नई दिल्ली,9 अगस्त (डॉ पंकज मिश्र/ वीएनआई) टमाटर इस साल फिर से लाल-पीला हो गया है इसी के चलते न/न केवल गरीब तबका बल्कि अच्छी खासी आमदनी वाले भी उससे दूर हो गये लेकिन आसमान छूती इन कीमतो से जहा ग्राहक परेशान है वहा किसान बदहाल का बदहाल है.अब हालत यह है कि लाल लाल टमाटर खाने की थाली से दूर हो गये.टमाटर की आसमान को छूती कीमतो को लेकर बने चुटकुले एक बार फिर बाजार में लौट आए . इसी के मद्देनजर टमाटर इन दिनों विपक्ष के हाथ में निशाना बन कर आ गया है, जिससे वह अपना निशाना सत्ताधारी पार्टी पर साध तो रहे हैं टमाटर को ले कर विपक्ष धरने प्रदर्शन् सभी कर रहा है लेकिन टमाटर नरम नही हो रहा है. लखनऊ में तो कांग्रेस ने बैंक ऑफ टमाटर तक खोल दिया। सोशल मीडिया में एक वीडियो खूब दौड़ रहा है, जिसमें सब्जी लेकर जा रही महिला से चेन खींचने के बजाय उसके हाथ से टमाटर छीनकर लुटेरे भाग जाते हैं और वह मायूस होकर कहती है कि इससे अच्छा वह चेन ले जाते। यह महंगाई झेल रही जनता का दर्द है। लेकिन इन तमाम बातो के साथ किसान की दुखद तस्वीर है जो आसमान छूती उंची कीमतो के बावजूद बदहाल है और मुनाफा उठा रहे है बिचौलिये और जमाखोर.दरसल किसान के पास होने के वक्त तक तो उस की कीमत मामूली ही रहती है लेकिन खेत से उठते ही उन की कीमते बढ जाती है. इस के साथ मौसम और अनेक वजहे अक्सर कीमते और बढा देती है
पूरे देश में टमाटर महंगे हो गए। 30 रुपये प्रति किलो वाला भाव अचानक तिगुनी उंची कीमतो यानि 80-100 रुपये किलो पहुंचा तो यह अखबारों में बहस का मुद्दा बन गया लेकिन फिर वही सवाल इन उंची कीमतो का लाभ उसे नही मिल रहा है फायदा बिचौलियो जमाखोरो को मिल रहा है.सवाल यह है कि ऐसा हुआ क्यों? अभी करीब तीन महीने पहले मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें किसान सड़क पर पड़े सैकड़ों क्विंटल टमाटरों पर ट्रैक्टर चला रहे हैं। कई किसानों ने टमाटर की खेती नहीं की क्योंकि उनको सही रेट नहीं मिल रहा था। आखिर टमाटर के भाव सातवें आसमान पर क्यों पहुंचे। तहकीकात में जाएं और मंडी के आढ़तियों से बात करें तो पहला जवाब यही मिलता है कि सप्लाई में कमी आ गई। इसका मतलब है कि आवक कम हुई। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर टमाटर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की मंडियों से आता है। माना यह भी जा रहा है कि बारिश में देरी भी इसकी एक वजह है।
सब्जियों के लिए बारिश का मौसम सबसे बुरा होता है। खेत में पानी भरने से सब्जियां सड़ने लगती हैं और अगर तैयार भी हो जाती हैं तो इन्हे लाने ले जाने में दिक्कत होती है। टमाटर अब पूरे साल पैदा होने वाली फसल हो गया है। सर्दियों वाला टमाटर दिसम्बर से मार्च तक पैदा होता है। पहली बारिश के साथ ही उत्तर भारत की टमाटर की फसल चौपट हो जाती है। उस वक्त दक्षिण से टमाटर आता है जो आवागमन शुल्क के चलते महंगा बिकता है।
