नई दिल्ली, २ जुलाई (अनुपमाजैन,वीएनआई) तो पिछले 225 साल का शानदार इतिहास यानि चॉदनी चौक की शान और दिल्ली की मशहूर मिठाई की दुकान \'घंटेवाला दुकान\' कल इतिहास के पन्नो मे दर्ज़ हो गयी गयी, \'घंटेवाला दुकान\' कल बंद हो गई और साथ ही बंद हो गया राजधानी के एक इतिहास का एक अध्याय. कल जब इस दुकान मे रखे मिठाईयो के रेक आदि सामान को दुकान से बाहर निकाला जा रहा था तो वहा एकत्रित काफी लोगो की ऑखे नम् हो गयी. भावुक होते हुए दुकान के मालिक सुशांत जैन ने कहा \'ये एक मुश्किल फैसला था. हम आठ पुश्तों से इस दुकान को चलाते आ रहे हैं, लेकिन इसकी घटती बिक्री के चलते ये फैसला लेना पड़ा.\'
इस क्षेत्र के स्थानीय बुजुर्गो के अनुसार यहां राजीव गांधी, मोहम्मद रफी तक आ चुके हैं. तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के वक्त यहा की मिठाईया नियमित रूप से प्रधान मंत्री निवास मे देशी विदेशी मेहमानो की मेहमाननवाजी वाली दावतो के लिये भेजी जाती थी. पूर्व प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई तो यहां जलेबी खाने आते थे और पैक भी करवाकर ले जाते थे. यही नहीं, पर्यटकों के लिए ये एक देखने की जगह थी. \'पुरानी दिल्ली की सैर कर्यक्रम\' का यह दुकान जरूरी हिस्सा थी. आसपास के लिए व्यापारियों के लिए ये एक लैंडमार्क बन गया था. यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि दो दशक पहले यह दुकान दो भाईयों में बंट गई थी जहां बड़े भाई ने अपने शेयर कई साल पहले ही बेच दिए थे वहीं दूसरे भाग को सुशांत चला रहे थे। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले दशक में दुकान का बिजनेस कम होने लगा . इस नाम के पीछे भी काफी रोचक कहानिया छुपी हुई है कि इस दुकान के पास एक स्कूल हुआ करता था और उस स्कूल की घंटी की आवाज़ लाल किले तक सुनाई पड़ती थी। तत्कालीन मुगल शासक शाह आलम द्वितीय जब उस घंटी की आवाज़ सुनते थे तो वे अपने सहायको से उस घंटे के नीचे वाली दुकान से मिठाई लाने के लिए कहते थे। तब से उस दुकान का नाम घंटेवाला पड़ गया। ुस जमाने को याद करने वाले लोग बताते है कि कभी इस दुकान की मिठाईयो की खुशबू पूरे आस पास ्के माहौल को खुशबू से तर कर देती थी
पहले इस दुकान के मालिक लाला सुखलाल जैन थे जो आमेर, राजस्थान के रहने वाले थे। कई पीढ़ियों से चली आ रही इस दुकान के मालिक अब सुशांत जैन हैं। पिस्ते वाला देशी घी का सोन हलवा दुकान की विशेष मिठाई मानी जाती रही है। इसके साथ ही पिस्ता बादाम बर्फी,मोतीचूर के लड्डू दाल मोठ और आलू का लच्छा समेत 50 किस्मों की मिठाई हैं।\" न्/न केवल भारत मे बल्कि ्विदेशो मे रहने वाले कद्रदान भी यहा की मिठाई ले कर जाते थे. चांदनी चौक की इस मशहूर दुकान पर स्वादिष्ट मिठाई खाने वाले ग्राहकों की भीड़ हमेशा बनी रहती है।
घंटेवाला मिठाई की दुकान को बंद होना पुरानी दिल्ली की परंपरा का नुकसान मानते हैं. इतिहासकारों का कहना है कि ये दुकान शाहजहानाबाद की अमूर्त विरासत थी. इस दुकान का जिक्र महमूद फारुकी की किताब \'बिसीज्ड\' में भी था.
गौरतलब है कि साल 1954 में आई हिंदी फिल्म \'चांदनी चौक\' में मीना कुमारी के कई सीन इस मिठाई के दुकान के सामने थी. तो खत्म हुई एक पुरानी पहचान, अंत हुआ पुरानी दिल्ली के एक अध्याय का. रह गई यादे घंटेवाला मिठाई की दुकान की.वी एन आई