नई दिल्ली, 1 फरवरी,( शोभनाजैन/वीएनआई) धीरे धीरे रात में तब्दील होती गहराती सॉझ... बाली (इंडोनेशिया) के समुद्र तट पर सतरंगी रोशनियों से तिलस्म सा बुनता खुबसूरत मंच और उस पर मधुर संगीत लहरियों के बीच सुंदर ताल और भाव मुद्राओं के साथ नृत्यनाटिका के जरियें 'रामायण' का मंचन करते इंडोनेशियायी कलाकार... और कला को सराहते हुए मंत्र मुग्ध बैठे दर्शक और इसी के साथ 'कुछ' चेहरे उस सुदूर विदेशी धरती पर वहा 'राम सीता' को निहार श्रद्धा ,आस्था से भरे नजर आये.वे कलाकार भले ही इंडोनेशियायी रहे हो लेकिन राम वही , सीता वही , यानि केवल भारत के ही राम सीता नही बल्कि आसियान देशो की साझी विरासत वाले राम और सीता.
हाल ही में राजधानी मे भारत आसियान शिखर सम्मेलन के उपलक्ष्य मे हुए भारत आसियान रामायण महोत्सव मे बरसों पहले बाली (इंडोनेशिया) मे देखी इसी रामायण नृत्य नाटिका की यादें ताजा हो उठी.इस बार आयोजन भले ही था रामायण की भूमि भारत मे.. लेकिन वही इंडोनेशिया्यी कलाकार...और रामायण पर आधारित नृत्य नाटिका के जरिये उन का वैसा ही भाव प्रवण मंचन.. उसी सुंदर लय ताल के साथ. इंडोनेशिया के इस लेगोंग जॉबोंग दल द्वारा सुग्रीव, बाली और राम के मिलन का भाव विभोर कर देने वाला प्रसंग,और यहां भी कला को सराहते हुए दर्शको के साथ कुछ चेहरो पर वही श्रद्धा, आस्था नजर आयी.इंडोनेशियायी कलाकारो द्वारा अपने देश से हजारों मील दूर भारत मे राम और सीता और हनुमान का मंचन...यह है आसियान का रामायण सेतु.. यही है भारत और आसियान देशों की साझा विरासत... विरासत जो हमे ्भावनात्मक तौर पर एक सेतु ्से बॉधे हुए है , ्सेतु जो कभी म्यॉमार, थाईलेंड के बौद्ध मठों से आने वाले मंत्रोच्चार 'बुद्धम शरणम गच्छामि'बन जाता है,तो कभी कंबोडिया का सैंकड़ो बरस पुराना अंगकोर वाट हिंदू मंदिर तो कभी इंडोनेशिया का शिव मंदिर . ये सभी है आसियान के सांस्कृतिक सेतु . दरअसल भारत और सभी आसियान देशो के बीच ये सूत्र एक मजबूत सा्स्कृतिक बंधन है और 'रामायण सेतु' जैसी 'कल्चर डिप्लोमेसी' की 'सॉफ्ट पॉवर पहल' साझी विरासत वाले आसियान- भारत के बीच नजदीकियों बढाने के प्रयास बतौर देखा जा सकता है.
'साझा मूल्य साझा भाग्य' के थीम के साथ इंडोनेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओ पीडीआर, म्यांमार और वियतनाम के राष्ट्रा्ध्य्क्षों ने हाल ही में राजधानी मे अहम आसियान शिखर बैठक में हिस्सा लिया.इस सफल शिखर बैठक को इन देशों के साथ 'कॉमर्स, कनेक्टीविटी और कल्चर थ्री सी' के एजेंडा के साथ आपसी रणनीतिक संबंधो को बढाने के लिये हमारी वचनबद्धता के महत्वपूर्ण चिन्ह माना गया . कूटनीतिक सूत्रो का कहना है कि एक तरफ जहा 'थ्री सी' के जरिये आर्थिक, राजनैतिक, सामरिक रिश्तें, खास तौर पर समुद्री सुरक्षा मजबूत बनाने की नयी पहल हुई है, और सम्मेलन मे जारी दिल्ली घोषणा पत्र इसी दिशा मे मील का पत्थर माना जा रहा है. इसी के साथ आसियान की साझी सांस्कृतिक विरासत के जरिये 'कल्चर डिप्लोमेसी' की यह 'सॉफ्ट पॉवर पहल' से सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत बनाने के प्रयासो मे और तेजी लाने पर सहमति हुई है. तक्षशिला मे इस देशो के छात्रो का अध्ययन, बोद्ध धार्मिक स्थलो को जोड़ने वाला बोद्ध सर्किट या फिर इन देशों की जनता के बीच आपसी संपर्क बढाने के लिये आसियान पर्यटन वर्ष और फिर 'रामायण सेतु' इस दिशा में अहम कड़ी है.इसी शिखर बैठक में वियतनाम ने शिखर बैठक के उपलक्ष्य में भारत के साथ मिल कर एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया जो बौद्धध धर्म की साझी विरासत के बारे मे है. दरअसल शिखर बैठक आसियान देशो के साथ संवाद साझीदारी के २५ वर्ष और सम्मेलन स्तर पर बातचीत के १५ वर्ष तथा रणनीति्क भागीदारी के ५ वर्षो का उत्सव था. उम्मीद यही रही है कि इस तरह के आयोजनों से भारत और आसियान देशों के बीच के प्राचीन संबंध समकालीन ग्रुप के रूप मे अधिक सक्रिय हो पायें. गौरतलब है कि आसियान के साथ नजदीकियॉ बढाने के प्रयास स्वरूप पहली बार सभी दस आसियान देशों के राष्ट्र प्रमुख नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में विशेष अतिथि रहे.परेड और राष्ट्रपति भवन मे आयोजित स्वागत समारोह मे भारत की समृद्ध ्हस्तशिल्प परंपरा के प्रतीक लाल रेशमी दुशाले गले में ओढे आसियान राष्ट्राध्यक्ष उसी साझी सासंकृतिक विरासत को दर्शाते नजर आये.
