नई दिल्ली,10 फरवरी (सुनील कुमार जैन/वीएनआई ) हमारी सरहदो का बहादुर रखवाला हनुमनथप्पा कोपड़ अभी भी कोमा में हैं लेकिन सांसें चल रही हैं, उसकी हालत गंभीर बनी हुई है. डॉक्टरो की एक टीम उसे बचाने की जद्दोजहद मे लगी है और के इस ब कुदरत का करिश्मा हनुमनथप्पा हमेश की तरहपूरी दिलेरी से मौत को पटखनी देने की जंग जारी रखे है. पूरा देश उसकी सलामती की दुआ मॉग रहा कामना कर रहा है. अमिताभ बच्चन से ले कर क्या खास क्या आम सभी के हाथ दुआओ मे उठे है.
सियाचिन में आये बर्फीले तूफान मे छह दिनों तक २५ फुट बर्फ के नीचे दबे रहे लांसनायक हनुमनथप्पा चमत्कारिक ढंग से मौत को मात देने में कामयाब रहे। उन्हें कल सुबह सियाचिन से दिल्ली के सैन्य अस्पताल लाया गया। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। उनका लिवर और किडनी ठीक से काम नहीं कर रहा। साथ ही उन्हें निमोनिया भी है।
दिल्ली के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने आज कहा कि उनकी हालत में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है। हनुमनथप्पा मद्रास रेजीमेंट के अधिकारियों की टीम के सदस्य थे, जो तीन फरवरी को सियाचिन में पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा के निकट 20 हजार पांच सौ फीट की ऊंचाई पर बर्फ का पहाड़ ढहने से उसकी चपेट में आ गए थे।
हादसे के बाद से ही सेना और वायुसेना ने दुर्गम इलाके की विषम परिस्थितियों के बीच खोजबीन अभियान चलाया। जबकि हादसे के 48 घंटे बाद सभी सैनिकों को मृत मान लिया गया था। लेकिन गत सोमवार को कुदरत का करिश्मा देखने को मिला, जब हनुमनथप्पा को बर्फ की कठोर चट्टानों के बीच दबा पाया गया।
कई घंटों तक 35 फीट बर्फ हटाने के बाद हनुमनथप्पा तक रेस्क्यू टीम पहुंची। 33 साल के हनुमनथप्पा 125 घंटे से वहां थे। उनका फाइबर युक्त तंबू ध्वस्त हो चुका था। उनकी बॉडी में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही थी। वे बेहोशी की हालत में मिले। उनकी नब्ज नहीं मिल रही थी। उनके शरीर का पानी सूख चुका था। डिहाइड्रेशन के अलावा ठंड से हाइपोथर्मिया हो गया था। सोनम पोस्ट पर सेना के बचाव दल ने देर रात उन्हें बर्फ काटकर बाहर निकाला। मेडिकल टीम यह देखकर हैरान रह गई कि हनुमनथप्पा की सांसें मद्धम मद्धम ढंग से चल रही थीं। मेडिकल टीम ने उन्हें वहीं प्राथमिक चिकित्सा दी। इसके बाद उन्हें साल्तोरो रिज स्थित दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित हेलीपैड से हेलीकाप्टर के जरिए बेस कैंप लाया गया। अगले 24 से 48 घंटे क्रिटिकल हैं।
आर्मी की 19वीं मद्रास रेजिमेंट के 150 जवानों और लद्दाख स्काउट्स और सियाचिन बैटल स्कूल के जवानों को 19600 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया। इनके साथ दो स्निफर भी थे। आर्मी के सामने चैलेंज यह था कि उसे 800-1000 मीटर के इलाके में इंच-दर-इंच सर्च करना था। यहां 35 फीट तक बर्फ जम चुकी थी। यह पत्थर से भी ज्यादा सख्त होती है। सियाचिन के बेहद मुश्किल मौसम को झेलने के लिए ट्रेन्ड जवानों ने चौबीसों घंटे सर्च जारी रखी। दिन में टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री और रात में माइनस 55 डिग्री चला जाता था। इसके बावजूद जवान और दोनों खोजी डॉग्स डॉट और मिशा ऑपरेशन में लगे रहे।
आर्मी ने इतनी ऊंचाई पर पेनिट्रेशन रडार भेजे जो बर्फ के नीचे 20 मीटर की गहराई तक मेटैलिक ऑब्जेक्ट्स और हीट सिग्नेचर्स पहचान सकते हैं। एयरफोर्स और आर्मी एविएशन हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल में लाए जाने वाले रेडियो सिग्नल डिटेक्टर्स भी भेजे गए। इनसे ऑपरेशन में मदद मिली। तेज हवाओं के चलते बार-बार रेस्क्यू ऑपरेशन में अड़चनें आईं। छठे दिन हनुमनथप्पा मिल गए। बाकी 9 जवानों के शव भी मिले। दरअसल, एवलांच से पहले बेस कैम्प को रेडियो मैसेज मिला था। आर्मी का मानना है कि यह मैसेज हनुमनथप्पा ने ही किया होगा। इस मैसेज की लोकेशन ट्रेस करते हुए टीम एक जगह पर पहुंची। स्निफर डॉग्स उस लोकेशन पर आकर रुक गए, जहां हनुमनथप्पा फंसे हुए थे। हीट सिग्नेचर्स ट्रेस करने वाले पेनिट्रेशन रडार ने भी यही लोकेशन ट्रेस की। इसके बाद एक लोकेशन फाइनल कर सोमवार शाम 7.30 बजे बर्फ को ड्रिल करने का काम शुरू हुआ।
सियाचिन जैसे भीषण ठंड के हालात मे हनुमनथप्पा का जिंदा मिलना डॉक्टरो के लिये भी पहेली ही है. उसका योग प्रशिक्षक होना, उस पर टंट का गिरना, बर्फ मे सुराख ब्न जाना और उस छेद मे से ऑक्स्जीन आना कितनी ही थ्योरी दी जा रही है लेकिन उसके जिंदा बच निकलने की असली बाते वो ही बता पायेगा. सियाचिन की ठंड का तो आलम यह है कि यदि नंगे हाथों से बंदूक के ट्रिगर या नली को 15 सेकंड तक छू लें तो हाथ सुन्न पड़ जाएंगे या फ्रोस्ट बाइट हो जाएगा। यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें अत्यधिक ठंड के कारण अंगुलियां या शरीर के अंग गल कर गिर जाते हैं।्वी एन आई