ऑंकड़ो के अनुसार देश मे भंडारण प्रसंस्करण की प्रयाप्त सुविधाये नही हैजिस की वजह से एक लाख करोड़ रूपये के कृषि उत्पाद हर साल नष्ट हो जाते है ्दरअसल देश मे शीत गृहो की भंडारण क्षमता मे तीस लाख से चालिस लाख टन की कमी है उत्तर प्रदेश में दिक्कत यह है कि यहां भंडारण के लिए न तो कोई सरकारी व्यवस्था है और न ही निजी तौर पर। जो कोल्ड स्टोर हैं, उनमें आलू का भंडारण होता है। ऐसी स्थिति में जिन दिनों सबसे ज्यादा टमाटर की पैदावार होती है, उन दिनों किसान इनको कहां रखे। उसे मजबूरन बाजार में अपना पूरा उत्पादन उतारना पड़ता है। ऐसे में कीमतें गिर जाती हैं। अगर इनको एक महीने भंडार करने की सहूलियत भी किसानों को मिल जाए तो उसे अच्छे रेट मिल जाएंगे और कीमतें भी ज्यादा नहीं होंगी।
शाहजहांपुर के हरदुआ गांव में रहने वाले किसान राजेन्द्र जब आज टमाटर का रेट सुनते हैं तो फट पड़ते हैं। फरवरी से लेकर अप्रैल तक उनके टमाटर को मंडी में कोई पूछने वाला नहीं था। यहां तक कि कई बार ग्राहक न मिलने पर टमाटर फेंकने तक पड़ गए। आज सौ रुपये किलो बिक रहे टमाटर का चौथाई हिस्सा भी उन्हें मिल जाए तो बैंक का पूरा कर्ज निपट जाएगा।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में कृषि अर्थशास्त्र विभाग के वैज्ञानिकों ने टमाटर की कीमत में उतार-चढ़ाव का अध्ययन किया। टमाटर मार्केट इंटेलीजेंस परियोजना के तहत पिछले 14 वर्षों में देशभर में टमाटर की पैदावार, मंडियों में टमाटर की आवक और मूल्यों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पता चला कि जब टमाटर की बंपर पैदावार होती है तो भंडारण क्षमता का बहाना बनाकर बड़े व्यापारी जानबूझकर दाम कम कर देते हैं, जिससे किसान को सस्ते में बेचना मजबूरी हो जाता है। इसी का फायदा उठाकर बड़े जमाखोर टमाटर को स्टोर कर लेते हैं, जिससे मंडियों में टमाटर की आवक कम हो जाती और इसके दाम बढ़ जाते हैं। टमाटर मार्केट इंटेलीजेंस परियोजना के अध्ययन में बताया गया कि टमाटर कीमत को अप्रैल से लेकर जून तक कम रखा जाता है लेकिन इसके बाद जब मानसून आता है तो इसके दाम को बढ़ा देते हैं।
टमाटर के दामों को बढ़ाने में देशभर में सरकारी कोल्ड स्टोरों की कम संख्या भी जिम्मेदार है। देश में 51,70,946 मीट्रिक टन कोल्ड स्टोरेज की क्षमता है। इसमें से 95 प्रतिशत कोल्ड स्टोरेज निजी हैं। तीन प्रतिशत सहकारिता और मात्र दो प्रतिशत पब्लिक सेक्टर का है। 75 प्रतिशत कोल्ड स्टोरों में आलू का भंडारण किया जाता है। देश मे कोल्ड्स्टोरेज की भंडारण क्षमता मे 25 प्रतिशत की कमी हैऐसे में किसान टमाटर का उत्पादन करके उसे कहां रखें। बरेली में फरीदापुर गांव के किसान महेश गंगवार इसे कच्ची फसल मानते हैं। कच्ची फसल यानी उसकी कीमत सहीं न मिली या उसे खेत से समय पर तोड़ा नहीं गया तो सड़कर खराब हो जाएगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने एक रिपोर्ट में बताया है कि देश में कोल्ड स्टोरेज की संख्या कम होने के कारण एक साल में लगभग एक लाख करोड़ की फल-सब्जियां हर साल सड़ जाती हैं, आईसीएआर के लुधियाना स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने इस रिपोर्ट में टमाटर का खास तौर पर जिक्र करते हुए टमाटर के लिए अलग से कोल्ड स्टोरेज और टमाटर के विपणन की निगरानी करने का सुझाव दिया है। सरकार नाबार्ड के जरिये कोल्ड स्टोरेज की संख्या बढ़ाने का प्रयास तो कर रही है लेकिन यह अभी दूर की कौड़ी है।
बहरहाल टमाटर के सस्ते होने की बात करें तो अभी वक्त लगेगा। बारिश और बाढ़ कम होने के बाद नई फसल आने तक ज्यादा उम्मीद न की जाए तो बेहतर है।
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