नई दिल्ली 12 फरवरी (सुनील जैन, वी एन आई) महिलाओ का मसला जोर शोर से एजेंडा पर है,लेकिन बावजूद इसके वे हमेशा हशिये पर ही रही, कितनी मासूम् \'नन्ही\' आज भी रोज गायब होती है और दुनिया के समंदर मे खो जाती है कोई कहता है , उसने लाल बत्ती इलाके मे खोई हुई नन्ही को देखा है , घोर गरीबी काट रही नानी दुनिया को सफाई देती है नन्ही हैजे से मर गयी लेकिन नन्ही नही लौटती, इस भरी दुनिया मे निपट अकेली नानी ,नन्ही के लिये कलपती , अकेलेपन मे अपने आप नन्ही से बातचीत करती रहती है,इंतजार करते करते देह अकड़ जाती है. अकड़ी मृत देह लाख कोशिशो के बाद भी खुल नही पाती है. आखिरकार अकड़ी देह और खुली आंखो से ही नन्ही की नानी को अंतिम संस्कार के लिये ले जाया जाता है, भले ही यह जिंदगी का कड़वा सच है लेकिन आज यह नाटक देख कर मै सिहर सी गयी हूं मै लेकिन उम्मीद है एक दिन दुनिया खूबसूरत बनेगी, नन्ही गायब नही होगी, नानी और नन्ही साथ साथ रहेगी और नानी अकड़ी देह से नही बल्कि शांति से देह त्यागेगी.\'
एन एस डी के 17 वें वार्षिक भारत रंग अंतरराष्ट्रीय महोत्सव मे मानवीय संवेदनाओ की चितेरी लेखिका इस्मत चुगताई द्वारा लिखित और नसीरूद्दीन शाह द्वारा निर्देशित \'कमबख्त बिलकुल औरत\' नाटक के मंचन को देख कर निकल रही युवती की यह टिप्प्णिया अनेक सवालो को जन्म दे रही थी. सवाल, सवाल और सवाल , जिनके जबाव किसी के पास नही है. दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में इसी महोत्स्व की कड़ी बतौर इस्मत चुगताई की तीन कहानियों , अमर बेल , नन्ही की नानी ,दो हाथ पर आधारित नाटक \'कमबख्त बिलकुल औरत\' के मंचन ने विचार मंथन के द्वार खोल दिये । नन्ही की नानी -एक ऐसी औरत, नानी की कहानी है है जो अपना सब कुछ खो देने और लोगों द्वारा कई बार मृत मानी जा कर भी जीवित बनी रहती है,दो हाथ- हाथों के एक जोड़े ्की कहानी है जो बच्चा भले ही पति के लिये उसकी अनुपस्थ्ति मे किसी गैर मर्द से हुआ लेकिन पति के लिये वह बच्चा सिर्फ उसका सहारा है, उसके लिये वैध या अवैध बच्चे की परिभाषा बे मायने है जबकि अमरबेल-एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है ,जिसकी पत्नी की सम्मोहक सुंदरता धीरे धीरे उसे निचोड़ कर रख देने वाली अमर बेल में परिवर्तित हो जाती है. ये तीनो औरते दर्शको के आगे सवाल बन कर खड़ी हो जाती है और सवालो के जबाव किसी के पास नही है
निश्चय ही इस्मत आपा ने जिस तीखे और बेबाक तेवर से स्त्री के अंतरद्वन्दो को सामने रखा निर्देशक नसीरूद्दीन शाह ने अनूठी जीवतंता से अंतरद्वंदों को मंच पर मर्म स्पर्शी ढंग से पेश किया, लगा दरसल ये तमाम पात्र अपनी जंदगी को ले कर हमसे मुखातिब है उनकी दुनिया ही एक रंगमंच है, रंगमंच के सिवा कुछ भी नहीं।\' शायद तभी रंगमंच को जीने वाले, इसे ज़िंदगी जीने का सलीक़ा कहते हैं. समीक्षको ने शायद सही ही कहा है कि इस्मत ने महिलाओं के मुद्दे पर सरल, प्रभावी और मुहावरेदार भाषा में ठीक उसी प्रकार से लेखन कार्य किया है जिस प्रकार से प्रेमचंद ने देहात के पात्रों को बखूबी से उतारा है।, और पूरा समय दर्शक नातक, इसकी भाषा से बंधा रहता है.इस्मत के अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है।ऐसा नहीं कि इस्मत के अफसानों में सिर्फ महिला मुद्दे ही थे। उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी बखूबी पेश किया। यही नहीं वह अफसानों में करारा व्यंग्य भी करती थीं जो उनकी कहानियों की रोचकता और सार्थकता को बढ़ा देता है।
नाटक का निर्देशन जाने माने सिने मंच अभिनेता व् मंच निर्देशक नसीरुद्दीन शाह ने किया। वे देश के ही नहीं विश्व के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं । क्योंकी नसीर स्वंय एक अच्छे अभिनेता हैं उन्हें मंच पर अभिनेताओं से अच्छा काम लेना आता है। निर्देशन अपने आप मे अनूठा है पूरा नाटक के तीनो अंको में क्रमश मनोज पाहवा , सीमा पाहवा व् लवलींन मिश्रा ने एकल जीवंत अभिनय कर पात्रो के व्यथा अंतर्द्वंद्दो को सजीव कर दिया । ये सारे अभिनेता मंच के जाने माने अभिनेता हैं । सीमा व् लवलीन बरसों पहले टी वी सीरियल \"हम लोग \" की जानी मानी बड़की व् छुटकी ही हैं । नाटक की वेश वेश्भूषा, परिधान, प्रकाश व्यवस्था सभी जैसे पूरक की भूमिका मे थे.
