नई दिल्ली,28 सितंबर(अर्चनाउमेश) भारतीय संस्कृति में मौन साधना का बहुत महत्व हैं,खास तौर पर आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी मे कुछ समय का मौन बहुत राहत कारी है जिससे मन और तन दोनो ही मजबूत होते है और हम कुछ समय के लिये बाहरी कोलाहल से मुक्त रहते है.आध्यात्म साधना और आत्म बल मजबूत करने के साथ यह एक चिकित्सा पद्धति भी है,इससे बेवजह शरीर की शक्त क्षीण होने से बचती है. मौनव्रत अपने आप में खास है, इसके अनुशासन की वजह से ही इसे व्रत कहा जाता है। इस व्रत का प्रभाव दीर्घगामी होता है। ्यह आत्म अवलोकन का अवसर देता है जिसमे आप अपने सही गलत कार्यो का लेखा जोखा लेते है. मन नकारात्मक विचारो से निकल सकारात्मक ्बनता है जो शरीर को स्वास्थय बनाता है.मन और तन स्वास्थय रखने की अनेक आधुनिक पद्धतियो मे मौन साधना को बहुतत महत्व दिया गया है.इसके लिये कोई दिन, विशेष समय जरूरी नही है इस का पालन किसी भी दिन, तिथि व क्षण से किया जा सकता है। अपनी इच्छाओं व समय की मर्यादाओं के अंदर व उनसे बंधकर किया जा सकता है।पहला वाणी से और दूसरा मन से।
वाणी को वश में रखना, कम बोलना, नहीं बोलना, मौन हैं। मन को स्थिर करना, मन में बुरे विचार नहीं लाना, अनात्म विचारों को हटा कर आत्म (अध्यात्म) विचार करना, बाह्म सुख की इच्छा से मुक्त होकर अंतर सुख में मस्त होना, और मन को आत्मा के वश रखना वगैरह मन का मौनव्रत कहलाता है और इस मऔन साधना से हमारी शारीरिक शक्ति मजबूत होती है।
सभी जानते है जब ज्यादा बोलते है, तब गले की आवाज बैठ जाती है, प्यास अधिक लगती है, गला सूखता है, छाती में दर्द होता है, और बेचैनी सी मालूम पडती है, अर्थात् सख्त मेहनत करने वाले मजदूर वर्ग से भी अधिक परिश्रम बोलने में प़डता है। इसलिये जितने बोला जाता है उतनी ही शरीर की शक्ति व्यय होती है। व्यवहार में आवश्यकतानुसार ही वाणी का उपयोग किया जावे, तो भी बहुत सी शक्ति का अपव्यय बचेगा। दुनिया में महान् व्यक्ति होने के लिये कुदरत के कुछ नियम पालने प़डते हैं। उन नियमों में "वाणी स्वातंत्र्य" भी एक नियम है लेकिन स्वतंत्रता बेलगाम नही हओ, ऐसा विशे्षज्ञ मानते है
जब आप बेवजह बोलने की इच्छा को काबू करना चाहे तो लंबा श्वास खींच कर छाती के फेफ़डों में भर रखना और धीरे धीरे निकाल दे , आप स्वत ही चुप हो जायेंगे
पखव़ाडे भर में एक दिन सुबह या शाम को पौन घण्टे मौन धारण कर सकारत्मक विचार करे, आप अपनी सुविधा और इच्छा से इसे ज्यादा बार भी कर सकते है,एकांत मे, और प्रकृति के समीप मौन को आप ज्यादा मन से कर पायेंगे.वी एन आई