नई दिल्ली, 26 मई, (शोभना जैन/वीएनआई) म्यांमार का रोहिंग्या संकट और विकट परिस्थतियों मे 2012 से म्यांमार से लगातार पलायन करने वाले रोहिंग्या शरणार्थियो के बंगलादेश के शिविरों मे बदहाल हालात मे रहने की खबरे लगातार सुर्खियों मे है. अंतराष्ट्रीय जगत मे इन की दशा को ले कर जहा चिंता व्यक्त की जा रही है, मानवाधिकार संगठनो सहित भारतीय फिल्म अभिनेत्री प्रियका चोपड़ा ने यूनीसेफ की प्रतिनिधि बतौर हाल ही में इन शिविरो का दौरा कर एक बार फिर शिविरों के भयावह हालात पर दुनिया का ध्यान फिर से खींंचा.
इन सब के साथ अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी भी इस मसले पर तेजी से करवट ले रही है. इस क्षेत्र मे चीन जै्सी महाशक्ति अपने सामरिक, आर्थिक हितों के मद्देनजर इस विवाद से जुड़े दोनो ही देशों, म्यांमार और बंगलादेश के साथ सच्चे हितैषी के रूप में समस्या का समाधान खोजने का दॉव खेल रही है , हालांकि भारत ने वहां शरणार्थियों को शुरू से ही भारी तादाद में मानवीय सहायता तो दी लेकिन एक स्पष्ट ठोस रवैया नही करने की नीति या यूं कहे कि चुप्पी अख़्तियार करे रखी, लेकिन अब उस ने वहां इस समस्या के समाधान की दिशा मे सक्रिय रूख अख़्तियार करना शुरू कर दिया है. इन्ही तमाम खबरों के बीच प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज बंगलादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना वाजेद के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता मे रोहिंग्या संकट और शराणार्थी मुद्दे पर व्यापक बातचीत की.श्रीमति हसीना ने इस मानवीय समस्या ्से निबटने के लिये भारत से अधिक आर्थिक सहयाता दिये जाने की ्माँग की. समझा जाता है कि उन्होने रोहिंग्याओं की म्यांमार शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने मे भी भारत के सहयोग का आग्रह किया.
दरअसल भारत इस क्षेत्र की बड़ी शक्ति होने के बावजूद इस मसले पर ठोस रवैया अपनाने से बचता रहा था लेकिन अपने इस हिचकिचाहट भरे शुरूआती रूख के बाद अब वह एक स्पष्ट रवैया अपना रहा है. इसी माह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांंमार की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान भारत के रूख को स्पषट करते हुए कहा कि भारत रोहिंग्या शरणार्थियों की म्यांमार के 'रखाइन' राज्य में सुरक्षित, शीघ्र वापसी और वहां उन के लिये सुरक्षित माहौल के पक्ष मे है. दरअसल इस बात पर अंतरराष्ट्रीय जगत की नजर रही है कि भारत इस मुद्दे पर क्या रूख अपनाता हैं क्योंकि ऐसा समझा जा रहा था कि भारत का इस मसले पर खुल कर सामने नही आना, म्यांमार के पक्ष मे है लेकिन उधर भारत का यह रूख बंगलादेश को लगा कि उसके ्पक्ष मे नही था, श्रीमति स्वराज ने इस मुद्दे का दीर्घकालिक समाधान पर जोर देते हुए इस समस्या के समाधान के लिये म्यांमार को समर्थन देने बल्कि रखिने सलाहकार आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने मे भी समर्थन का आश्वासन दिया.गौरतलब है कि भारत ने गत वर्ष ही म्यांमार मे आवास बनाने का समझौता कर रोहिंग्या के पेचीदा मसले के समाधान में हाथ बंटाने की कोशिश की थी.
