नई दिल्ली 28 फरवरी (शोभना,अनुपमाजैन. वीएनआई) वित्त मंत्री अरुण जेटली उम्मीदो की चुनौतियो को पूरा करने और अर्थ व्यवस्था के पटरी पर लाने के प्रयासो के बीच के बीच आज वित्त वर्ष 2015-16 का ‘आम बजट’ पेश करने जा रहे है यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई केंद्र सरकार की ओर से पेश किए जाने वाला पहला पूर्णकालिक आम बजट है। यह बजट ऐसे समय में पेश किया जा रहा है, जब भारतीय अर्थव्यवस्था को अभी भी सही अर्थों में पटरी पर आने के लिए जूझना पड़ रहा है। वहीं, दूसरी ओर यूरोपीय संघ फिर से मंदी की गिरफ्त में फंस गया है, जिस वजह से भारतीय कंपनियों को अपने उत्पादों को वहां बेचने पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। इसके अलावा भाजपा गठबंधन शासन के नौ माह बाद अब जनता बेसब्री से अच्छे दिनो की उम्मीद कर रही है,खास तौर पर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की हैरान करने वाली शानदार जीत ने भाजपा को भारी चिंता में डाल दिया है। दरअसल, इस पराजय ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि आम बजट में जनता को ‘कड़वी दवा’ देने के साथ-साथ आम लोगों को ‘लोक कुभावन प्रस्तावों’ पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। इन तमाम चुनतियो के बीच कल संसद मे पेश वर्ष 2014-15 के लिये आर्थिक सर्वेक्षण ने अर्थ व्यवस्था के बेहतर होने का संकेत भी दिया , सरकार ने इसमे ’हर आंख से आंसू पोंछने’ को अपना बुनियादी उद्देश्य बताते हुए अगले वित्त वर्ष के लिए विकास दर आठ फीसदी से अधिक रहने का अनुमान जताया था साथ ही देश मे आर्थिक सुधारो की व्यापक संभावना बताते हुए कहा है कि देश मे अब द्विअंकीय अंकों में विकास दर की संभावना के अवसर है. आशावादी रूख अपनाते हुए इसमे देश मे व्यापक सुधार की गुंजाइश बताते हुए कहा गया है भारत एक ऐसे बिंदु पर आ पहुंचा है, जहां से यह द्विअंकीय मध्यावधिक विकास पथ पर अग्रसर हो सकता है. इस पृष्ठ्भूमि मे आज का बजट पेश किया जा रहा है. जानकारो का मानना है कि निश्चय ही सरकार के सम्मुख बजट कोआम आदमी की जेब के माफिक रख्नने , उन्हे कुछ रियायते देने के साथ ही आर्थिक सुधारो के गति तेज करने और निवेशको को लुभाने की कड़ी चुनौती है
आम बजट में टैक्स के मोर्चे पर अनेक रियायतें मिलने की उम्मीद है। मसलन, न्यूनतम कर छूट सीमा को पिछले बजट में दो लाख रुपये से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर देने के बाद उसमें इस बार अब और ज्यादा बढ़ोतरी किए जाने की प्रबल संभावना है। देश में जीवनयापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए ही इस पर विचार किया जा रहा है। दरअसल, बढ़ती महंगाई ने खासकर पांच लाख रुपये से कम राशि की सालाना आमदनी वाले लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। ऐसे में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए मोदी सरकार द्वारा कम आमदनी वाले लोगों अथवा वर्गों को लुभाने के लिए बजट में अहम प्रावधान किए जाने की उम्मीद है। यही नहीं, आयकर के स्लैबों में भी फेरबदल किए जाने की आशा है। इस बार छुट की अवधि २.५से बढा कर ३ लाख की जा सक्ती है.
