नई दिल्ली, 01 मार्च, (शोभना जैन/वीएनआई) सऊदी अरब युवराज मुहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान के अपने बहुचर्चित दौरे के बाद भारत यात्रा संपन्न कर चीन के अपने अगले पड़ाव पर चले गये. पश्चिम एशिया राजनीति के एक प्रमुख बिंदु रहे सउदी अरब देश के शहजादे का भारत की पहली राजकीय यात्रा में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रोतोकोल के नि्यमों को दरकिनार कर हवाई अडडे पर जा कर अगवानी की, उन्हें गर्म जोशी से गले लगाया.सवाल हैं कि क्या यह "हग डिप्लोमेसी" आतंक से निबटने विशेष तौर सीमा पार के आतंक से निबटने में भारत की सहयोगी बन सकेगी, इस से दोनो देशों के बीच आपसी समझ बूझ बढेगी, द्विपक्षीय रिश्तों का एक नया दौर शुरू होगा ? और फिर भारत और पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तें निभाने में वह संतुलन भर साधता रहेगा ?.
सुर्खियों में रहे इस दौरे को जहा एक तरफ "काफी महत्वपूर्ण' और 'सफल" बताया गया वही इस यात्रा के प्रारंभ में शहजादे द्वारा जारी बयान में पुलवामा हमले का जिक्र नही होने और न/न ही पाकिस्तान और पुलवामा हमले की जिम्मेवारी लेने वाले पाक स्थित आतंकी गुट ्जैश-ए- मोहम्मद का उल्लेख नही किये जाने पर सवाल खडे किये गये या यूं कहे चिंता जताई हैं वही राहत की बात यह रही कि बाद में दोनो देशों द्वारा जारी संयुक्त बयान मे पुलवामा हमले की कड़े शब्दों में कड़े शब्दों में भर्त्सना की गई और वही सउदी ने भारत के इस रूख से सहमति जाहिर की कि संयुक्त राष्ट्र ्द्वारा आतंकी संगठनों और आतंकियों को प्रतिबंधित किये जाने की जरूरत है अलबत्ता इस में फिर जैश और उस के आतंकी सरगना मसूद अजहर के नाम का जिक्र नही था. सूत्रों का कहना हैं कि सउदी अरब ने आतंक पर भारत की चिंता को ले कर काफी संवेदनशीलता दिखाई. सूत्रों का मानना हैं कि इन चिंताओं को हमे सकारात्मक तरीके से देखना होगा क्यों कि अच्छा होगा कि ऐसा रास्ता बने कि सउदी पाकिस्तान को आतंक का रास्ता बंद के लिये कह सके. वैसे इस सकारात्मकता में हमे यह भी ध्यान रखना होगा कि ्पाकिस्तान यात्रा के दौरान सउदी और पाकिस्तान द्वारा जारी संयुक्त बयान मे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकियो को प्रतिबंधित किये जाने की सूची पर "राजनीति" नही करने का आह्वान किया गया और यह तब किया गया जब कि भारत अतंतर राष्ट्रीय समुदाय से जैश के सरगना अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित किये जाने की लागातार मॉग उठा रहआ हैं. दरअसल जब हम इस यात्रा का आकलन करते है तो यहा यह भी गौर करना अहम होगा कि भारत और सउदी द्वारा जारी संयुक्त बयान मे ' आतंक को देश द्वारा प्रायोजित किये जाने ्की भर्त्सना' को भी आतंक के प्रति भारत के रूख पर सउदी सहमति है जो नया "जाहिर नजरिया" निश्चय ही सकारात्मक हैं.वैसे यहा यह जाना दिलचस्प हैं कि आतंक की धुरी माने जाने वाले और खास तौर पर पुलवामा हमले के बाद दुनिया भर से अलग थलग पड़ते जा रहे और साथ ही आर्थिक खस्ताहाली से जूझ रहे पाकिस्तान सरकार ने सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान को सोने की एक तोप उपहार में दी. खबरों के अनुसार पाकिस्तान की सीनेट के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री ्निवास पर युवराज सलमान से मुलाकात की थी, जहां सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने उन्हें सोने की एक तोप उपहार में दी.पाकिस्तान का समूचा दर्शन और आतंक पर उस का रूख इस 'तोप भेंट' से समझा जा सकता है.
वैसे पाक दौरे में सउदी द्वारा उसे दी गई २० अरब डॉलर की मदद पर पश्चिम एशिया मामलो के एक विशेषज्ञ का कहना हैं कि पाकिस्तान को यह मदद उस की खस्ता हाल हालत से उबरने मे मदद देने बतौर है,जबकि इस की तुलना भारत में सउदी द्वारा १०० अरब डॉलर के निवेश की वचन बद्धता से कतई नही की जा सकती है क्योंकि सउदी ने यह मदद भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति के मद्दे नजर की है. बहर हाल इस दौरान भारत और सउदी के बीच विभिन्न क्षेत्रों मे उभय पक्षीय सहयोग बढाने के लिये पॉच समझौते भी हुए.प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी अरब के युवराज सलमान के बीच विस्तृत बातचीतके बाद दोनों पक्षों के बीच पर्यटन समेत कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय निवेश के लिए पांच सहमति ज्ञापन पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।दौरे का एक अहम फैसला दोनो देशों द्वारा सुरक्षा सहयोग बढाते हुए "व्यापक सुरक्षा संवाद" को संस्थागत रूप देना भी रहा जिस से दो देश समान सुरक्षा मसलों से निबटने के लिये आपसी सहयोग करेंगे इस में इस सिलसिले में सूचनाओं के आदान प्रदान मे सहह्योग शामिल हैं इस के अलावा साईबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा दो नये पहलू इस सुरक्षा सहयोग प्रारूप मे शामिल किये गये.दोनो देशों द्वारा हिंद महा सागर रिम क्षेत्र के देशों के साथ मिल कर क्षेत्र मे समुद्री सुरक्षा बढाने पर सहमति और हिंद महासागर में नौसैनिक गश्त लगानेवाला समझौता भी अहम है.
दर असल शहजादे की भारत यात्रा पुलवामा हमले के फौरन बाद हुई जिस मे आतंक वार्ता का मुख्य मुद्दा बनन स्वाभाविक ही था. भारत के सउदी अरब के साथ खास रिश्ते रहे हैं, जो सिर्फ तेल से ही नही जुड़े हैबल्कि उस के अन्य अनेक आयाम है. खास तौर पर पश्चिम एशिया की राजनीति उस से जुड़ी है, मुसलमानों के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का और मदीना भी सऊदी अरब में ही स्थित हैं और इनके रखवाले के रूप में वही हज यात्रा का प्रबंधन करता है. देखना होगा कि पाकिस्तान के प्रति उस का पारंपरिक पक्षधर रहने वाला रूख, पश्चिम एशिया का तेजी से बदलता घटनाक्रम, पाकिस्तान से ईरान के संबंध, सउदी और इरान के बीच ३६ का ऑकड़ा, तमाम समीकरण अहम है.लगभग 27 लाख भारतीय कर्मी सउदी में काम करते है. देखना होगा कि इन तमाम पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए सउदी शहजादे की इस यात्रा से भारत सउदी रिश्ते क्या स्वरूप लेते है, विशेष तौर पर उन रिश्ते का इस क्षेत्र पर क्या प्रभाव प्ड़ता हैं. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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