नई दिल्ली, 21 जनवरी, (शोभना जैन/वीएनआई) अब जबकि यूरोपीय संघ के साथ हुए अपने ब्रेक्जिट समझौते को लेकर मुश्किलों में घिरीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे को संसद में इसी सप्ताह समझौते को लेकर तगड़ी हार का सामना करना पड़ा है, हालांकि इस के फौरन बाद विपक्ष द्वारा उन के खिलाफ संसद में लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया. इसी के बाद ब्रिटेन मे इस समझौते को लेकर न/न केवल राजनैतिक सरगर्मियॉ और तेज हो गई है बल्कि राजनैतिक अनिश्चितता की स्थति भी उत्पन्न होती जा रही है.संसद से ले कर सभी स्थलों पर यह मुद्दा चर्चा का विषय है. इस ताजा घटनाक्रम के बाद से समझौते को ले कर जारी भारी गतिरोध ्को दूर करने के लिये टेरेसा का विपक्ष के साथ साथ विभिन्न स्तरों पर गहन मंत्रणाओं का दौर और तेज हो गया है.ब्रेक्जिट टेरेसा की कार्यकाल पर छाया रहा है,देखना है कि इस जटिल मुद्दे का वह कैसे हल कर पाती है,न/न केवल ब्रिटेन के लिये बल्कि टेरेसा के राजनैतिक भविष्य के लिये भी यह अहम होगा.
ऐसे में नजरें इस बात पर टिकी है कि आखिर अनिश्चितता मे घिरे ब्रिटेन के ब्रेक्जिट समझौते का क्या भविष्य होगा,टेरेसा का अगला कदम क्या होगा... आखिर टेरेसा के पास क्या विकल्प है,टेरेसा के इस 'प्लान ए' के असफल होने के बाद 'प्लान बी' क्या ब्रिटेन में उन के विरोधियों को संतुष्ट कर पायेंगा, क्या यह 'प्लान बी' अब उत्तरी आयरलेंड, आयरलेंड गण राज्य और स्कॉटिश नेशनल पार्टी में विरोधियों को मान्य होगा, क्या वे इस सुझाव पर गौर करने को तैयार होगी कि इस मुद्दे पर दूसरा जन मत संग्रह कराया जाये ताकि ब्रिटिश जनता अब इस समझौते पर ज्यादा जानकारी पा लेने के बाद अच्छी तरह से विचार कर मतदान कर सके और फिर क्या वे वह योरोपीय संघ से ब्रिटेन के हटने संबंधी समझौते की २९ मार्च की डेड लाईन बढाये ? सवालों का घेरा बड़ा है...और इन स्थतियों का समाधान खोजना भी खासा जटिल...
इन तमाम सवालो के बीच देखना होगा कि इस मुद्दे पर हाउस ऑफ कॉमन्स में आगामी 29 जनवरी को होने वाले मतदान में क्या होगा.वैसे कहा यह जा रहा है कि अगर गतिरोध का कुछ हल नही निकलता, तो स्वतः ही एक स्थिति आ जाएगी जिसे 'हार्ड ब्रेक्सिट' कहा जा रहा है - यानी 29 मार्च को ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा, और फिर आगे उनके बीच कैसा व्यापारिक संबंध रहता है, इसे लेकर एक नए समझौते पर चर्चा शुरू करेगा. बहरहाल यह तमाम सवाल और स्थतियॉ अभी भविष्य के गर्भ में है.
दरअसल ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा मे का यूरोपीय संघ से अलग होने संबंधी ब्रेक्जिट समझौता जब इस सप्ताह 15 जनवरी ्को संसद में पारित नहीं हो सका था. इसके साथ ही देश के ईयू से बाहर जाने का मार्ग और जटिल हो गया था और टेरेसा की सरकार के खिलाफ अविश्वास पत्र लाने की घोषणा हो गई थी. टेरेसा के समझौते को ‘हाउस ऑफ कामन्स' में 432 के मुकाबले 202 मतों से हार का सामना करना पड़ा था.कहा गया कि यह आधुनिक इतिहास में किसी भी ब्रितानी प्रधानमंत्री की सबसे करारी हार थी. इस हार के कुछ ही मिनटों बाद विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन ने घोषणा ्कर दी थी कि उनकी पार्टी मे की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी, हालांकि यह प्रस्ताव गिर गया.
ब्रिटेन भारत का बड़ा और अहम व्यापारिक साझीदार है.इस के चलते गतिरोध पर भारत की भी नजर बनी हुई .ब्रेक्जिट समझौते का असर भारत पर भी पड़ने वाला है लेकिन भारतीय निवेशकों के लिये भी अगला कदम उठाने के लिये स्थति तभी स्पष्ट हो सकेगी जब गतिरोध टूटेगा और कोई नतीजा निकलेगा.
ब्रिटेन 1973 में 28 सदस्यीय यूरोपीय संघ का सदस्य बना था.२०१६ में इस बाबत हुए जन मत संग्रह के बाद उसे 29 मार्च को ईयू से अलग होना है. ईयू से अलग होने की तारीख आने में केवल दो महीने बचे हैं, लेकिन भी तक अनिश्चितता की स्थति बनी हुई है,ब्रिटेन अभी तक यह निर्णय नहीं ले पाया है कि उसे क्या करना है.29 मार्च 2017 को ही ब्रिटेन सरकार ने चर्चित आर्टिकल 50 लागू किया था जिसके तहत ठीक दो साल बाद ब्रेग्ज़िट लागू होना है.
दर असल एक और जहां यूरोपीय संघ के 27 देश ब्रिटेन के सदस्यता छोड़ने की शर्तों के बारे में एकजुट रहे हैं,वही ब्रिटेन में इस मुद्दे पर मतैक्य नही बन पाया है.ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने का समर्थक नहीं होने के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में टेरीसा मे ने जनमत संग्रह में हुए ब्रेक्जिट के फैसले का समर्थन किया और उसे लागू करने की कोशिश की. लेकिन मुश्किल ये रही है कि इस प्रक्रिया में वे सभी को साथ नही ले पायी हैं और पहले तो अपने कई मंत्रियों और फिर उन के बहुत से सांसद इस मुद्दे पर साथ नही दिखे.
इस दौर में कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया और संसद में मतदान के बाद अब सामने आया है कि कितने कंजरवेटिव सांसद अपने ही प्रधानमंत्री द्वारा किए गए समझौते के खिलाफ हैं, हालांकि इस के फौरन बाद उन के खिलाफ इसी सप्ताह संसद में विपक्ष द्वारा मुश्किल लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया.इस दौर में कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया और संसद में मतदान के बाद अब सामने आया है कि कितने कंजरवेटिव सांसद अपने ही प्रधानमंत्री द्वारा किए गए समझौते के खिलाफ हैं. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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