जंगली परिंदों को पिंजरे नहीं भाते
पिंजरा, लम्हा लम्हा रूह पर प्रहार है जहाँ लम्हे घंटों में ,घंटे दिनों में तब्दील हो जाते हैं
काश परिंदे पिंजरे में कैद न होते ,काश परिंदे ,पिंजरे से बाहर सुरक्षित होते
दुनिया की आँखें आदमी के लिए जेल हैं
दुनिया के विचार आदमी के लिए पिंजरा