मुंबई ,6 दिसंबर ( वीएनआई) यह उस वक्त की बात हैं जब कि महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने दो बच्चों, दीपेश और शुभदा, का झील में डूबने से निधन हो गया। इस घटना ने एकनाथ शिंदे को भीतर तक तोड़ दिया। उन्होंने राजनीति छोड़ दी और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। वह हफ्तों और महीनों तक चुपचाप अपनी पीड़ा में डूबे रहे। घटना २००० की हैं.नियति का ्चक्र देखिये. कभी शिव सेना सुप्रीमो बाला साहिब ठाकरे के विश्वास पात्र माने जाने वाले शिंदे जब उन के पुत्र उद्द्व ठाकरे के मंत्रिपरिषद में थे उन्होंने अचानक अपने कुछ समर्थकों के साथ उद्धव सरकार के खिलाफ दशकों तक बाला साहिव ठाकरे के विश्ववास के खिलाफ बगावत कर दी और जैसा कि सर्व विदित हैं लगभग ढाई वर्ष पूर्व राजनीति की उठापटक के बीच बहुमत जुटा कर उन्होंने अपनी सरकार बना ली. राजनीति मे रूचि रखने वाले एक सज्जन का कहना हैं कि ये वो ही शिंदे हैं जो कभी निजी क्षेति से इतना दुखी हुये कि राजनीति छोड़ने का फैसला किया था , आज वो ही शिंदे हैं जिन्होंने कल दूसरी बार उप मुख्य मंत्री पद की शपथ ली.
इस दुर्घटना में उन के तीसरे पुत्र श्रीकांत जो अपने बहिन भाईयों के साथ नौका पर सवार थे, लेकिन वो बच गये. आज श्री कांत सॉसद हैं जो शिंदे शिव सेना के उभरते हुये नेता हैं
लेकिन राजनीति की उठापटक से दूर इस परिवार की एक मजबूत कड़ी लता शिंदे हैं जो कि शिंदे की पत्नी हैं और जिन्होंने ्त्रासदी, अपनी टूटन के बावजूद अपने परिवार को बिखरने नहीं दिया। दरअसल शिंदे की कहानी उनकी पत्नी लता शिंदे के बिना अधूरी है। उन की कहानी सिर्फ राजनीति की नहीं, बल्कि त्याग, साहस, और अडिग प्रेम की है। एकनाथ शिंदे, जो कभी ठाणे की सड़कों पर ऑटो चलाते थे, आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन इस यात्रा में उनके साथ सबसे बड़ी ताकत थीं उनकी पत्नी, लता शिंदे।
जब एकनाथ संघर्ष कर रहे थे, आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, और अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, तब लता शिंदे ने उनके सपनों में विश्वास किया। उनके शब्द हमेशा यह कहते थे, "तुम्हारे लिए कुछ बड़ा लिखा है।" यही विश्वास एकनाथ को आगे बढ़ने की शक्ति देता रहा। उन्होंने उन्हें हर उस क्षण में सहारा दिया, जब एकनाथ खुद को टूटता हुआ महसूस कर रहे थे।
लता ने अपने पति को संभाला, उनके दर्द को समझा, और उन्हें इस अंधेरे से बाहर निकाला। यह आसान नहीं था। एक मां के लिए अपने बच्चों को खोने का दर्द सह पाना नामुमकिन जैसा है, लेकिन उन्होंने खुद को मजबूत बनाया। उन्होंने यह समझा कि उनके बेटे श्रीकांत और उनके परिवार को उनकी जरूरत है।
आज शिंदे परिवार ने अपने खोए हुए बच्चों की याद में अपने घर का नाम "शुभदीप" रखा है। यह नाम उनके प्यार, उनकी यादों और उनके त्याग का प्रतीक है।
लता शिंदे एक प्रेरणा हैं, जो सिखाती है कि प्रेम और सहारा कैसे किसी टूटे हुए इंसान को वापस खड़ा कर सकता है। उनका बलिदान और अडिग विश्वास एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का नेता बनने की प्रेरणा देता रहा। यह सिर्फ एक मुख्यमंत्री की सफलता की कहानी नहीं है; यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसने अपने परिवार को हर संकट से उबारा और अपने पति के सपनों को साकार करने में हर कदम पर उनका साथ दिया. वी एन आई
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