नयी दिल्ली 18 -09-2017,सुनील कुमार ,वी एन आई
ये दुनिया के तजुर्बे इन शायरों के सीने में दर्ज होते रहें हैं
और इन तजुर्बों का शेरों में ढलना जारी है
तरक्की की बेहिसाब दौड़ में कटते पेड़ हैं ,सूखते दरिया हैं
हवाओं में घुलता जहर है। कुदरत से छेद छाड़ जारी है
तपती जमीं के बाशिंदों का आज भी आसमान में तैरते बादलों
की तरफ उम्मीद से देखना जारी है
गांव वालों का शहर की तरफ ,शहर वालों का बड़े शहर की तरफ
जिंदगी की तलाश में ,जिंदगी का सफर जारी है
छुपा के पीठ के पीछे खंजर ,इन अमन के फरिश्तों का
आज भी अमनो चैन की नसीहत देना जारी है
ये जिंदगी है ,न की जुआ जहाँ हार जीत होती है
कामयाब हैं वही ,जिनकी कोशिशें जारी हैं
लम्हे ,दिनों में तब्दील हो जाते हैं और दिन बरसों में
और इन बरसों का जिंदगी में तब्दील होना जारी है
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