नई दिल्ली, 11 सितम्बर, (शोभना जैन, वीएनआई) रूस के दुर्गम सुदूर पूर्वी क्षेत्र में बसा व्लादी्वोस्तोक .... कुछ बरस पूर्व वहा विदेश मंत्रियों के एक सम्मेलन को "कवर" करने के दौरान वहा हीरा कारोबार में लगे एक भारतीय व्यवसायी से मिलने का मौका मिला. लगा ऐसी दुरूह जलवायु में और अतयंत कठिन, चुनौतीपूर्ण परिस्थतियों के भारतीय कैसे पहुंचें ?, बर्फ से ढंके, बिना सूरज की रोशनी के दिन में भी अंधेरा सा बिखर देने वाले मौसम में, हाड़ कंपाती ठंड़ में सीमेंट की उंचे उंची दीवारों वाला हीरा कारखाना,और वहा तैनात चौकस हष्ट पुष्ट रूसी सुरक्षा कर्मियों के बीच कुशलता से ्सफल कारोबार संभालता भारतीय व्यापारी.प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल की चर्चित रूस यात्रा के सिलसिलें में रूस के पूर्वी साईबेरियायी तथा आर्क्टिक पोल क्षेत्र में स्थित व्लादीवोस्तोक की यात्रा से इस शहर का बरसों पुराना पूरा मंजर ऑखों के सामने फिर से आ गया.भरोसे और समय की कसौटी पर खरे उतरे रूस के साथ जहा इस यात्रा से मौजूदा भू राजनैतिक माहौल में दोनों देशों के उभयपक्षीय संबंधों ्को नयी तो गति तो मिली ही , साथ ही भारत ने अब इस सुदूर पूर्वी क्षेत्र में पस्पर सहयोग को "एक्ट फार ईस्ट" नीति . इस सुदूर पूर्वी क्षेत्र की यात्रा की अहमियत इसी बात से पता लगती हैं कि किसी भारतीय प्रधान मंत्री की इस क्षेत्र की पहली यात्रा थी.इस दौरान प्रधान मंत्री ने वहा आयोजित पूर्वी आर्थिक शिखर ्सम्मेलन में मुख्य अतिथि बतौर हिस्सा लिया.शिखर सम्मेलन में भारत ने पांच अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपये) के 50 समझौते किए हैं। भारतीय कंपनियों ने रूस तेल और गैस सेक्टर में निवेश किया है और रूसी कंपनियों ने ऊर्जा, रक्षा और तकनीक हस्तांतरण के क्षेत्र में निवेश किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के पेट्रोलियम, गैस और अन्य खनिजों से परिपूर्ण 'सुदूर पूर्व क्षेत्र' के लिए भारत सरकार की 'एक्ट फार ईस्ट' नीति को स्पष्ट करते हुए कहा, 'मुझे पूरी उम्मीद है कि इस कदम से विकास की आर्थिक कूटनीति को नई ऊर्जा मिलेगी। इससे दोनों मित्र देशों के आपसी संबंध और मजबूत होंगे।'उन्होंने रूस को एक अरब डॉलर कर्ज देना भारत की ओर से किसी अन्य देश में किसी क्षेत्र के लिए विशेष रूप से ऋण देने का अनूठा मामला बताते हुए कहा कि सहायता राशि क्षेत्र में भारत का 'लांचिंग पैड' ्हैं.गौरतलब हैं कि भारत पहला देश था जिस ने 1992 में व्लादीवोस्तोक में अपना वाणिज्य दूतावास खोला.पिछले कुछ वर्षों से भारत के अमरीका सहित अनेक पश्चिमी देशों के साथ संबंध भले ही बढे हो लेकिन रूस के साथ उस का रिश्ता "खास" बना रहा हैं.
