आज है नवदुर्गा के दूसरे और तीसरे स्वरूप की पूजा

By Shobhna Jain | Posted on 9th Apr 2016 | देश
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नई दिल्ली 9 अप्रैल (वीएनआई) कल से वासंतिक नवरात्र शुरू हो गया है। इस बार की नवरात्रि मान्यता के आधार पर केवल 8 दिन की ही हैं। इसमें 14 अप्रैल को अष्टमी की पूजन की जाएगी। इस दिन श्रद्धालु माता के महागौरी रूप की आराधना करते हैं। इसके बाद 15 तारीख को श्रीराम नवमी मनाई जाएगी, साथ ही माता की नवमी पूजन भी की जाएगी। आज वासंतिक नवरात्रि का दूसरा दिन है और आज नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप की पूजा की जा रही है. लेकिन खास बात ये है कि आज ही नवदुर्गा के तीसरे स्वरूप की भी उपासना की जा रही है. यानी आज नवरात्रि की तिथि भले ही दूसरी है लेकिन दूसरा और तीसरा नवरात्रा दोनों आज ही हैं.यानि इस बार एक नवरात्रा कम होगा क्योंकि आज मां के दूसरे और तीसरे दोनों स्वरूप की पूजा की जा रही है है नवरात्र के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। ब्रह्मचारिणी देवी भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या से है और ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप की चारिणी – तप का आचरण करने वाली। शास्त्रों ने कहा भी है कि वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म। माता का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय एवं अत्यंत भव्य है। उनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु है।साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार माता अपने पूर्व जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। तब नारदजी के उपदेश से भगवान शंकरजी को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। ऐसी तपस्या करने के बाद इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। तपस्या कई हजार वर्षों तक करने के बाद बिना खाये-पिये रहने के कारण इनका एक नाम अर्पणा भी पड़ा। इनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देव, ऋषि, मुनि उनकी सराहना करने लगे। अंत में ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा कहा हे देवी आज तक ऐसी कठिन तपस्या किसी ने नहीं की। इसलिए भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। मां जगदम्बा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है और मनुष्य का मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। मां सबके भण्डार भरती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने का मंत्र बहुत ही आसान है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। मां भगवती की तीसरी शक्ति ‘चन्द्रघण्टा’की उपासना तथा विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. नवरात्र के तीसरे दिन चन्द्रघण्टा की पूजा इसलिए होती है क्योंकि माता का पहला रूप और दूसरा रूप भगवान शिव को पाने के लिए है। जब मातारानी भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह अपने आदिशक्ति रूप में आ जाती हैं। इनका यह स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है. नवरात्र की दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. मां चन्द्रघण्टा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं. इनकी आराधना सद्य: फलदायी हैं. हमें निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए. उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद्गति को देने वाला है मां चंद्रघंटा की उपासना करने का मंत्र बहुत ही आसान है। मां दुर्गा की भक्ति पाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है: पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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