लाईब्रेरी मज़ाक नही विकास की राह है

By Shobhna Jain | Posted on 14th Jan 2019 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 14 जनवरी, (शोभना जैन/वीएनआई) अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड  ट्रंप  भले ही अफगानिस्तान में भारत के लाईब्रेरी बनाने की बात पर,या यूं कहें कि वहा भारत के विकास कार्यों की भूमिका को ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसे लेकिन अब यह इबारत साफ हैं कि अमरीका ने भले ही इस बाबत आधिकारिक एलान नही किया हो कि 18 वर्ष के "अनिर्णायक अफगानिस्तान गृह युद्ध" के बाद  अन्ततः आफगानिस्तान से वह अपनी फौज हटा रहा है,लेकिन तय है कि जल्द ही अपनी काफी फौज वापस बुला भी लेगा. 

इस  तंज के जरिये  ट्रंप  संकेत देते ्लगते है कि कि अफगानिस्तान में हालात सामान्य करने के लिये भारत  के साथ रूस और पाकिस्तान जैसी क्षेत्रीय ताकतें अधिक सक्रिय भूमिका निभायें.सितंबर, 2001  में  ऑस्ट्रेलिया , जर्मनी, कनाडा सहित नाटो ्के अनेक देशों के  अमेरिकी नेतृत्व वाले  साझा सुरक्षाबलों के गठबंधन ने  अफगानिस्तान में तालिबान के उग्रपंथी सत्ता को उखाड़ फेंका  था.धीरे धीरे गठबंधन देशों की फौज  वहा से हटती गयी.दरअसल अब अमरीका  भी वहा से अपना हाथ खींचना चाहता है,अपनी फौज वहा से  हटाना  चाहता  हैं और धीरे धीरे हटा भी रहा है. 

अफगानिस्तान में घटनाक्रम तेजी से घूम रहा हैं,तालिबान  आतंकी हिंसा थम नही रही हैं.्सवाल उठ रहे है कि अमरीकी फौज हट जाने की स्थति क्षेत्र की सुरक्षा स्थति पर क्या असर पड़ेगा,पाकिस्तान का क्या रूख रहेगा ?, भारत किस तरह से इस बदलती स्थति के लिये तैयार होगा?, उस की सुरक्षा स्थति पर इस का क्या असर होगा ?. वहां के मौजूदा घटनाक्रम  में भारत निश्चय ही  किसी देश की मंशा या नीति की बजाय  अपनी क्षेत्रीय नीति पर ध्यान देगा और  वैसे भी भारत किसी मंसूबे के तहत नही अपितु सदियों पुराने समान सामाजिक  ताने बाने  से जुड़े अफगानिस्तान की  ज़रूरत के अनुसार उस की मदद करता रहा है और वहा किये जा रहे तमाम  पुनर्निर्माण और विकास कार्य इस का सबूत है और शायद वहा भारत  की  भरोसेमंद  दोस्त की छवि और अफगान जनता के मन मे भारत की यही छवि दिखती भी है. 

 इसी संदर्भ में  भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों का जायजा ले तो, दोनों के बीच प्रगाढ रिश्ते है  और वहा की स्थति के बारे में दोनों के बीच निकट विचार विमर्श चलता है, इसी के चलते अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. हमदुल्ला मोहिब ने इसी हफ्ते भारत आ कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल  अफगानिस्तान के घटनाक्रम के बारे में विस्तृत विचार-विमर्श किया। गौर करने लायक बात यह है कि सम्भवतः विकास कार्यों से ज्यादा भारत की अधिक सक्रिय भूमिका की  मंशा पाले ही टृंप ने तंज कसा कि " मैं आश्चर्य हूं कि आफगानिस्तान में  लाईब्रेरी का कौन उपयोग करेगा" लेकिन वहा की प्रतिकूल परिस्थतियों के बावजूद मे भारत द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों  पर अफगान जनता और नेतृत्व का विश्वास भारत के प्रति भरोसा जताने की कहानी है. वैसे इस टिप्पणी के फौरन   ही राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानत्री मोदी के साथ फोन पर  गृह युद्ध की मार झेल रहे अफगानिस्तान में समान्य स्थति बनाने मे आपसी सहयोग के प्रयासों पर चर्चा की. इसी घटनाक्रम के मद्देनजर यह बात भी अहम हैं कि ट्रंप के अफगान संबंधी मामलों के विशेष प्रतिनिधि  जेड खलीलजाद  इसी हफ्ते भारत सहित चीन, पाकिस्तान के दौरे पर  आ रहे है तथा इन देशों के प्रतिनिधियों के साथ अफगानिस्तान मे स्थति सामान्य बनाने मे आपसी सहयोग पर चर्चा करेंगे.