इस बार धारा 80सी के तहत छूट सीमा में भी कुछ और वृद्धि किए जाने की उम्मीद है। इस धारा के तहत कुछ खास निवेश एवं व्यय को कुल आमदनी में घटाने की इजाजत करदाताओं को दी जाती है और इस कटौती के बाद जो रकम शेष बचती है, उसी पर टैक्स देना पड़ता है। पिछले बजट में धारा 80सी के तहत छूट सीमा को एक लाख रुपये से बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपये कर दिया गया था। इस कदम से जहां एक ओर वेतनभोगी वर्ग कहीं ज्यादा बचत कर सकेगा, वहीं दूसरी ओर बढ़ती बचत राशि सरकार की आर्थिक विकास योजना में नई जान फूंकने में मददगार साबित होगी।
होम लोन के ब्याज पर मिलने वाली छूट सीमा में भी कुछ और बढ़ोतरी आम बजट में किए जाने की उम्मीद है। कर्ज लेकर खरीदे गए अपने मकान में खुद रहने वाले करदाता को इस कर्ज राशि के ब्याज पर यह छूट दी जाती है। पिछले बजट में होम लोन के ब्याज पर छूट सीमा को डेढ़ लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया था। इस सीमा में कुछ और वृद्धि किए जाने पर बड़ी संख्या में खरीदार अपना आशियाना खरीदने के लिए आगे आ सकते हैं। इतना ही नहीं, इस संभावित कदम का अनुकूल असर देश में आवास क्षेत्र के विकास पर भी पड़ेगा। पहली बार मकान खरीदने वालों के लिए भी विशेष पैकेज की घोषणा इस बार के बजट में की जा सकती है।
कुछ जानकारों का कहना है कि इस बार के आम बजट में 1 फीसदी स्वास्थ्य उपकर (सेस) का प्रावधान किया जा सकता है, ताकि गरीबों को बुनियादी चिकित्सा सुलभ कराने में सरकार को आसानी हो सके। इस तरह का उपकर दरअसल कुल देय आयकर पर लगाया जाता है। इन जानकारों के मुताबिक, सरकार द्वारा करदाताओं को दिए जाने वाले तरह-तरह के कर लाभ को बैलेंस करने के लिए यह उपकर लगाया जा सकता है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस बार के बजट में पूंजीगत खर्च बढ़ाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकती है। दिसंबर में संसद में पेश एक रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय ने कॉरपोरेट जगत की ओर से किए जा रहे सामान्य निवेश को नई गति देने के लिए भारी-भरकम सरकारी निवेश करने पर जोर दिया है। वित्त मंत्री से उम्मीद की जा रही है कि वह नई सड़कों, रेल लाइनों, बंदरगाहों और सिंचाई की सुविधा पर खर्च करने के लिए बजट में तकरीबन 800 अरब रुपये का प्रावधान कर सकते हैं।
वित्त मंत्री से यह भी उम्मीद की जा रही है कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बीमार बैंकों की वित्तीय सेहत सुधारने के लिए बजट में रोडमैप पेश करेंगे। ये बैंक फंसे पड़े कर्जों (एनपीए) और कॉरपोरेट गवर्नेंस की समस्याओं से जूझ रहे हैं। कुछ जानकारों ने बताया कि पिछले महीने सरकार के साथ हुई एक बैठक में सार्वजनिक बैंकों ने अपने प्रबंधन के लिए एक होल्डिंग कंपनी की स्थापना करने का सुझाव दिया था। इन बैंकों ने इसके साथ ही सरकार के मालिकाना हक को 51 फीसदी से कम करने का भी सुझाव दिया था।
वित्त मंत्री ने 1 अप्रैल 2016 से राष्ट्रव्यापी स्तर पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने का वादा किया है। उन्होंने राज्यों की मांग को ध्यान में रखकर अप्रत्यक्ष कर की खामियां दूर करने के लिए दिसंबर में संसद में एक विधेयक पेश किया था। हालांकि, जानकारों का कहना है कि यह तभी पारित हो सकता है जब वह संभावित राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए राज्यों से किए गए अपने वादे को पूरा करेंगे। यह उम्मीद की जा रही है कि वह अपने वादे के अनुरूप बजट में भरपाई पैकेज का ब्योरा पेश करेंगे।
