मृत्यु महोत्सव

By Shobhna Jain | Posted on 14th Mar 2018 | देश
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नई दिल्ली, 14 मार्च, (शोभना जैन/वीएनआई) सुबह दुपहरी की ओर बढ रही थी,सूर्य का प्रकाश तेज हो रहा था लेकिन उस में तपन नही बल्कि मद्धम सी नर्माहट थी. उंचे विराट कचनार के दहकते से लाल फूलो वाले पेड़ के नीचे एक ट्र्क पर मुस्कराती स्त्री का विशाल चित्र रखा था और उस चित्र के पीछे लाल गुलाबी अबीर गुलाल से रंगे माथे के साथ अबीर गुलाल से रंगे वस्त्र मे लिपटी एक स्त्री देह रखी हुई थी. वातावरण मे  अबीर गुलाल के बादल से  उड़ रहे थे. बीच बीच मे  जय घोष के स्वर ्गूंजते है... ्निरंतर मंत्रोच्चार  तो चल ही रहा है. उत्सव सा लग रहा है, लेकिन इस उत्सव मे एक सौम्यता, एक ठहराव था .अबीर गुलाल से रंगे चेहरो वाले वहा मौजूद सभी लोगो के चेहरे पर स्थिर, वीतरागी मुद्रा सी नजर आ रही थी.जन्म, जीवन को  दार्शनिको ने उत्सव बताया है लेकिन मृत्यु है महोत्सव यानि महा उत्सव, यह तमाम दृश्य इसी मृत्यु महोत्सव के थे...

इन दिनो जब उच्चतम न्यायलय द्वरा निष्क्रिय अवस्था मे इच्छा मृ्त्यु वरण की अनुमति मिलने के आदेश की खबरे सुर्खियो मे है , वही इन खबरो से बेखबर लगभग पचास वर्षीय जैन साधिका  सविता देवी  डॉक्टरो द्वारा कैंसर के तमाम उपचार के बाद लाईलाज बता दि्ये जाने पर  उन्होने जैन धर्म के इच्छा मृत्यु वरण की पद्धति सल्लेखना के जरिये इच्छा मृत्यु वरण का रास्ता चुना और  अन्न जल त्याग कर  आराधना तप के अठारहवे दिन उन्होने  12 मार्च  भोर ब्रह्म वेला मे  देह त्याग दी यह महोत्सव उसी मृत्यु का  मंगल महोत्सव था. बाद मे उन की पार्थिव देह को एक शोभा यात्रा के जरिये अंत्येष्टि के लिये ले जाया गया, जिस मे वीतरागी भावना के साथ ्मृत्यु महोत्सव के रूप मे मनाने के दृश्य देखने को मिले

दिल्ली के मयूर विहार  स्थित परिवार  के सभी लोग काफी सुशिक्षित हैं.चार दिन पूर्व जब मै इस साधिका के कक्ष मे गई तो माहौल  मे मृत्यु को ले कर कोई शोक नही था बल्कि  साधिका के चेहरे पर  मृत्युवरण की प्रतीक्षा का निर्लिप्त ्भाव था परिवार जन और परिजन मंत्रोच्चार कर रहे थे, वे शांत भाव से देख रही थी. अन्न जल त्यागने के सोलहवे दिन देह  कृशकाय हो चुकी थी पति  बैठने मे मदद बतौर उन्हे अपना सहारा दे रहे थे. कक्ष के बाहर जीवन की नश्वरता संबंधी सूक्ति वाक्य जगह  जगह लि्खे हुए थे. बाहर निकलने पर परिवार की एक महिला तिलक कर कुछ सांकेतिक राशि आशीर्वचन के रूप मे देती हुई कहती है' रख लो, यह प्रभावना है.'साधिका के पति के बड़े भाई  श्री एन के जैन बताते है  कि सल्लेखना का निर्णय  सविता  का अपना था  डेढ वर्ष तक देश भर मे जगह जगह ईलाज करने पर जब सभी ने जबाव दे दिया तो उन्होने सहज शांति से आराधना तप के जरिये सल्लेखना का फैसला कर लिया और तभी से घर मे निरंतर पूजा पाठ के बीच उन का तप चल रहा था. श्री जैन बताते है सुश्री सविता उच्च शिक्षा प्राप्त थी  पूरा परिवार बहुत धार्मिक है और  साधिका सविता भी  पारिवारिक जिम्मेवारियो को निभाते हुए धर्म और धार्मिक क्रियाओ का काफी पालन करती थी और अक्सर लगातार कई कई दिनों तक  व्रत उपवास करती थी. जैन धर्म के एक अध्येता बताते है  जीवन तो उत्सव है ही  लेकिन ्मृत्यु महा महोत्सव है.मानव देह के लिये पुरूषार्थ करते हुए वीतरागी भाव से तमाम जिम्मेवारियॉ निभाते हुए ईश्वर भक्ति ही जीवन का सार है और  विशेष तौर जब शरीर लाईलाज बीमारी की स्थति निष्क्रिय अवस्था मे पहुंच जाये तो इच्छा मृत्यु वरण की अनुमति है.्जैन मुनियो साधुओ के साथ ही  कुछ नियमो के साथ श्रावको के लिये भी सल्लेखना का उल्लेख है.जैन तपस्वी संत आचार्य विद्द्या सागर ने भी सल्लेखना को जीवन याता की अंतिम साधना बताया है.निश्चय ही उच्चतम न्यायलय के इस हालिया आदेश के बाद गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार के साथ गरिमामय  मृत्यु के अधिकार को एक नयी व्याख्या मिली है  

शोभा यात्रा आगे बढ चली है ट्रक पर  साधिका की संताने, पति, परिवार जन अबीर गुलाल से रंगे मंत्रोचार और जय घोष कर रहे है, चेहर पर वीतरागी भाव और ठहराव है,कुछ जीवन की नश्वरता की बात कर रहे है, एक बुजुर्ग कहते है मृत्यु  जीवन चक्र का अंतिम सत्य है, जब जीवन निष्क्रिय अवस्था मे आ जाये तो प्रभु से यही कामना है इच्छा मृत्यु वरण का आशीर्वाद दे और प्रेम और शांति से हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाये....गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार के साथ गरिमामय  मृत्यु ्का भी  अधिकार......  


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