नई दिल्ली 21 सितम्बर ( साधनाअग्रवाल,वीएनआई) हमारे परिजनो के जीवन संध्या काल मे अचानक धीरे धीरे ऐसा होने लगे कि हमारा बेहद अपना धीरे धीरे कुछ पलो के लिये ही भले हमे पहचान नही पाये, पचासो बरस पहले गुजर चुके अपने मॉ बाप की बाते वे ऐसे करे जैसे वो उनके वो अपने इर्द गिर्द ही हो, लेकिन आज अपने आस पास बैठे अपनो की पहचान गडड-मडड कर दे, खाना कब खाया भूल ही जाये,सब बेहद तकलीफदेह...उनकी बेबसी देख आप कुछ कर नही पाये सिर्फ हौले से उन्हे दुलार कर उनकी वो बाते सुने, उनकी सेवा एक बच्चे की तरह करे. कुछ समय पूर्व तक बेहद सतर्क और समझदार रहे एक बुजुर्ग को जब अल्जाइमर रोग के शुरूआती लक्षणो से घिरा देखा तो मन बहुत गीला सा हो गया, लेकिन धीरे धीरे इस रोग के बारे मे जानने समझने के दौरान, बेबसी के उन लम्हो मे कुछ उजली सी रोशनी भी नजर आने लगी. जी हां...यह कोई ऐसी बीमारी नही जो पूरी तरह से लाइलाज है.भले ही अभी इसका पूरा ईलाज नही ढूंढा गया हो लेकिन अगर चिकित्सक की सलाह से चला जाये और उन बुजुर्गो को प्रेम से समझ कर उनकी पूरी देखभाल की जाये तो इस बीमारी को बढने से कुछ हद तक रोका जा सकता है. अल्जाइमर रोग दिमाग का एक ऐसा रोग है जहा दिमाग से संचालित क्रियाये धीरे धीरे अनियंत्रित होने लगती है. यह एक तरह की भूलने की बीमारी है, जो सामान्यत: बुजुर्गो में होती है। यह धीरे धीरे बढती है.अमूमन 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है । हालांकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है । इस बीमारी से पीड़ित मरीज सामान रखकर भूल जाते हैं। यही नहीं, वह लोगों के नाम, पता या नंबर, खाना, अपना ही घर, दैनिक कार्य, बैंक संबंधी कार्य, नित्य क्रिया तक भूलने लगता है, लेकिन अगर चिकित्सक की सलाह से चला जाये और उन बुजुर्गो को प्रेम से समझ कर उनकी पूरी देखभाल की जाये तो इस बीमारी को बढने से पर कुछ हद तक रोका जा सकता है, हालांकि इस रोग पर पूरी तरह से काबू पाने के लिये अभी दवा विकसित नही हो पाई है लेकिन इस क्षेत्र मे चिकित्सक काफी शोध मे जुटे है और उम्मीद है इसकी इलाज भी ढूंढ ही लिया जायेगा। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इसकी जानकारी दी थी ।
चिकित्सको के अनुसार अल्जाइमर बीमारी, डिमेंशिया रोग का एक प्रमुख प्रकार है। डिमेंशिया के अनेक प्रकार होते हैं। इसलिए इसे अल्जाइमर डिमेंशिया भी कहा जाता है। जाने माने न्यूरोसर्जन डॉ एल एन अग्रवाल के अनुसार अल्जाइमर डिमेंशिया प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में होने वाला एक ऐसा रोग है, जिसमें मरीज की स्मरण शक्ति धीरे धीरे कमजोर होती जाती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह रोग भी बढ़ता जाता है। याददाश्त क्षीण होने के अलावा रोगी की सोच-समझ, भाषा और व्यवहार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,उसके अलावा लोगों के नाम, पता या नंबर, खाना, अपना ही घर, दैनिक कार्य, बैंक संबंधी कार्य, नित्यक्रिया भूलने जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। मरीज चिड़चिड़ा, शक्की, हो जाता है, अचानक रोने लगना, भाषा व बातचीत प्रभावित होना अल्ज़ाईमर के लक्षण हैं लेकिन राहत की बात है कि इस रोग पर अंकुश लगाने के बारे मे काफी शोध कार्य हो रहे है,उम्मीद है जल्द ही इसके पूरी तरह से निदान ढूंढ ही लिया जायेगा, लेकिन अब भी चिकित्सा कर्मी और रोगी के परिजन मिल कर रोग के फैलाव को एक सीमा तक कुछ सीमा तक अंकुश लगा सकता है. इस बीमारी के इलाज मे चिकित्सा कर्मियो के साथ मरीज के परिजनो की बहुत अहम भूमिका है, वह रोगी की प्रेम से अगर तीमारदारी करेंगे, उसके साथ प्रेम से रहेंगे तो दवा के साथ प्रेम की डबल डोज से इस बीमारी को तेजी से बढने से रोका जा सकेगा, अभी भी ऐसी काफी दवाये ऐसी है जिससे इस रोक पर इन तमाम उपायो के साथ एक सीमा तक अंकुश लग सकता है।। एक अध्ययन से यह भी पता चला है की समूह में संगीत थैरेपी से अल्जाइमर मरीजों को बेहतर संपर्क स्थापित करने में मदद मिलती है ।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार तीन में से एक अल्जाइमर रोग को रोका जा सकता है । शोध के अनुसार व्यायाम ना करना, तनाव, धूम्रपान और अशिक्षा इसके मुख्य कारण है । आंकड़ों के अनुसार भारत मे तकरीबन 35-40 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित है, आंकड़ों की माने तो पूरे विश्व मे 80 वर्ष से अधिक उम्र के 10 मे से एक व्यक्ति और 90 वर्ष से अधिक उम्र मे 4 मे से एक व्यक्ति आल्ज़ाईमर की बीमारी से ग्रसित होते हैं
चिकित्सको के अनुसार इस रोग के उपचार के लिए रोगी की दिनचर्या को सहज व नियमित बनाएं, समय पर भोजन, नाश्ता, बटन रहित कुर्ता पजामा, सुरक्षा आदि पर विशेष ध्यान दें। रोगी का कमरा खुला व हवादार हो। रोगी की आवश्यकता की वस्तुएं एक स्थान पर रखें। जाने माने स्नायु रोग विशेषज्ञ डॉ डी सी जैन के अनुसार मरीजों के इलाज के लिए कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से ऐसे रोगियों की याददाश्त और उनकी सूझबूझ में सुधार होता है। ये दवाएं रोगी के लक्षणों की तीव्रता को कम करने या दूर करने में सहायक होती हैं। इन दवाओं से मस्तिष्क के रसायनों के स्तर में बदलाव आता है और यह बदलाव मरीज की मानसिक स्थिति में सुधार लाता है।
उन्होने कहा कि अक्सर मरीज के परिजन इस रोग के लक्षणों को वृद्धवस्था की स्वाभाविक परिस्थितियां मानकर उपचार नहीं करवाते। इस कारण से इस रोग का उपचार असाध्य हो जाता है। इसके अलावा इस रोग में मरीजों के परिजनों की काउंसलिंग की भी जरूरत पड़ती है, ताकि वे मरीज की ठीक तरह से देखभाल कर सकें, उन्होने कहा कि इस रोग के रोगियो के परिजनो को विशेष तौर पर उन्हे खुश रखना चाहिये, उन्हे सुखद स्मृतियो को याद दिलाना चाहिये, उन्के मन को समझना ,उन्हे स्नेह देना इन्हे खुशी देता है,इससे बीमारी के बढने की समय सीमा को कुछ हद तक आगे बढाया जा सकता है.वी एन आई