रक्षाबंधन पर फैशन और भौतिकवाद हावी

By Shobhna Jain | Posted on 7th Aug 2017 | देश
altimg

आज राखी का त्योहार है। राखी का वास्तविक अर्थ है किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। इस दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बांधकर अपनी जीवन रक्षा का दायित्व उन पर सौंपती हैं।  एक जमाना था, जब कुछ ही पैसों में बहिने बाजारों से यह धागा खरीद कर भाइयों के हाथों में बांध कर उनसे सुरक्षा और रक्षा वचन लेती थीं, पर मौजूदा समय में रक्षाबंधन पूरी तरह से बाजार का हिस्सा व स्टेट्स सिंबल बन गया है। कह सकते हैं कि रक्षाबंधन पर्व पर फैशन और भौतिकवाद पूरी तरह हावी हो गया है।  यह त्योहार अब प्रत्यक्ष रूप बाजार से जुड़ा मुनाफे का सौदा हो गया। बड़ी कंपनियां राखी बनाने का आयात-निर्यात करोड़ों रूपयों में करती हैं। यही कारण है कि रक्षाबंधन भी आज भावनाओं का कम और दिखावे का त्योहार ज्यादा बन गया है। नब्बे के दशक के बाद यह त्योहार पूरी तरह बदल गया है। सूत की एक डोरी से बांधने की परंपरा के इस पर्व के बदलाव के पीछे कई कारण हैं। राखी का मार्केट मौजूदा समय में करोड़ों में पहुंच चुका है। 

मौजूदा समय में राखियां फैशन व स्टेट्स का सिंबल बन रही हैं और बहन भाई दोनों ही लेटेस्ट व डिजाइन राखियां पसंद कर रहे हैं। आज राखी के विभिन्न कॉर्मशियल ब्रांड बाजार में उपलब्ध हैं। अब बहन, भाई की कलाई पर एक धागा बांध कर ही अपनी रक्षा का वचन नहीं लेती, वरन उसे महंगी राखी बांधकर कीमती तोहफे की उम्मीद करती हैं। इन हालातों को देखकर लगता है कि रक्षाबंधन पर्व पर फैशन व भौतिकवाद हावी हो रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर गली-गली में बनने वाली व इलेक्टृॉनिक गैजेट्स, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक नोटबुक से लेकर लैपटॉप, मोबाइल या ऐसे ही दूसरे तोहफों की एडवांस डिमांड रख रही हैं। हालांकि गरीब व निम्न मध्य वर्ग में आज भी सस्ती फाइबर की राखी उसी प्रेमभाव से बांधी जाती हैं।

भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस पर्व को कभी सलूनों का त्योहार कहा जाता था। इस दिन केवल बहनें ही भाइयों को राखी बांधें, ऐसा आवश्यक नहीं है। त्योहार का वास्तविक आनंद पाने के लिए धर्म-परायण होना जरूरी है। इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है। उत्तर भारत में यह पर्व कुछ अलग ही महत्व रखता है। भाई-बहन के पावन प्रेम का प्रतीक यह पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसके साथ अनेक मिथक व कथाएं इस त्योहार से जुड़ी हैं। शचि के इंद्र को रक्षा सूत्र से बंधने से लेकर कर्मावती व हुमायूं तथा द्रौपदी के कृष्ण की उंगली पर पट्टी बांधने जैसी मान्यताएं रक्षाबंधन से जुड़ी हैं। वहीं राजा बलि का नाम लेकर तो आज भी हरेक धार्मिक कृत्य में पंडित यजमान को डोरी बांधत हैं। इन सभी का एक ही आशय है कि अपने प्रिय की रक्षा की भावना व उसके लिए शुभकामनाएं देना। 

बदलाव की बात करें तो एक वक्त था, जब बाजार में सिर्फ और सिर्फ सूत या रेशम से बनीं राखियां ही मिला करती थीं। गरीब व मध्यम वर्ग के लोग कच्चे सूत की डोरी बांध या बंधवा कर ही रक्षाबंधन का त्योहार बड़े चाव के साथ मना लेते थे। वहीं अमीर लोग रेशम की या जरी की राखियों से राखी का त्योहार मनाते थे। महलों में राजा महाराजा चांदी से बनी राखियां बंधवाना पसंद करते थे। लेकिन अब राखी सूत की डोर कमजोर पड़ गई है, उसकी जगह और किसी ने ले ली है। कह सकते हैं कि समय के साथ पैसे के बढ़ते प्रभाव से रक्षाबंधन का त्योहार पूरी तरह से बदल गया है।  पिछले कुछ सालों से रक्षाबंधन का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। बाजारों में आधुनिक राखियों का जलवा है, म्यूजिकल राखियां बच्चों व बड़ों दोनों को लुभा रही हैं। वहीं लाइट बदलने वाली राखियां भी अच्छे भाव पा रही हैं। 

अमीर लोग अपने बच्चों को राखियों के रूप में घड़ियां व सोने-चांदी की चेन, ब्रेसलेट्स, फ्रेंडशिपबैंड आदि दिलवाना पसंद करते हैं। जो लोग सूत की बनीं राखियों से कम चला लेते थे, उनका भी अब मोहभंग हो गया है। वह भी आधुनिक राखियों की ओर खुद ही खिच जाते हैं। आखिर भाई-बहन का रिश्ता दिखावे का नहीं मूलता भावना का ही तो है। रक्षाबंधन सच्चे व पवित्र प्यार का प्रतीक है, पर अब पैसा प्यार पर हावी हो गया है। इस प्रवृत्ति का असर रक्षाबंधन पर भी साफ दिखाई दे रहा है। बहनें भाई को मिठाई की वजाय पिज्जा, बर्गर या फिर मेवे का पैकेट थमा रही हैं, तो भाई भी महंगे से मंहगे से तोहफे भेंट कर रहे हैं। आज के जमाने में अच्छी-सी एक राखी की कीमत बाजारों में एक हजार से लेकर एक लाख रुपये तक मौजूद हैं। जब बहन की राखी की कीमत इतनी होगी तो स्वाभाविक रूप से भाई को भी वैसा या उससे भी महंगा उपहार देना ही पड़ेगा। इसी होड़ के चलते रक्षाबंधन का त्योहार पूरी तरह से दिखावे का हो गया है। 

एक समय था, जब बहन भाई की कलाई पर सिर्फ एक कच्चे धागे की डोर बांध देती थी और भाई उसकी जिंदगी की रक्षा करने की कसम खाते थे। लेकिन बदलते समय के साथ इस पर्व में बहुत कुछ बदलाव आ चुका है। रक्षाबंधन पर बड़ी-बड़ी कंपनियां करोड़ों का व्यापार करती हैं। राखी पर पिछले दो-तीन सालों से चीन का बाजार काफी फीका पड़ा है। सोशल मीडिया पर चीन में बनी राखियों को न खरीदने को लेकर बहिष्कार हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन व्यापारियों को हो रहा है, जो राखी पर चीन से करोड़ों का माल मंगाते थे। दो सालों से वहां से आनी वाली राखी संख्या लगातार घटी हैं। लोग भारत में बनने वाली राखियां ही खरीद रहे हैं।  दरअसल, त्योहार दिखावे की भेट नहीं चढ़ने चाहिए। भारतीय त्योहारों पर भौतिकता पूरी तरह से हावी हो चुकी है। इससे बचने की जरूरत है। (आईएएनएस/आईपीएन) (ये लेखक के निजी विचार हैं)


Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Connect with Social

प्रचलित खबरें

© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india