नाटक मोटले समूह की पेशकश थी । मोटले की स्थापना नसीरुद्दीन शाह व् बेंजामिन गिलानी ने 1979 में की थी । यह दल पहले अंग्रेज़ी नाटकों का प्रदर्शन करता था पर पिछले 8 सालों से हिन्दुस्तानी में भी नाटक कर रहा है. एन एस डी के निदेशक वामन केन्द्रे के अनुसार इस बार इस महोत्सव मे विश्व रंग मंच के जाने माने निर्देशको तथा कलाकरो की प्रस्तुतिया पेश की जा रही है. देशी, विदेशी नाटक खासे आक्र्षण का केन्द्र बने हुए है. महोत्सव मे फ्रांसीसी नाटक \'ले चैन्त्स दे ई उमई\' , शास्त्रीय संगीत गायिका प्रो रीता गांगुली द्वारा बे्ग़म अख़्तर के जीवन पर आधारित निर्देशित और अभिनीत\'जमाले बेग़म अख़्तर\',प्रसिद्ध निर्देशक फिरोज़ खान द्वारा अभिनेता अनुपम खेर के जीवन संघर्ष पर आधारित नाटक\'कुछ भी हो सकता है\', जिसमे मुख्य भूमिका स्वयं अनु्पम खेर ने ही निभाई , अजीत सिंह पालावत द्वारा निर्देशित राजस्थानी नाटक\'कसुमल सपनो\' , बंगलादेश के निर्देशक कमालुद्दीन नीलू का नाटक \'मैकबर\', अनूप जोशी बंटी का नाटक \'प्लीज़ मत जाओ\' नीरज कुंदेर का हिन््दी और बघेली मिश्रित नाटक\' कर्ण भारम\', इज़राईली प्रस्तुति \'अनआर्म्ड फोर्सिस\' और क्रिस्टोफर लोअर द्वारा निर्देशित अंग्रेजी नाटक \'स्टेज ऑफ ओ नील\' खासे सराहे गये
श्री केन्द्रे ने कहा कि रंगमंच दरअसल ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीने का मौका देता है। रंगमंच के पथ पर चलकर जीवन को जानने, समझने और जीने का हुनर आता है। राष्ट्रीय नाट्य मंत्रालय से जुड़े तथा रंग कर्मी अनूप बरूआ के अनुसार रंगकर्मी के रूप में दूर खड़े होकर ख़ुद को भी एक विश्लेषक की नज़र से देख सकते हैं। एक आईना सा बन जाता है अपने सामने, हम देख सकते हैं अपने आप को। । रंगमंच का सम्मोहन अद्भुत है।इसी सम्मोहन से खींचे दर्शक थियेटर मे आते है.उन्होने कहा कि एन एस डी समय समय पर इस तरह के आयोजन करता रहा है, जिसमे बड़ी तादाद मे नाट्य प्रेमियो को देश विदेश के उत्कृष्ट नाट्य प्रस्युतियो को देखने का मौका मिलता है. इस तरह के आयोजन खासे लोकप्रिय रहते है.इसके अलावा इस बार थियेटर बाज़ार भी इस महोत्सव का एक विशेष आक्रषण है
नाटक देख कर लौट्ते वक्त बरबस \' दो हाथ \' के उस पात्र का चेहरा , सामने आ जाता है जो दूसरे पुरूष से पत्नि के बच्चे का पिता बना है, सूट्केस मे से उस बच्चे के लिये लाया गया छोटा सा पीला कुर्ता और लाल मौजे हाथ मे लिये संतोष से मुस्कराता पात्र और उससे उसके पड़ोसी की यह टिप्पणी\' तु्म्हारी गैर मौजूदगी मे तुम्हारी बीवी ्मॉ बन गयी\' और उसका जबाव\'बुढापे मे उसके दो हाथ मेरा सहारा बनेंगे \' हवा मे जम गये से लगे. वी एन आई