नई दिल्ली, 14 अक्टूबर, (शोभना जैन/वीएनआई) अमेरिका की चेतावनी और नाराजगी के बावजूद भारत ने अपने पुराने दोस्त रूस से S-400 ट्राएम्फ डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने का महत्वपूर्ण सौदा कर के जता दिया कि भारत के लिये उस के राष्ट्रीय सुरक्षा हित सर्वोपरि है. यही नही इस करार के बाद अब रूस की राजदूत ने ऐसे भी संकेत दिये है कि जल्द ही रूस से भारत को क्लाश्निकोव ए के 103 एजॉल्ट रायफले और चार स्टील्थ पनडुब्बी भी बेची जा सकती है हालांकि भारतीय पक्ष ने इस बारे मे अभी कोई टिप्पणी की है.
ऐसे मे सवाल पूछे जा रहे है कि क्या इन तमाम रक्षा सौदों से भारत अमरीकी प्रतिबंधों की जद मे आ सकता है, क्या अमरीका भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है ? गौरतलब है कि इस सौदे पर अमेरिका ने कहा था कि रूस के साथ एस-400 प्रक्षेपास्त्र प्रणाली खरीद समझौता एक ‘महत्वपूर्ण’ व्यापार समझौता है जो कि अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहे रूस के साथ किसी देश पर दंडनीय प्रतिबंध लगाने के लिए काफी है.अमरीका और रूस दोनो ही भारत के मित्र देश है जिन के साथ वह रक्षा क्षेत्र मे सहयोग और रक्षा सौदे करता रहा है और फिर रूस उस का रक्षा क्षेत्र का पुराना सहयोगी रहा है और अर्से से उस के साथ भरोसे से रक्षा करार कर अपने रक्षा क्षेत्र की आपूर्ति करता रहा है. निश्चय ही अपनी सामरिक स्वायत्तता, अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हित भारत के लिये सर्वोपरि है और वह इसी को आधार मान कर सभी देशों के साथ चलते हुए रक्षा क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रो मे द्विपक्षीय सहयोग करता रहा है.एक तरफ रूस और ईरान जैसे उस के साझीदार रहे है तो दूसरी तरफ इन देशो से दूसरे धुर पर खड़ा अमरीका है, जिस के साथ उस के मैत्री पूर्ण संबंध है और जो हाल के वर्षों मे और प्रगाढ हुए है, चुनौती इन सभी के साथ संभल कर चलते हुए सहयोग करने और सहयोग बढाने की है.
अमेरिकी सरकार ‘ अमेरिका के विरोधियों से प्रतिबंधों के माध्यम से मुकाबला करनेका अधिनियम’ (सीएएटीएसए केट्सा,) के तहत ईरान, उत्तर कोरिया और रूस के साथ ‘महत्वपूर्ण व्यापारिक लेनदेन’ करने वाले देश पर प्रतिबंध लगाने की बात पहले ही कह चुकी है.लेकिन इस के साथ यह भी देखना होगा कि इस रक्षा समझौते से एक माह पहले ही गत सितबंर मे ही भारत ने अमरीका के साथ "कॉमकासा" करार किया जो अमरीका अपने सहयोगी देशों के साथ ्करता रहा है जिस मे सहयोगी देशों की सेनाओं के बीच परस्पर संपर्क, सहयोग रहता है. विशेषज्ञो का मानना है कि क़ॉमकासा से भारत और अमरीका के बीच रक्षा सहयोग बढ सकता है, और यह बा्त अमरीका बखूबी समझता है. वैसे पहले भी भारत ने ईरान के खिलाफ अमरीका द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाये जाने के दौर में ईरान के साथ अपनी स्वतंत्र नीति अपना्कर साफ तौर पर संकेत दिया था कि वह अपने राष्ट्रीय हितो के अनुरूप फैसले लेता है.केट्सा और ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध ४ नं्वबर से लागू होंगे.दर असल केट्सा अधिनियम के तहत अमेरिका प्रतिबंधित देशों, खास कर रूस के तेल एवं गैस उद्योग, रक्षा एवं सुरक्षा उद्योग और वित्तीय संस्थान उद्योग से जुड़े हितों को लक्ष्य पर रखता है। अमेरिका ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस के कथित हस्तक्षेप और यूक्रेन में उसके सैन्य हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में यह अधिनियम लागू किया था।
इस रक्षा समझौते से भी भारत ने साफ कर दिया है कि अपने वायु रक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए लंबी दूरी की मिसाइल प्रणाली की खरीद उस के राष्ट्रीय हितों से जुड़ी है खासतौर पर लगभग 4,000 किलोमीटर लंबी चीन-भारत सीमा के लिए यह प्रणाली की जरूरत रही है. यहा यह जानना दिलचस्प है कि चीन ने रूस से इस सिस्टम को पहले ही खरीद रखा है हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इसमें उसने कौन सी मिसाइलें लगा रखी हैं.इस करार से पाकिस्तान भी काफी परेशान है। अभी हाल में वहां के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने रूस के साथ इस करार को परेशानी बताया। चौधरी ने कहा, भारत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ कर रहा है। रूस के भारत के साथ अच्छे रिश्ते हैं लेकिन बदलते अंतर राष्ट्रीय समीकरणो मे पिछले कुछ समय से पाकिस्तान भी रूस के करीब आ रहा है. रूस के साथ ये करार होने के बाद भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश बन गया जिसके पास यह मिसाइल सिस्टम होगा। भारत से पहले रूस चीन और तुर्की के साथ यह करार कर चुका है। साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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