पटना, 11 मई (मनोज पाठक ) बिहार में कल तक जहां लड़कियां 'जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता' है कि तर्ज पर अपने माता-पिता की पसंद के लड़के के साथ परिणय सूत्र में बंध जाती थी, वहीं अब समय बदल गया है। आज लड़कियां पसंदीदा हमसफर नहीं मिलने पर आसानी से 'ना' कह रही हैं। यह स्थिति न केवल शहरों बल्कि सुदूरवर्ती गांवों में भी देखी जा रही है।
इस बीच सरकार ने दहेज और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को लेकर कई कदम उठाने की घोषणा की है। ऐसे में बिहार की लड़कियां भी इन सामाजिक बुराइयों को लेकर 'ना' कहकर अपने जीवनसाथी को मन मुताबिक चुनने का हक मांगने को लेकर आगे आई हैं।
आज लड़कियां अपनी पसंद का लड़का नहीं होने पर न केवल दरवाजे पर आई बारात लौटा रही हैं, बल्कि विवाह मंडप में भी लड़कों को नापसंद कर अपने निर्णय को सही ठहरा रही हैं।
बक्सर जिले में दूल्हे के चेहरे के रंग-रूप को लेकर दुल्हन ने शादी ना करने का फैसला लिया और कहा कि यह 'स्मार्ट' नहीं है।
बक्सर के अंजनी चौहान की शादी धनसोई थाना क्षेत्र के कैथहर गांव की एक लड़की से तय की गई थी। शादी को लेकर दोनों पक्ष मंगलवार को बक्सर के रामरेखा घाट विवाह मंडप पहुंचे। अपने बेटे की बारात लेकर जैसे ही वर पक्ष के लोग मंडप पहुंचे, इस दौरान रीति-रिवाज से सब कुछ हो रहा था। इसी दौरान दुल्हन ने जब दूल्हे का सांवला रंग देखा तो शादी से इंकार कर दिया।
इसके बाद लोगों ने लड़की पक्ष के बुजुर्गो से अनुरोध किया कि लड़की को समझाने का प्रयास करें नहीं तो समाज में बदनामी होगी लेकिन लड़की ने किसी की बात नहीं सुनी और अपने फैसले पर अड़ी रही। अंत में दूल्हे को बिना शादी किए ही लौटना पड़ा।
पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र की प्रोफेसर एस. भारती आईएएनएस से कहती हैं, "इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण जागरूकता है। अब आम लड़कियों के मन में भी यह धारणा बैठ गई है कि यह जीवन उनका है और सुख और दुख उन्हीं को झेलना है। लड़कियों में आत्मविश्वास जगा है।"
वे कहती हैं, "इससे एक बहुत बड़े सामाजिक बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। इसके लिए अब समाज के लोगों की सोच बदलनी होगी और इससे पूरा समाज बदलेगा, बेटियों की हिम्मत रंग लाएगी और अब कोई भी बेटी अपने शराबी पति से नहीं पिटेगी और ना ही दहेज की बलि चढ़ेगी।"
इसी महीने मुजफ्फरपुर के सरैया थाने के गंगौलिया गांव में भी एक मामला सामने आया, जब एक शराबी दूल्हे को बिना दुल्हन के वापस लौटना पड़ा। गंगौलिया गांव के विशिष्ट दास की बेटी की शादी पारू थाना के कमलपुरा गांव के रामप्रवेश दास से होने वाली थी।
आठ मई को शादी की रात द्वारपूजा की रस्म चल ही रहा थी, तभी बैंड की धुन पर बाराती नाचते-गाते दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचे। जयमाल की तैयारी हो रही थी, तभी दुल्हन ने दूल्हे को लड़खड़ाते हुए देख लिया। दुल्हन ने तुरंत साहसिक फैसला लिया और उसने नशेड़ी दूल्हे के साथ शादी करने से इंकार कर दिया।
ऐसा ही एक मामला पूर्वी चंपारण जिले के महंगुआ गांव में भी प्रकाश में आया, जहां विक्षिप्त दूल्हे से लड़की ने शादी करने से इंकार कर दिया।
अनुमान के अनुसार, पिछले दो-तीन सालों से बिहार में ऐसी सौ से ज्यादा घटनाएं हुई हैं, जिनमें लड़कियों ने अपने होने वाले पति या घर से संतुष्ट नहीं होने के कारण शादी से इनकार किया है।
सामाजिक संस्थान 'साथी खेल, संस्कृति, सोशल एंड वेलफेयर सोसाइटी' के सचिव दीपक कुमार मिश्रा आईएएनएस से कहते हैं कि लड़कियों के शिक्षित होने के कारण भी स्थिति में बदलाव आया है, जिससे अपनी जिंदगी के फैसले लड़कियां खुद ले रही हैं। हालांकि, वह यह भी मानते हैं कि बिहार में अभी यह स्थिति पूरी तरह सुधरी नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह इस बदलाव का संकेत है कि अब लड़कियां 'जैसा भी है मेरा पति, मेरा देवता है' से आगे बढ़कर पति को हमसफर मान रही हैं।
--आईएएनएस