 मोहिब ने  भी सुरक्षा स्थिति  के  साथ अफगानिस्तान सरकार के शांति और सुलह के प्रयासों के बारे में भारतीय पक्ष के साथ मंत्रणा की। उन्होंने अफगानिस्तान में आर्थिक विकास और अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और मानव संसाधन विकास के लिए भारत द्वारा दी गई सहायता की सराहना की, जिसमें भारत में अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों का प्रशिक्षण शामिल है।राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल ने उस देश में शांति, सुरक्षा और समृद्धि लाने के लिए सरकार और अफगानिस्तान के लोगों के प्रयासों के लिए भारत के निरंतर समर्थन को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारत शांति और सुलह के लिए उन सभी प्रयासों का समर्थन करता है जो अफगान स्वामित्व वाले, अफगान नेतृत्व वाले और अफगान नियंत्रित हैं। अफगानिस्तान के क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों को अफगान लोगों की प्राथमिकताओं, इच्छाओं और आकांक्षा को ध्यान में रखते हुए काम करने की आवश्यकता है।  वास्तव में भारत की अफगान नीति का मूल मंत्र  यही है. वहा स्थति सामान्य बनाने के प्रयासो बतौर ही भारत जो कि तालिबान के साथ किसी वार्ता मे शामिल होने से इंकार करता रहा था, दो माह पूर्व गत नंवबर मे भारत की तरफ से  गैर आधिकारिक स्तर की वार्ता दो पूर्व राजनयिक मॉस्को शांति वार्ता मे  शामिल  भी हुए.
 
 भारत  वर्ष 2001 से अभी तक अफगानिस्तान को तीन अरब डॉलर से अधिक की मदद मुहैया करा चुका है.इन प्रोजेक्ट्स में अफगान संसद के भवन निर्माण के अलावा ्दूररसंचार,अस्पताल ,शिक्षा सहित  विभिन्न क्षेत्रों मे  पुनर्निर्माण से ले कर  अन्य अनेक विकास योजनाये ्चल रही है. हर साल एक हज़ार अफगानी बच्चों को भारत में स्कॉलरशिप दी जाएगी.बड़ी तादाद में अफगान नागरिक भारत मे चिकित्सा कराने के लिये आते है.वस्तुत:   यहा यह जानना भी अहम हैं कि इस पूरे क्षेत्र की तरह अफगानिस्तान मे  भी चीन की  भूमिका अहम हो रही है.
 
एक पूर्व राजनयिक के अनुसार ्भारत वहा कई बड़ी निर्माण परियोजनाओं को लागू कर रहा है, साथ ही अफगानिस्तान में लोगों की जरूरतों के  अनुरूप  सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को लागू कर रहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह का सहयोग देश को आर्थिक रूप से समृद्ध और स्थिर करने के लिए जारी रहेगा.अफगानिस्तान को बदलने में विकास संबंधी सहयोग बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. उन्होंने कहा कि भारत की प्रतिबद्धता यही हैं कि इस तरह का सहयोग देश को आर्थिक रूप से समृद्ध और स्थिर करने के लिए जारी रहेगा. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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