भगवान राम की नगरी अयोध्या, जैन धर्म का भी मूल शक्ति स्थल है

By Shobhna Jain | Posted on 8th May 2023 | देश
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अयोध्या, 08 मई, (वीएनआई) भगवान राम  की अयोध्या नगरी, जैनधर्म का भी यह मूल शक्ति स्थान है, जहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जैसे दिव्यात्मा का जन्म हुआ था. अहम बात यह हैं कि एक तरफ इन दिनों जहाँ भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण का काम पूरी गति से चल रहा हैं वही  इन्हीं दिनों जैन मतावंलबियों की पूज्यनीय गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा व सान्निध्य में जैन मतावंलबियों ने  पूरें श्रद्धा भाव से  भगवान  ऋषभदेव  और जैनत्व की वन्दनास्वरूप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक महोत्सव सम्पन्न हुआ. इस अप्रतिम अवसर पर सरयू नदी के एक किनारें से जय श्री राम के नारें से गूंज रहे थे, तो दूसरी तरद से चन्दन की महक के बीच  जैसे ही भगवान ऋषभदेव की दिव्य प्रतिमा पर केसर. चंदन  , दुग्ध जैसे द्रव्यों  ्से अभिषेक किया गया तो पूरा माहौल  चंदन  और केसर की महक के बीच जयकारों   जैन  मंत्रोच्चर  से गूंज उठा हैं. यहीं  है देश की सर्व धर्म सम्मान की संस्कृति का साक्षात स्वरूप...

जैन प्राचीन आगमों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि युग की आदि में जैनधर्म का प्रवर्तन भगवान ऋषभदेव के द्वारा इसी अयोध्या की धरती से किया गया . भगवान ऋषभदेव का जन्म राजा नाभिराय और माता मरुदेवी के महल में हुआ, जिसके पश्चात् उन्होंने इस धरती का राज्य संभाला. इतना ही नहीं जब भोगभूमि की व्यवस्था इस धरती से समाप्त हो रही थी, तब कर्मभूमि की व्यवस्था बनाकर प्रजा को जीवने जीने की कला सिखाई थी.असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प जैसी इन छह क्रियाओं के माध्यम से भगवान ने प्रजा को जीवने जीने की नई राह दिखाई थी.
 
जैनधर्म में इस अयोध्या की महानता इतनी ही नहीं अपितु इसी अयोध्या से भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती ने  चक्रवर्ती का पदभार संभाला. भरत चक्रवर्ती के सुशासन में पूरे छह खण्ड की धरती पर प्रजाजन सुख-शांति और प्रसन्नता से जीवन व्यतीत करती थी. इसके साथ ही भगवान ऋषभदेव की दो पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी हुईं, जिनमें भगवान ने ब्राह्मी को अक्षर लिपि और सुंदरी को अंक लिपि सिखाकर नारी शिक्षा का सूत्रपात किया और समस्त प्रजा के समक्ष लिपि ज्ञान को भी इस धरती पर प्रस्तुत किया. अयोध्या नगरी में ही भगवान ऋषभदेव के बाद चैबीस तीर्थंकरों में से दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ, चैथे तीर्थंकर भगवान अभिनंदननाथ, पांचवे तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ और चैदहवें तीर्थंकर भगवान अनंतनाथ का भी जन्म हुआ, जिन्होंने  प्रजा को सत्य, अहिंसा जैसे सिद्धान्तों का सदुपदेश देकर विश्वशांति की स्थापना की. 

इस ऐतिहासिक  महोत्सव   के आयोजक डाॅ. जीवन प्रकाश जैन के अनुसार  समस्त ऐतिहासिक आयोजन का मार्गदर्शन प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के द्वारा एवं कुशल नेतृत्व पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के द्वारा किया  गया.समारोह में माता जी द्वय और जैनधर्म के गुरुओं में आचार्य श्री विपुलसागर जी महाराज, आचार्य श्री भद्रबाहुसागर जी महाराज, आचार्य श्री विशदसागर जी महाराज, मुनि श्री अनुशरण सागर जी महाराज केआशीर्वचन के साथ देश विदेश से हजारों  भक्तजनों ने 30 अप्रैल से 7 मई 2023 तक तीस चैबीसी तीर्थैंकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा  व महमस्तकाभिषेक महोतसव  में हिस्सा लिया. गत 5 मई को मोक्षकल्याणक के  भव्यतापूर्वक सम्पन्न होनें के  बाद 7 मई तक भगवान का महामस्तकाभिषेक दूर-दूर से  आयें श्रद्धालुओं ने पूरें विधि विधान से सम्पन्न किया यह प्राण प्रतिष्ठा तीस चैबीसी तीर्थंकरों के 720 प्रतिमाओं की . जैन ग्रंथों के अनुसार  भगवान ऋषभदेव के मोक्षप्राप्त पुत्र-101 भगवन्तों की तथा जिनके नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा,  इस मौकें पर चक्रवर्ती भरत स्वामी की 31 फुट विशाल जिनप्रतिमा भी प्रतिष्ठा की गयी, जिसमें प्रतिष्ठाचार्य विजय कुमार जैन, वृषभसेन उपाध्ये, अकलंक जैन, सतेन्द्र जैन आदि  ने समस्त विधिविधान सम्पन्न करा्या समारोह में जैनधर्म के गुरुओं में आचार्य श्री विपुलसागर जी महाराज, आचार्य श्री भद्रबाहुसागर जी महाराज, आचार्य श्री विशदसागर जी महाराज, मुनि श्री अनुशरण सागर जी महाराज एवं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के समस्त साधु-संतों का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है. वीएनआई न्यूज सेवा


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