोग पवित्र स्नान करते हैं। इस तालाब में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है।
इसी तरह राजधानी स्थित बंगला साहिब गुरूद्वारा और रकाब गंज गुरोद्वारो  मे भी हंजारों की संख्या में लोगों के लिए लंगर तैयार किया जाता है।  हर 15 मिनट में बंगला साहिब का हॉल लंगर के लिए भर जाता है।
लगभग 13,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित, गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित है। ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित इस खूबसूरत गुरुद्वारे से आपको हिमालय के खूबसूरत नजारे देखने को मिलेंगे।  ये भारत का सबसे ऊंचा गुरुद्वारा है। दिन-रात लंगर और चाय परोसी जाती है। यहां हर तरफ से तीर्थयात्रियों का जमावड़ा होता है।
इसी तरह महाराष्टृ क़ाआ हजूर साहिब गुरूद्वारा भारत के प्रसिद्ध गुरुद्वारों में से एक, महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित हजूर साहिब में हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। यह गुरुद्वारा सभी सिख अनुयायियों के दिलों में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह वह स्थान है जहां अंतिम सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने अंतिम सांस ली थी और उनका अंतिम संस्कार यही किया गया था। गुरुद्वारे में 24 घंटे लंगर सेवा उपलब्ध है। गुरुद्वारे के पास स्मारक दुकानें/भोजनालय/मेडिकल स्टोर भी हैं, जो भक्तों के लिए देर रात तक खुले रहते हैं और सुबह 6 बजे से ही शुरू हो जाते हैं।
दक्षिण भारत  के पूजनीय गुरुद्वारों में से एक, गुरु नानक झिरा साहिब कर्नाटक के बीदर में स्थित है। भारत की सिलिकॉन वैली - बेंगलुरु से ट्रेन की दूरी पर स्थित इस गुरुद्वारे तक फ्लाइट से भी पहुंचा जा सकता है।ऐसा माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने उस समय बीदर का दौरा किया था जब यह गांव बड़े जल संकट से जूझ रहा था। लोगों की पीड़ा को देखते हुए, गुरु नानक ने शहर को झरने के पानी का आशीर्वाद दिया जो आज भी लोगों को निरंतर पानी की आपूर्ति कर रहा है। यहां तीर्थयात्रियों को रात-दिन 24 घंटे लंगर की सेवा दी जाती है। वी एन आई



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