नई दिल्ली,10दिसंबर ( सुनील/वीएनआई) कल्पना कीजिये हरियाणा के सुदूर गॉव में रहने वाली एक गृहणी की, जिस का जीवन घड़ी की सुइयों के साथ चलता है ,खेत में बिच्छू के काटने से अचेतन अवस्था में रहते हुए भी गोधूलि बेला में उसे "धारा का टेम यानि "गाय का दूध निकालने का समय" याद है हरियाणवी भाषा में बनी बहुत ही खूबसूरत यह शार्ट फिल्म है जो पहली बार किसी मंच तक पहुंची है इस फिल्म में स्त्री के जीवन को जिस संवेदनशीलता से उकेरा गया हैं , वो निर्माता निर्देशक और कलाकारों के बीच के समन्वय का अनूठा संगम है.
राजधानी में इन दिनों चल रहे "जागरण फिल्म फेस्टिवल "में यह फिल्म तथा 110 देशों से 5000 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मे आईं जिनमे से लघु फिल्मे एनिमेशन फिल्म और ढाई घंटे की कुल मिलाकर 500 फीचर फिल्में चुनी गयीं. यह फिल्म देश के 18 शहरों में 3 माह तक चलने वाले फिल्म फेस्टिवल का समापन मार्च 2025 में होगा. इसी महोत्सव मे "टेम की धारा" सहित अनेक क्षेत्रीय और अंतर राष्ट्रीय लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा हैं.
" भारतीय चित्र साधना" की न्यासी रंजना यादव के अनुसार इस महोत्सव की खास बात यह हैं कि ना इनका करोड़ों का बजट और ना ही बड़े स्टार लेकिन फिर भी महोत्सव को दर्शकों का प्यार मिल रहा हैं.
अंतरराष्ट्रीय फिल्म श्रेणी में फ्रांस की चार मिनट की लघु फिल्म से लेकर ढाई घंटे की एनिमेशन फिल्म और फीचर फिल्में चयनित की गयी हैं . सुश्री यादव ने कहा " "जागरण फिल्म फेस्टिवल " खूबसूरत फिल्मों का गुलदस्ता है जो अपनी खूबसूरती और खुशबू से समाज के हर वर्ग को लुभा रहा है .यह फिल्म फेस्टिवल लघु फिल्म निर्माताओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और मील का पत्थर साबित हो रहा है यह कम बजट की लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों को मंच प्रदान करता है,ऐसा मंच नये फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को एक नयी पहचान देता है और नयी चुनौतियों के लिए उन्हें हौसला देता है."
एक दर्शक के अनुसार " फ्रांस की फिल्म "आन द ब्रिज " मात्र 4 मिनट की है इसमें एक भी डायलॉग नहीं है, अभिनेता केवल अपनी बाडी लैंग्वेज से ही पूरी बात समझा देता है बिल्कुल सादगी से यह फिल्म बहुत कुछ कह जाती है. लघु फिल्मों की इसी कड़ी में 30,40 मिनट की भी फिल्में हैं जैसे भूख , हप्पन सांगवाला , क्षेत्रीय फिल्म हरियाणा की धारा का टेम है फीचर फिल्म" इन्वेस्टीगेटर, बंगाल 1947, वी आर फहीम एण्ड करुण ( हिन्दी - कश्मीरी फिल्म ) असमी फिल्म विलेज रॉकस्टार" अपनी ओर आकर्षित करती है. .अंतरराष्ट्रीय फिल्मो मे एनीमेशन फिल्म अप्पू एलीफेंट लाइफ मैटर नामक काफी अच्छी फिल्म है ! जर्मन फिल्म फॉल फ्राम द ग्रेस , सीरियल डेटर अपनी सरलता के लिए याद की जायेगी .
सुश्री यादव के अनुसार अपने आप में नवीनता लिए फिल्म फेस्टिवल की कमाल की बात ये है कि एक तरफ जहा करोड़ों रुपए की लागत और मल्टी स्टार फीचर फिल्में भीड़ को थियेटर तक लाने में नाकामयाब हो रही है वहीं ऐसी छोटी छोटी कम बजट की लघु और फीचर फिल्में भारी संख्या में लोगों को थियेटर तक खींचकर लाने में कामयाब हो रही हैं, यही कारण है कि सशक्त सम्प्रेषण और कहानियों वाली फिल्में बड़ी बड़ी मल्टीप्लेक्स की मल्टीस्टार फिल्मों का तिलिस्म तोड़ती दिखाई दे रही हैं.कुल मिलाकर जागरण फिल्म फेस्टिवल युवाओं को फिल्म निर्माण के लिए बहुत बड़ा कैनवास प्रदान करता है और उन्हें दिशा और हौसला देता है.
यह घुमंतु जागरण फिल्म फेस्टिवल सिनेमा को ही लोगों घरों में गांव देहात तक ले जाता है , 18 शहरों में फिल्मों के प्रदर्शन से जो स्थानीय लोग फिल्म फेस्टिवल में नहीं पहुंच पाते हैं वो आसानी से इसका लाभ ले सकेंगे.
सुश्री यादव के अनुसार "यह फिल्म फेस्टिवल लघु फिल्म निर्माताओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और मील का पत्थर साबित हो रहा है यह कम बजट की लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों को मंच प्रदान करता है,ऐसा मंच नये फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को एक नयी पहचान देता है और नयी चुनौतियों के लिए उन्हें हौसला देता है जागरण. साथ ही संतोष की बात यह हैं कि जिसके फलस्वरूप महिलाओं की भागीदारी फिल्मों के निर्माण में काफी बढ़ती जा रही है वी एन आई