दरसल रूस के इस सुदूर पूर्वी क्षेत्र परस्पर सहयोग भारत और रूस दोनों के लिये पूरक हैं. दरसल इस क्षेत्र की पीएम की यात्रा न/न केवल आर्थिक द्र्ष्टि से बल्कि सामरिक द्र्ष्टि से भी खासी अहम हैं.यह क्षेत्र पूर्वी साइबेरिया और पैसिफिक महासागर में दुनिया की सबसे बड़ी ताजा जल झील बैकाल झील के बीच का क्षेत्र है। मंगोलिया, चीन और उत्तर कोरिया के साथ इसकी सीमाएं लगती हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र की जापान के साथ दक्षिण-पूर्व में जबकि अमेरिका के साथ उत्तर-पूर्व में समुद्री सीमाएं भी लगती हैं।इस यात्रा की अहमियत के विभिन्न पहलू अगर देखे तो खास बात यह भी हैं कि इस सहयोग से भारत प्रशांत क्षेत्र में ्सामरिक भागीदरी और मजबूत हो सकती है. इस क्षेत्र के विकास मे विदेशी सहयोग के अंतराष्ट्रीय समीकरण अगर देखे तो ्जापान के साथ सीमा विवाद में उलझे होने के बावजूद जापान भी इस क्षेत्र में निवेश में कुछ दिलचस्पी दिखा रहा हैं.सबसे अहम बात, चीन की इस क्षेत्र मे निवेश को ले कर मौजूदगी बहुत मजबूत है.रूस और चीन के बीच बढती समझ बूझ के बीच यह तथ्य गौर करने लायक हैं कि यह हुए कुल विदेशी निवेश का 71 प्रतिशत चीन का ही है.ऐसे में जब कि लग रहा हैं कि अमरीकी प्रतिबंधों के बाद से रूस की दुनिया में सीमित होती भूमिका के साथ उस की चीन के प्रति निर्भरता बढती जा रही हैं. निश्चय ही भारत की इस क्षेत्र मे मौजूदगी अपने पारंपरिक मित्र के लिये संतुलन का काम कर सकती हैं और उस के खुद के आर्थिक, सामरिक हित मे तो यह है ही.राष्ट्रपति पुतिन रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र को विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं, वह चाहते है यहा बाहरी देश निवेश करे।
यह इलाका शीत युद्ध के अंत तक एक प्रतिबंधित क्षेत्र हुआ करता था, क्योंकि यहां पर ज्यादातर सैन्य सुविधाएं मौजूद थीं।कुल 11 जिलों के साथ यह क्षेत्र ऊर्जा स्रोतों के तौर पर काफी समृद्ध है. रूस में खनिज संसाधनों का य़ह सबसे बड़ा भंडार है। यहां पर अंतरिक्ष सुविधा के साथ ही एक एयरक्राफ्ट बिल्डिंग और एक शिप (समुद्री जहाज) बिल्डिंग कलस्टर भी विकसित किए गए हैं।दरसल उर्जा , परमाणु उर्जा ्सहयोग भारत रूस संबंधों का अहम पहलू रहे है. इस ्यात्रा के दौरान क्षेत्र में भी उर्जा के बारे में अहम समझौते हुए जिस में भारत को एल एन जी सप्लाई संबंधी समझौता साथ ही व्लादीवोस्तोक से ले कर चेन्नई तक नौवहन मार्ग बनाये जाने का समझौता शामिल हैं जो कि उर्जा सप्लाई का मार्ग होगा और दोनों के लिये ही फायदेमंद होगा.इस से यात्रा मार्ग के जरिये दोनों बंदरगाहों के बीच माल ढुलाई 40 दिन से घट कर 24 दिन ही रह जायेगी.दर असल ्यह मार्ग एक तरह से चीन के "मेरीटाईम सिल्क रूट' का जबाव हो सकता है जो कि चीन के विस्तारवादी 'वन बेल्ट वन रोड" परियोजना का हिस्सा है और चीन इस समुद्री मार्ग के जरिये वह एशिया अफ्रीका जल मार्ग को नियंत्रित करना चाहता है. पी एम मोदी ने कहा" दोनों देश भारत प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के नये अध्याय की शुरूआत कर रहे हैं. ्गौरतलब हैं कि चीन भारत प्रशांत क्षेत्र में बेहद आक्रामक ढंग से अपनी सैन्य मौजूदगी बढाने में लगा हैं. द्विपक्षीय सहयोग की बात करे तो दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र में तथा आर्कटिक में हायडृओ कार्बन तथा एल एन जी क्षेत्र मे सहयोग बढने के बारे मे पॉच वर्षीय रोडमेप भी खासा महत्वपूर्ण हैं.रक्षा क्षेत्र नें सैन्य साजो सामान का रूस अब भी भारत का न/न केवल बड़ा बलिक भरोसेमंद सप्लायर हैं. अमरीका, फांस , इजरायल जैसे देशो के आने के बावजूद भारत अब भी 58 प्रतिशत सैन्य सजो सामान रूस से ही लेता रहा हैं, अलबत्ता पिछले आठ दस बरसों में भारत में रूसी सैन्य साजो सामान निर्यात कम हुआ है।गौरतलब हैं कि रूस से भारतीय बेड़े में शामिल मिग और सुखोई जैसे लड़ाकू विमान भी इसी पूर्वी क्षेत्र मे बनते हैं.
भारत ने इस क्षेत्र में कृषि और भारत से दक्ष कामगार और कामगार भी इस क्षेत्र मे भेजे जाने की पेशकश की है. सुदूर पूर्व में मौसम बेहद दुरुह है। पूरे साल पूरा क्षेत्र बर्फ से ढंका रहता है। यहां जीवनयापन बेहद कठिन होने के चलते यहां की आबादी महज 81 लाख ही है और पिछले पच्चीस वर्षों मे यहा की 28 प्रतिशत आबादी पलायन कर गई हैं. निश्चित तौर पर इस क्षेत्र मे परस्पर सहयोग दोनों ही देशों के लिये पूरक हो सकेगा.समाप्त
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