नई दिल्ली, 25 मई ( सुनील/अनुपमाजैन/ वीएनआई) भोर की किरणों के प्रकाश बिखेरते ही आज देश विदेश स्थित जैन मंदिर एक विशेष दिव्यता से भर उठे, ना केवल मंदिरों में घंटे घनघना रहे थे और मंत्रोच्चार हो रहा था, बल्कि दुनिया भर के दिगंबर जैन धर्मावंलबियों ने घरों में भी पूजा अर्चना और जिनवाणी, शास्त्र पूजन और आचार्यों के प्रवचन सुन कर भक्ति भाव से श्रुत पंचमी पर्व मनाया जैन धर्मावलम्बियों में इस पर्व की बहुत महत्ता हैं.आज ही के दिन जिन आगम का पहला शास्त्र "षडखंडागम" लिपिबद्ध हुआ, तभी से ही जैन मतावंलबी ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले इस श्रुत पंचमी को पर्व के रूप में मनानें लगें. ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले इस श्रुत पंचमी के दिन बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलंबी पूजा अर्चना,स्वाध्याय, मनन, ध्यान करनें और जरूरत मंदों की मदद करते हैं जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथ रखकर गाजे-बाजे के साथ मां जिनवाणी तथा धार्मिक - शास्त्रों की शोभायात्रा निकालते हैं..
दरअसल,चौबीसवें जैन ती्र्थकर महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद धीरे-धीरे उनके अनुया्यियों के लियें उनके दिव्य उपदेशों को यथावत मौखिक रूप से याद करना एक बड़ी चुनौती सा बन गया. एक समय तक तो भगवान के उपदेशों को परंपरागत तरीके से एक आचार्य से दूसरे आचार्य के जरियें श्रद्धालुओं तक मिलतें रहे लेकिन दिनों दिन जब यह मौखिक ज्ञान क्षीण होने लगा और उन दिव्य उपदेशों का थोड़ा अंश ही बचा, तब भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग 683 वर्ष बाद यानि 2000 वर्ष पूर्व जैन ज्ञानी आचार्य धरसेन ने अपने नवशिष्यों मुनि पुष्पदन्त और मुनि भूतबलि को आदेश दिया की महावीर स्वामी की दिव्य वाणी को लेखन के माध्यम से संरक्षित किया जाए. तब आचार्य पुष्पदंत, एवं आचार्य भूतबलि ने 'षटखंडागम शास्त्र' की रचना की थी, यानि जिन आगम का पहला शास्त्र लिपिबद्ध हुआ. जैन विद्वानों के अनुसार आज ही के दिन जैन धर्म के प्रमुख मंत्र 'णमोकार मंत्र' का भी लिखित उल्लेख हुआ था. इस दिन जैनधर्मावलम्बी पवित्र जैन ग्रंथ जिनवाणी का पूजन और वाचन करते हैं.दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथि को श्रुत पंचमी पर्व मनाया जाता है.जैन मुनियों के अनुसार श्रुत पंचमी पर्व ज्ञान की आराधना का महान पर्व है, जो जैन श्रद्धालुओं को वीतरागी संतों की वाणी सुनने, आराधना करने और प्रभावना बांटने का संदेश देता है, वे इस दिन मां जिनवाणी की पूजा अर्चना करते हैं.
तपस्वी दार्शनिक जैन आचार्य 108 श्री विद्या सागर जी महाराज ने इस अवसर पर अपने उद्बोधन मे कहा कि सही दिशा कहा है,कहाँ जाना है, कहाँ जा रहे हो बच्चे, नव जवान और वृद्ध सभी वर्ग का यही हाल है किसी को पता ही नहीं कि सही मार्ग क्या है . किस मार्ग में चल कर जीवन को सार्थक कर सकते हैं कुछ लोग बिना लक्ष्य के ही इधर उधर घुम घुमकर अपना समय बर्बाद कर रहें हैं और जिन्दगी भर इसी उलझन में फसे रहते हैं कि किस मार्ग में जाना है और किस मार्ग में नहीं जाना है |हमारे आचार्यों ने हम पर उपकार करके शास्त्रों के माध्यम से बताया है कि सदमार्ग में चल कर हम अपना उद्धार किस प्रकार से कर सकते हैं और बिना किसी उलझन में फसे हम अपने लक्ष्य कि प्राप्ति कर सकते हैं ."आज श्रुत पंचमी पर्व बहुत धूम – धाम से प्रातः भगवान का अभिषेक, शांति धारा, जिनवाणी एवं आचार्य श्री कि पूजन करके मनाया गया | . आचार्यश्री इस समय छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ तीर्थ में ससंघ विराजमान हैं, तथा पूरा समय घोर तप साधना, स्वाध्याय में रत हैं.श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री के दर्शन के लिए देश विदेश से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है.
आज देश भर में आचार्यों,मुनियों, आर्यिकाओं व साधु संतों ने पूजा अर्चना, स्वाध्याय, मनन, ध्यान करनें और जरूरत मंदों की मदद करने उपदेश दिया. इस अवसर पर उत्तरप्रदेश स्थित जैन तीर्थ ललितपुर में निर्यापक मुनि सुधा सागर जी महाराज, मध्यप्रदेश मुंगावली में निर्यापक श्रमण मुनि अभय सागर जी महाराज व अयोध्या तीर्थ क्षेत्र में विदुषी गणिनी प्रमुख ज्ञान मति माता जी व चंदना माता जी जैसे श्रद्धेयविद्वत जनों तपस्वियों के सानिध्य में मंदिर परिसरों में पूजा अर्चना और जिन वाणी पूजन हुआ
जैन शास्त्रों में दी गई इस पर्व की कथा के अनुसार जैन प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम और 24वें तीर्थंकर वर्धमान जिनेंद्र यानी महावीर स्वामी से होते हुए ये ज्ञान आचार्य धरसेन तक पहुंचा. आचार्य धरसेन ने मुनिद्वय ्पुष्पदंत और भूतबलि मुनियों को बुला कर उन्हें मंत्र दीक्षा दी. इन दोनों मुनियों ने मंत्रों की शुद्धि के लिए देवी का आह्वान किया. इसके बाद जिनेंद्र की वाणी को लिखना शुरू किया. यह प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं. जैन धर्म के सबसे प्रमुख मंत्र 'णमोकार मंत्र' भी इन्होंने ही पुस्तक में लिपिबद्ध किया है. इस तरह 6 खंडो का यह ग्रंथ तैयार हुआ जो जीवस्थान क्षुद्रक बंध, बंध स्वामित्व ,वेदनाखंड, वर्गणाखंड और महाबंध हैं. इन ज्ञान सूत्रों को जिनवाणी भी कहा जाता हैं.भूतबलि आचार्य ने इ्न षट्खण्डागम सूत्रों को ग्रंथ रूप में बद्ध किया और ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन चतुर्विध संघ सहित कृतिकर्मपूर्वक महापूजा की. उसी दिन से श्रद्धालु श्रुतपंचमी के दिन विशेष रूप सेश्रुत की पूजा करते आ रहे हैं. वीएनआई
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