नई दिल्ली, 23 फरवरी, (वीएनआई) क्रांतिकारी युवा संगठन(केवाईएस) का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मन की बात’ एक सफ़ेद झूठ है क्योंकि लाखों छात्र-छात्राओं का भविष्य अँधेरे में है| सरकारी और प्राइवेट स्कूल वाली दोहरी शिक्षा नीति और उच्च शिक्षा में सीटों-कॉलेजों की भारी कमी के कारण गरीब-मजदूर-किसान परिवारों से आने वाले लाखों युवाओं को उच्च शिक्षा से बाहर का रास्ता देखना पड़ता है|
ज्ञात हो कि प्रधानमन्त्री मोदी ने बीते रविवार 22 फरवरी को ‘मन की बात’ के द्वारा उन लाखों छात्रों को संबोधित कर रहे थे जो आने वाले दिनों में दसवी और बारहवीं की परीक्षाओं में भाग लेने जा रहा रहे| प्रधानमन्त्री मोदी के शब्दों का प्रयोग करते हुए जहाँ एक ओर वो छात्रों को ‘वारियर’(योद्धा) बनाना चाहेंगे वहीँ शिक्षा व्यवस्था की हालात देखते हुए लगता है कि वो ‘वोरियर’(चिंतित) ही बने रहेंगे|
क्रान्तिकारी युवा संगठन का कहना है की साल 2014 में भी 2,78,000 स्टूडेंट्स ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रेगुलर कॉलेजों में स्नातक कोर्सों के लिए फॉर्म भरे थे परन्तु सीटों-कॉलेजों की भारी कमी के कारण 2,25,000 छात्र-छात्राओं को अनौपचारिक शिक्षा- एसओएल,एनसीडब्लूईबी, इग्नू अथवा कंप्यूटर बेसिक, मैकेनिक्स, टेलरिंग का कोर्स प्राइवेट सेंटरों से- की ओर रूख करना पड़ा| इनमे से ज्यादातर छात्र अपने परिवारों में पढने वाले प्रथम पीढ़ी हैं और वो उन सरकारी स्कूलों से पढ़े हैं जिनमे फिजिक्स, अकाउंट, कंप्यूटर, इंग्लिश के शिक्षक नहीं होते है, और ना तो उनमे शौचालय है ना ही उनमे कंप्यूटर लैब उपलब्ध है| ऐसे में इन स्कूलों से पढ़कर आए छात्रों को बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूल से पढ़े हुए छात्रों से प्रतियोगिता करने को कहा जाता है, जहाँ अत्याधुनिक सुविधाये उपलब्ध होती है|
संगठन ने साथ ही बताया की ठीक इसी प्रकार रोजगार के अवसर लगातार घटे हैं| स्थाई नौकरी का तो मानो सूखा ही पड़ गया है और लगभग हर सेक्टर में लोगों को ठेकेदारी पर रखा जा रहा है| श्रम कानूनों को खुलेआम हर जगह तोड़ा जाता है| निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के आधे दाम पर लोगों से 12 से 14 घंटे तक श्रम लिया जाता है| ऐसी स्थिति में अगर छात्र-छात्राएं चिंतित नहीं होंगे तो और क्या होंगे| अगर प्रधानमन्त्री महोदय चाहते हैं की देश के छात्र-छात्राएं योद्धा बने तो उन्हें स्वयं थोड़ा चिंतित होना शुरू कर देना चाहिए|