"निल बटा सन्नाटा" बनी ज़िंदगी की हक़ीक़त

By Shobhna Jain | Posted on 9th Jun 2016 | देश
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अगरतला, 9 जून (वीएनआई) सपने सबके होते है मगर उन सपनों को रास्ता नहीं मिलता इसलिए ज़्यादातर लोग प्रतिभा होते हुये भी ज़िंदगी मे गुमनामी के अंदेरे मे खो जाते है।पर अगर आप सपने को साकार करने के लिये उसके उसके मुताबिक मेहनत करते हैं तो मंजिल मिल ही जाती है। माध्यमिक परीक्षा पास करना स्मृति बानिक का इसी तरह का एक सपना था। इस सपने को उन्होंने दो दशकों तक संजोए रखा। इस बीच उनकी शादी हुई, एक परिवार बना और घोर गरीबी का सामना भी करना पड़ा। आज वह मुस्करा रहीं हैं, क्योंकि उनका काफी पुराना सपना साकार हो गया है। समृति (38) इस साल अपनी किशोर उम्र की बेटी सागरिका के साथ माध्यमिक परीक्षा में सफल हुई हैं। समृति को कुल 700 अंकों में 255 अंक मिले, जबकि उनकी बेटी को 238 अंक प्राप्त हुए। स्मृति एक घरेलू महिला हैं और राज्य की राजधानी अगरतला से 30 किलोमीटर दूर बिशालगढ़ में रहती हैं। स्मृति और सागरिका, दोनों पूरबा लक्ष्मीबिल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छात्राएं थीं। मां-बेटी कई सप्ताह से परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। रात में दोनों एक साथ पढ़ती थीं। परिवार की अल्प आय को बढ़ाने में स्मृति हाथ बंटाती हैं। उनके पति जीबन सब्जियां बेचते हैं, जबकि वह चाय की दुकान चलाती हैं। पढ़ाई के लिए वह प्रतिदिन दैनिक और घर के कामों से थोड़ा समय निकालती थीं। यह आसान काम नहीं था, लेकिन स्मृति यह भलीभांति जानती थी कि माध्यमिक परीक्षा पास करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। केवल धर्य और साहस के साथ परीक्षा में शामिल होने के लिए वह आगे बढ़ीं और अंतत: सफल हुईं। स्मृति ने कहा, "जब मैं तीन साल की थी तो मेरे पिता का देहांत हो गया। हम चार बहनें हैं। मेरी मां को गरीबी से जूझना पड़ा और उन्हें हमारे पड़ोसियों के घर में काम करना पड़ा।" उन्होंने कहा, "जब मेरी शादी 18 साल की उम्र में 1966 में हुई तो मेरी इच्छा न होने के बावजूद मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा था।" स्मृति ने कहा, "विगत 20 साल से मैं माध्यमिक परीक्षा में शामिल होना चाहती थी, लेकिन गरीबी मार्ग में बाधक बन जाती थी।" पति, बेटी सागरिका और पड़ोसियों ने स्मृति का साथ दिया। इन लोगों ने सभी तरह के हिचक छोड़ने और इस साल परीक्षा में शामिल होने के लिए उनके हौसले को बढ़ाया। खुश दिख रहीं स्मृति ने कहा, "हालांकि, 20 साल पहले जब मैंने पढ़ाई छोड़ी थी तब से पाठ्यक्रम काफी बदल गया था, लेकिन मैंने अपनी बेटी के सहयोग से स्वयं परीक्षा की तैयारी की।" वह पूरबा लक्ष्मीबिल उच्चतर माध्यमिक स्कूल में 11वीं कक्षा में नाम लिखाना चाहती हैं और कम से कम स्नातक करना चाहती हैं। आगे की पढ़ाई के बारे में पूछने पर स्मृति ने कहा कि उनकी दीर्घकालीन इच्छा तो स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई करने की है, लेकिन बेटी को स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई में मदद करना उनका प्राथमिक लक्ष्य है। त्रिपुरा में अकेले स्मृति ही नहीं हैं। तीन अन्य माताएं-रुबी घोष, पूर्णिमा दास और संचिता दत्ता भी अपनी बेटियों और बेटे के साथ माध्यमिक परीक्षा में सफल हुई हैं। उत्तरी त्रिपुरा में कमलपुर की रहने वाली रूबी घोष (35) अपने पुत्र बिप्रजीत के साथ माध्यमिक परीक्षा में सफल हुई हैं। रूबी ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि जब वह नौवीं कक्षा में पढ़ती थीं जब उनके पिता ने उनकी शादी कर दी और पढ़ाई छूट गई। विगत 20 साल से वह भी माध्यमिक परीक्षा पास करने का सपना पाले हुई थीं, जो अब पूरा हो गया है। इसी तरह पूर्णिमा दास (38) ने भी अपनी बेटी मननजिता के साथ बदरघाट उच्चतर माध्यमिक स्कूल से परीक्षा दी और सफल रहीं। इनके अलावा एक और मां संचिता ने अपनी बेटी मुनमून के साथ अगरतला की सीमा पर स्थित सूर्यमणि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से दसवीं की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुईं। संचिता के पति राज मिस्त्री हैं। संचिता को कुल 700 अंकों में 258 अंक मिले हैं, जबकि उनकी बेटी मुनमून को 490 अंक मिले हैं। मुनमून को गणित में 82 अंक मिले हैं। त्रिपुरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मिहिर देब ने कहा कि हर साल उम्रदराज, परिपक्व पुरुष एवं महिलाएं माध्यमिक परीक्षा में बैठते हैं। देब ने कहा, "ऐसा नहीं है कि वे लोग सरकारी नौकरी के लिए माध्यमिक परीक्षा में बैठते हैं, बल्कि अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए ऐसा करते हैं। निश्चित रूप से यह खुशी की बात है।" माध्यमिक परीक्षा का संचालन त्रिपुरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड करता है।आईएएनएस के इनपुट के साथ
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