नई दिल्ली, 18 मई, (वीएनआई),केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का निधन हो गया है. उनकी आयु 60 वर्ष की थे, उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से राजधानी के एम्स अस्पताल मे हुआ.उनके अचानक निधन की खबर से उनके साथी और सभी स्तब्ध रह गये है और सभी जगह शोक की लहर व्याप्त है. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन को निजी क्षति बताते हुए उन्हे समर्पित जनसेवक बताया तथा कि कल रात को ही उन्होने उनसे पर्यावरण संबंधी नीतिगत मुद्दो पर विचार विमर्श किया. प्रधान मंत्री ने कहा कि उनका निधन न/न केवल राजनैतिक जगत के लिये बल्कि समाजिक जगत के लिये भी बहुत बड़ी क्षति है .श्री दवे 5 जुलाई 2016 में केंद्रीय मंत्री बने थे, वह मध्यप्रदेश बीजेपी का बड़ा चेहरा थे.अपनी राजनैतिक जीवन की शुरूअत उन्होने आर एस एस से की और इसके प्रचारक भी रहे
श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोस्त और एक आदर्श साथी के तौर पर अनिल माधव दवे जी की मौत से दुखी हूं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. लोक हित के काम के लिए दवे जी को याद रखा जाएग. .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे लिखा, मैं अनिल माधव दवे जी के साथ कल शाम देर तक, प्रमुख नीतिगत मुद्दों पर चर्चा कर रहा था. उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत नुकसान है मोदी ने एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए लिखा, मेरे दोस्त और एक बहुत ही सम्मानित सहयोगी के अचानक निधन से बिल्कुल चौंक गया, पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे जी के लिए मेरी संवेदना।
उनसे जुड़े लोगो का कहना है कि वे नदियो के विकास और पर्यावरन के लिये समर्पित कार्कर्ता थे शायद यही वजह है कि उनके भोपाल स्थित घर का नाम ही 'नदी का घर" रखा था.
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा पर अच्छी पकड़ थी. इन मे उन्होने काफी पुस्तके भी लिखी. प्रश्नकाल में सवालों का जो जवाब देते थे उसके लिए विपक्ष भी उनकी तारीफ करते थे. हिंदी भाषा के ुत्थान के प्रति उनका योगदान बहुत था. भोपाल मे हुए विश्व हिंदी सम्मेलन से वे गहरे तौर पर जुड़े हुए थे
दवे का जन्म छह जुलाई 1956 को उज्जैन के भदनगर में हुआ था. इंदौरा के गुजराती कॉलेज से एम कॉम करने वाले दवे पायलट भी थे. लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने शिवाजी पर किताब लिखी थी।
गौरतलब है कि 2003 में दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासनकाल को समाप्त करने के लिए बनी कोर टीम में अनिल माधव दवे का महत्वपूर्ण स्थान था. उन्होंने दिग्विजय सिंह के खिलाफ 2003 में मिस्टर 'बंटाधार' का जुमला दिया, जो कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बना. आखिरकार 10 साल बाद भाजपा को सत्ता ्मिली और 13 साल से हर चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत मिलती रही।