नई दिल्ली, 30 अगस्त, (वीएनआई) सर्वोच्च न्यायलय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने से संबंधित मामले पर फैसला सुरक्षित रखा है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। सर्वोच्च न्यायलय सुनवाई कर रहा है कि 12 साल पहले के एम नागराज मामले में सर्वोच्च अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं। वहीं केंद्र ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि एम नागराज केस में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार के लिए 7 जजों की बेंच का गठन किया जाना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस बात का भी आकलन कर रही है कि क्या क्रीमीलेयर के सिद्धांत को एससी-एसटी समुदाय के लिए लागू किया जाए, तो फिलहाल सिर्फ ओबीसी के लिए लागू हो रहा है। इससे पहले केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय से कहा था कि 2006 के नागराज जजमेंट के चलते एसी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है।
केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से झेल रहा है। उन्होंने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा की जरूरत है। केंद्र का तर्क है कि एससी-एसटी समुदाय पहले से ही पिछड़े हैं इसलिए प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा कि जब एक बार उन्हें एससी/एसटी के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो पदोन्नति में आरक्षण के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है? हालांकि सर्वोच्च अदालत का रुख अलग है।
No comments found. Be a first comment here!