नई दिल्ली,11 अक्टूबर (वीएनआई) तड़के भोर में उन बुजुर्गवार को अक्सर भारी बोझ वाले दो भरे हुए थैलों के साथ दो-दो तीन किलोमीटर घूम घूम कर अक्सर किसी पार्क मे या फिर सड़क किनारे खाली जमीन पर पौधा रोंपते हुए या फिर छोटे बिरवों में पानी डालते हुए, कभी इन नन्हे पौधों को सहलाते हुए देखा जा सकता है. रास्ते में आगे बढते हुए बीच बीच में रूक रूक कर वे एक थैले में से पानी भरी हुई कुछ बड़ी बोतलें निकालते हैं, उन से कुछ पौधे सींचते हैं और फिर दूसरे थैले मे रखे कुछ पौधें और खुरपी निकालते हैं जमीन खोदते हैं और पौधा उस में रोंपते हैं और साथ लाई हुई पानी की बोतल में से पानी डाल नन्हें बिरवें को सींचते हैं.
ये सज्जन हैं दिल्ली के मयूर विहार ईलाके के भूषण लाल राजदान, भारतीय राजस्व सेवा के सेवा निवृत अधिकारी एवं पूर्व आयकर मुख्य आयुक्त/ महा निदेशक. श्री राजदान पिछले तीस वर्षों से अब तक देश के अलग अलग शहरों में जहा वे अपने कार्यकाल के दौरान कार्यरत थे, हजारों पौधे लगा चुके हैं जो अब तक घने रख्त बन चुके है, लोगों को छाया दे रहे हैं, फल दे रहे हैं, अपनी हरियाली से पर्यावरण बेहतर बनाने की साधना में जुटे हैं.अब भी जहा जहा वे जाते हैं भोर की बेला में अक्सर वे इन दो थैलों के साथ बिरवों की सेवा करते हुए देखे जा सकते है, उन्हें जमीन में रोंपते हुए नजर आते है लेकिन श्री भूषण चुपचाप इस साधना में लगे हैं, प्रसिद्धि, कैमरों के चका चोंध से दूर...
श्री राजदान विनम्रता पूर्वक इस तरह के अनूठेवृक्षारोपण अभियान का श्रेय लेने से इंकार कर देते हैं" नही, नहीं, यह कोई असाधारण काम नही है, सभी को अपने जीवन काल मे कम से कम पॉच पेड जरूर लगाने चाहिये.पीपल, बरगद, नीम, जामुन और आम, और यह कम कतई मुश्किल भी नही."वे कहते हैं यह न/न केवल जन कल्याण का काम हैं, बल्कि सब से ज्यादा हमारे अपने जीवन को बेहतर बनाने का कम हैं.इस में हम सभी को सक्रियता से जुड़ना चाहिये,जरा सोचिये कि अगर हर व्यक्ति अपने जीवन काल में कम से कम पॉच वृक्ष लगायेगा तो धरती की हरियाली का स्वरूप क्या होगा, प्रदूषण कितना कम होगा. हमारे बच्चों के लिये ये पृथवी रहने के लिये सही मायने में बेहतर जगह बन सकेगी. .्सम्भवतः इसी तरह के अभियानों से सरकारी ऑकड़ों के अनुसार पिछले एक वर्ष मे भारत का ग्रीन कवर एक प्रतिशत बढा हैं. फिलहाल कुल मिला कर भारत का ग्रीन कवर 24.39 प्रतिशत हैं.
बात बात करते श्री भूषण के स्वर में चिंता नजर आती हैं. कहते हैं मैं मुंबई जा रहा हूं, एक छोटा सा बरगद का पौधा सड़क के पास लगाया हैं, यहा जमीन पर बैठ कर अपना सामान बेचने वाले एक युवा से आग्रह किया हैं कि मेरे पी्छे उसे सींचते रहे."बात करते करते श्री भूषण उसी पौधें की चिंता लिये चुपचाप आगे बढ जाते हैं.सरकारी स्तर पर एक और जहा बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान ्चलाया जा रहा हैं, वही श्री भूषण जैसे कितने ही वृक्ष मित्र हैं ,जो निस्वार्थ भाव से चुपचाप धरती को हरा भरा बनाने की साधना में लीन हैं..ये हैं मौन साधक.वी एन आई
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