नयी दिल्ली, 28 जनवरी (शोभना जैन/वीएनआई) राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लंबे समय से चली आ रही इन अटकलों को पूरी तरह से खारिज किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. राष्ट्रपति ने इन अटकलों को ‘‘गलत और द्वेषपूर्ण' करार दिया है. राष्ट्रपति ने अपनी हाल में प्रकाशित आत्मकथा ‘दि टरबुलेंट इयर्स : 1980-96' के दूसरे खंड में इन खबरों पर अब तक पड़े रहस्य के परदे को उठते हुए इस बारे में अपना पक्ष साफ़ किया है.
आत्म कथा के इस दूसरे दूसरे खंड में श्री मुखर्जी ने लिखा है, ‘‘कई कहानियां फैलाई गयी हैं कि मैं अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहता था, मैंने दावेदारी जताई थी और फिर मुझे काफी समझाया-बुझाया गया था.' श्री मुखर्जी ने लिखा है, ‘‘और यह कि इन तमाम बातों ने राजीव गांधी के दिमाग में शक पैदा कर दिए.जबकि ये कहानियां पूरी तरह गलत और द्वेषपूर्ण हैं.' रूपा प्रकाशन की ओर से प्रकाशित इस किताब में राष्ट्रपति ने बताया है कि प्रधानमंत्री पद के मुद्दे पर उनकी और राजीव गांधी की बातचीत एक बाथरूम में हुई थी. पुस्तक में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को वक्त से आगे की सोच वाला शख्स बताया है.
उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने आज यहाँ राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में इस पुस्तक का विमोचन किया. इस अवसर पर उप राष्ट्रपति ने कहा की यह खंड उन कुछ सुखद और दुखद घटनाओ का ब्यौरा है , जिसकी राष्ट्रपति साक्षी रहे.
श्री मुखर्जी ने 'द टरबुलेंट ईयर: 1980-1996' में 1980 और 1990 के दशक के उन कुछ यादगार घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिन्हें आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सर्वाधिक दुखद घटनाओ वाला काल माना जाता हैइस खंड में इंदिरा गांधी की हत्या, ऑपरेशन ब्लू स्टार और राजीव गांधी कैबिनेट से उनके निकाले जाने सहित उनके राजनीतिक जीवन की अहम घटनाओं का जिक्र किया गया है।
‘इस सवाल पर कि उन्होंने श्री गांधी ने कैबिनेट से क्यों हटाया और पार्टी से क्यों निकाला, श्री मुखर्जी लिखते है 'मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियां की और मैंने भी की. वह दूसरों की बातों में आ जाते थे और मेरे खिलाफ उनकी बाते सुनते थे. मैंने अपने मेरे धैर्य पर अपनी हताशा हावी हो जाने दी.' गौरतलब है किउन्हें अप्रैल 1986 में कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) नाम की पार्टी बनाई थी. बहरहाल, श्री मुखर्जी मानते है कि वह आरएससी बनाने की भूल को वह टाल सकते थे. उन्होंने लिखा है, ‘‘मुझमें यह समझदारी होनी चाहिए थी कि मैं जनाधार वाला नेता नहीं था (और न हूं). कांग्रेस को छोड़ने वाले शायद ही कामयाब हुए. मेरा कभी उस तरह का समर्थन आधार नहीं था जैसा कि 1960 के दशक में अजय मुखर्जी या हाल में ममता जैसे बागी नेता और एक तरह से खुद इंदिरा जी का था। पुस्तक में उन्होंने मत व्यक्त किया है कि '1986 और 1987 के निर्णायक सालों के दौरान जब राजीव के लिए सब कुछ गलत होता दिख रहा था, उस वक्त मैं कांग्रेस पार्टी और सरकार को कुछ मदद कर सकता था.' वी एन आई