दरअसल रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर बंगलादेश और म्यांमार दोनो ही आमने सामने है और भारत के दोनो ही पड़ोसी है और दोनो के साथ ही उस की सीमा जुड़ी हुई है, पूर्वोत्तर मे स्थाई शांति और सुरक्षा के लिये भारत की दोनो के साथ ही दोस्ती अहम है. उधर बंगलादेश की प्रधान मंत्री के लिये भी रोहिंग्याओं की जल्द वापसी अहम है क्योंकि इस वर्ष उन के देश मे चुनाव होने वाले है और इतनी बड़ी तादाद में रोहिंग्याओं के यहां आना बंगलादेश के बड़े वर्ग को बेहद नागवार लगा है, क्योंकि उन का कहना है कि इस से उनकी आर्थिक प्रगति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है साथ ही वे उन्हे अपनी सुरक्षा और शांति के लिये खतरा भी मानते है. इन हालात मे ,घरेलू दबाव के चलते शेख हसीना ने इन शरणार्थियों को कॉक्स बाजार के शिविरो से हटा कर बंगाल की खाड़ी के एक द्वीप मे ले जाने की ्योजना बनाई है जिसे अगले माह से कार्य रूप दिया जाना शुरू हो जायेगा. लेकिन उन के इस कदम की बंगलादेश से बाहर और शारणार्थी पूरी तरह से ना्पसंद कर रहे है क्योंकि उन का कहना है कि द्वीप रहने लायक नही है.
दरअसल चीन ने इस मामले मे पूरी चतुराई और सतर्कता से निष्पक्षता बनाये रखने का ्दाँव चला और दोनो के बीच संतुलन बनाने का काम किया हालांकि म्यांआर की सैन्य सरकार के साथ उस के मधुर रिश्ते थे लेकिन 2011 के बाद से जब म्यांआर की सैन्य सरकार ने देश की आर्थिक प्रगति, उर्जा जरूरते और सुरक्षा के मद्देनजर पश्चिमी देशो के लिये अपने द्वार खोले तो चीन सतर्क हुआ और उस ने रिश्तो को और नजदीक लाने की खातिर रोहिंग्या समस्या के समाधान मे अधिक सक्रिय भूमिका अदा करनी शुरू कर दी.
दरअसल रोहिंग्याओं को ले कर बंगलादेश और म्यांमार के बीच फंसे इस पेच को समझना होगा. म्यांमार की की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है. म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं. हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं लेकिन सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर रखा है.्म्यांमार के 'रखाइन स्टेट' जहा इन की बहुसंख्या रही है, वैसे तो 1980 के दशक से पलायन शुरू हो चुका है लेकिन2012 से बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और पिछले छह माह मे तो लगभग छह लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए , जिन्होने भाग कर बंगला देश मे शरण ली. बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी बदहाल हालत मे जर्जर कैंपो में रह रहे हैं.ऐसे आरोप लगते रहे है कि रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं. इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था.
खबरो के मुताबिक के अनुसार म्यांमार में मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद पिछले महीने 'रखाइन स्टेट' में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया था. सरकार के कुछ अधिकारियों का दावा है कि ये हमला रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने किया था. इसके बाद सुरक्षाबलों ने 'मौंगडोव' ज़िला की सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया और एक व्यापक रोहिंग्या कार्यकर्ताओं का आरोप है कि 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. म्यामांर के सैनिकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के संगीन आरोप लग रहे हैं.म्यांमार में 25 वर्ष बाद पिछले साल चुनाव हुआ था. इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी. लेकिन मानवाधिकारों की चैंपियन होने के बावजूद वे इस मुद्दे पर खामोश रही हैं. इन तमाम हालात मे समझा जा सकता है कि कि भारत को इस मसले पर संवेदन्शील डिप्लोमेसी से के साथ चलना होगा ताकि वह उस के राष्ट्रीय हित भी सर्वोपरि रहे और इस संकट का स्थाई तौर पर दोनो की अपेक्षाओं के अनुरूप स्थाई हल हो सके, रोहिंग्या शरणार्थी स्वदेश लौटें उन्हे वहां नागरिक के रूप मे रहने का हक़ मिले. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है )
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