बजट में कंपनियों की उम्मीदों का भी ख्याल रखे जाने का अनुमान है। ऐसा इसलिए कि मोदी सरकार के वादे के अनुसार ‘अच्छे दिन’ तभी आ सकते हैं, जब कंपनियां भारी-भरकम निवेश करेंगी। इसके मद्देनजर कंपनियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इसके लिए कंपनियों को कुछ रियायतें देनी होंगी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कॉरपोरेट टैक्स की दर फिलहाल 30 फीसदी है और सात वर्षों से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। अधिभार एवं उपकर को मिलाने पर कॉरपोरेट टैक्स की प्रभावी दर 33 फीसदी बैठती है।
इसी तरह सरकार अपने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत घरेलू एवं विदेशी बाजारों के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है। इसका एक उद्देश्य देश में निवेश माहौल को बेहतर करना और बड़ी सख्या में रोजगारों का सृजन करना भी है। जानकारों का कहना है कि इसे ध्यान में रखते हुए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए टैक्स ढांचे को ‘कारोबारियों के अनुकूल’ बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस बार के आम बजट में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। इसके लिए कई सेक्टरों को टैक्स छूट और अन्य प्रोत्साहन मिल सकते हैं। मेक इन इंडिया के साथ-साथ ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान को भी सफल बनाने के लिए सूचना तकनीक (आईटी) क्षेत्र को कुछ रियायतें दी जा सकती हैं। मसलन, कर व्यवस्था को आसान बनाया जा सकता है। इसी तरह आईटी कंपनियों को अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर भी कुछ टैक्स राहत दी जा सकती है।
जानकारों का कहना है कि देश में घटते सोना आयात को ध्यान में रखकर गोल्ड पर आयात शुल्क में 2 से 4 फीसदी तक की कटौती की जा सकती है। मौजूदा समय में सोने पर आयात शुल्क 10 फीसदी है। इसी तरह शिक्षा ऋण पर देय ऊंची ब्याज दर को घटाने का भी प्रावधान बजट में किया जा सकता है, ताकि विद्यार्थियों द्वारा लंबे समय से की जा रही मांग पूरी की जा सके। इसी तरह उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर के मोर्चे पर भी कुछ राहत आम बजट में मिल सकती है। समाज के कई तबकों को ध्यान में रखते हुए ही इस तरह की राहत मिलने की आस बंध रही है।
बुनियादी ढांचागत (इन्फ्रास्ट्रक्चर) परियोजनाओं को नई गति प्रदान करने के लिए भी आम बजट में कुछ प्रावधान किए जा सकते हैं। खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी में कमी करने के लिए भी बजट में प्रावधान किए जा सकते हैं। इसी तरह लंबे समय से अटके पड़े वित्तीय सुधारों को आगे बढ़ाने के प्रावधान भी बजट में किए जा सकते हैं। विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) में स्थापित की गई इकाइयों (यूनिट) पर देय न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) के बारे में भी सकारात्मक प्रावधान बजट में किए जाने की आशा है। बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) जैसी प्रमुख कल्याण योजना में संतुलन लाए जाने की भी उम्मीद है। मनरेगा स्कीम से तकरीबन 5 करोड़ परिवारों के लाभान्वित होने का अनुमान लगाया गया है, लेकिन यह करदाताओं पर भारी बोझ है। प्रधान मंत्री ने कल संसद मे मनरेगा ्मेकुछ संशोधन करने का भी संकेत दिया। इसी तरह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में राजकोषीय घाटे को एक सीमित दायरे में रखने के लिए भी बजट में उल्लेखनीय घोषणा किए जाने की उम्मीद की जा रही है। वी एन आई