इसी शिखर बैठक के उपलक्ष्य में इन देशों द्वारा अपनी अपनी शैली में रामायण को मंचित किया गया, जो खासा सफल रहा. आसियान देशों के कलाकारो द्वारा रामायण मंचन की शैली अलग भले ही हो लेकिन भावना एक ही रही, और यह समारोह उसी साझी विरासत, भावना का उत्सव रहा. इन सभी देशों मे रामायण आस्था का एक परिचित ग्रंथ है जिसे वह नृत्य नाटिका के जरिये मंचित करते रहे है. दरअसल रामायण इस क्षेत्र मे मित्रता का एक सेतु बन गया है जो भारत और आसियान देशों के बीच मित्रता और दक्षिण पूर्व एशिया की साझा सांस्कृतिक विरासत को रेखांकित करता है. कहीं रामायण का नाम अलग है तो कहीं कथा में कुछ अंतर है. लेकिन राम के नाम के साथ कहीं बदलाव नहीं. यानी जो राम हिंदुस्तान में करोड़ों की आस्था का केंद्र हैं वहीं राम दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी भक्ति का केंद्र हैं तभी हजारों साल पुरानी रामकथा का मंचन आज भी जारी है.शायद यही वजह रही कि महोत्सव मे भले ही थाईलैंड के कलाकारों द्वारा खोन, रामाकीन रामलीला में भगवान राम द्वारा स्वर्ण मृग मारीच का पीछा करने, सीता हरण और राम-रावण युद्ध का सशक्त मंचन हो,या म्यांमार के रॉयल पोता कलाकारो द्वारा भगवान राम की जन्मकथा और सीता स्वयंवर का नयनाभिराम मंचन . सिंगापुर के कलाकारों द्वारा अशोक वाटिका में हनुमान जी के पहली बार सीता जी के दर्शन और उनकी व्यथा कथा का सजीव मंचन हो या मलेशिया से आए क्षेत्रा अकादमी ट्रूप का रामजन्म से लेकर सीता स्वंयवर का भरतनाट्यम शैली में मंचन , सभी जगह मंचन शैली भले ही अलग हो , लेकिन वही प्रभावशाली राम कथा... राजधानी के बाद अब इन देशों की राम कथाओं का मंचन देश के अन्य भागो मे भी किया जा रहा है.इंडोनेशिया के कलाकार लखनऊ में सुग्रीव-बाली युद्ध का मंचन कर रहे है तो अयोध्या में थाईलैंड के कलाकार राम रावण युद्ध का मंचन करेंगे. कोलकाता में फिलीपींस के कलाकार सीता की अग्नि परीक्षा का मंचन करेंगे यानि राम के देश में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को रामकथा सुनाने का मौका मिल रहा है.आसियान देशों की सॉझी विरासत की यही झलक गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी के राज पथ पर आयोजित विदेश मंत्रालय की आसियान की झॉकी और कुछ अन्य राज्यों की झाकियों मे देखने को मिली जब राजपथ बोद्ध मंत्रोच्चार की ध्वनियों से गूंज उठा और झॉकियों मे राम कथा ्के मंचन ने सभी को चाहे वह आसियान के किसी देश का हो या भारतीय रहा हो एक सूत्र से बॉध दिया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी राजधानी में आसियान देशों के रामायण महोत्सव के आयोजन पर प्रसन्नता जताई ।आसियान देशों में होने वाली रामायण महोत्सव का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् (आईसीसीआर) ने इन देशो के दूतावासो के साथ मिल कर किया है.आईसीसीआर अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे के अनुसार पहली बार एक साथ सभी आसियान देशों के कल्चरल ट्रूप को बुलाया गया है। इन सभी देशों में रामायण के मंचन करने का चलन बहुत पहले से ही है, परिषद की महानिदेशक रीवा दास गॉगुली ने रामायण महोत्सव मे आसियान देशो की भागीदारी पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उत्सव आसियान क्षेत्र के साथ गहन एतिहासिक ्संबंध और प्राचीन सभ्यताओं के संपर्क की अभिव्यक्ति है. इससे पहले दो वर्ष पूर्व परिषद ने पहला अंतरराष्ट्रीय रामायण मेला भी आयोजित किया था जहा, मॉरीशस, फिजी और इंडोनेशिया सहित आठ देशो के कलाकारो ने हिस्सा लिया.बहरहाल सफल रामायण महोत्सव से उम्मीद है कि इस तरह के आयोजन के जरिये भारत की आसियान क्षेत्र की जनता के बीच आपसी संपर्क और बढाने के प्रयास सफल होंगे और आसियान देशो की साझीदारी के साथ'कल्चर डिप्लोमेसी' की यह 'सॉफ्ट पॉवर कूटनीति' क्षेत्र को और नजदीक लायेगी. साभार- पंजाब केसरी (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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