मॉ कैसी होती है गौरैया (कल गौरैया संरक्षण दिवस पर विशेष)

By Shobhna Jain | Posted on 19th Mar 2017 | देश
altimg
मॉ कैसी होती है गौरैया (कल गौरैया संरक्षण दिवस पर विशेष) नई दिल्ली १९ मार्च ( वीएनआई/सुनील कुमार)मॉ नन्ही बच्ची को अपने बचपन की कहानी सुना रही है, कैसे बचपन मे उनके ऑगन मे फुदकती गौरैया को वे सब दाना खिलाते थे और उनकी मॉ कहती जाती थी गौरैया उन सब की दोस्त होती है उसे 'आ आ' कह कर बुलाते उन्हे दाना खिलाये घर के ऑगन् मे लगे पीपल के पेड़ पर बने गौरैया के घौंसले के नीचे दाना और पानी रखे, लेकिन नन्ही को समझ ही नही आ रहा है आखिर गौरैया कौन सा पक्षी होता है वो कैसी होती है उसने अपने फ्लेट मे उसे कभी नही देखा.इंसान की दोस्त गौरैया की पर्यावरण संरक्षण में खास भूमिका है, लेकिन कहा गायब हो गई गौरैया। एक वक्त था, जब पेड़ो पर,घरो के सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते और गौरैया घरो के ऑगन मे फुदकती हुई दिखाई देती थी। लेकिन दुखी की बात है कि गौरैया गायब होती जा रही है. उसकी आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी आई है। ब्रिटेन की 'रायल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस' ने इसे 'रेड लिस्ट' में डा ला है। दुनियाभर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है। गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है। गौरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है, लेकिन इसे वीवरपिंच परिवार का भी सदस्य माना जाता है। इसकी लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है। इसका वजन 25 से 35 ग्राम तक होता है। यह अधिकांश झुंड में ही रहती है। यह अधिकतम दो मील की दूरी तय करती है। गौरैया को अंग्रेजी में पासर डोमेस्टिकस के नाम से बुलाते हैं। पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका भी है। दुनियाभर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मो. ई. दिलावर के प्रयासों से इस दिवस को ्हमारी अपनी गौरैया के लिए रखा गया। 2010 में पहली बार यह दुनिया में मनाया गया। गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी है। गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है। यह इंसान और उसकी बस्ती के पास अधिक रहना पसंद करती है। पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पाई जाती है। यह अधिक वजनी नहीं होती है। इसका जीवन काल दो साल का होता है। यह पांच से छह अंडे देती है। ्बस्तियो मे गौरैया इंसान की साथी रही है। शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एशिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है। इसकी प्राकृतिक खूबी है कि यह इंसान की सबसे करीबी दोस्त है। बढ़ती आबादी के कारण जंगलों का सफाया हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में पेड़ काटे जा रहे हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाग-बगीचे खत्म हो रहे हैं। इसका सीधा असर इन पर दिख रहा है। गांवों में अब पक्के मकान बनाए जा रहे हैं, जिस कारण मकानों में गौरैया को अपना घांेसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल रही है। पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे। उसमें लकड़ी और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था। कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वातावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध करते थे। लेकिन आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती है। यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता है। शहरों में भी अब आधुनिक सोच के चलते जहां पार्को पर संकट खड़ा हो गया। वहीं गगन चुंबी ऊंची इमारतें और संचार क्रांति इनके लिए अभिशाप बन गई। शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल टावर एवं उससे निकलते रेडिएशन से इनकी जिंदगी संकट में फंस गई है। देश में बढ़ते औद्योगिक विकास ने बड़ा सवाल खड़ा किया है। फैक्ट्रियों से निकले केमिकल वाले जहरीले धुएं गौरैया की जिंदगी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। उद्योगों की स्थापना और पर्यावरण की रक्षा को लेकर संसद से सड़क तक चिंता जाहिर की जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह दिखता नहीं है। कार्बन उगलते वाहनों को प्रदूषण मुक्त का प्रमाण-पत्र चस्पा कर दिया जाता है, लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है। गौरैया की घटती संख्या पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का कारण है। इस पक्षी को बचाने के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कोई खास पहल नहीं दिखती है। दुनियाभर के पर्यावरणविद् इसकी घटती आबादी पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। खेती में रसायनिक उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग बेजुबान पक्षियों और गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। आहार भी जहरीले हो चले हैं। केमिलयुक्त रसायनों के अधाधुंध प्रयोग से कीड़े मकोड़े भी विलुप्त हो चले हैं, जिससे गौरैया को भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है। उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़े-मकोड़े समाप्त हो चले हैं, जिससे गौरैयों को भोजन नहीं मिल पाता है। हमारे आसपास के हानिकारण कीटाणुओं को यह अपना भोजना बनाती थी, जिससे मानव स्वस्थ्य और वातावरण साफ-सुथरा रहता था। दूसरा बड़ा कारण मकर संक्रांति पर पतंग उत्सवों के दौरान काफी संख्या में हमारे पक्षियों की मौत हो जाती है। पतंग की डोर से उड़ने के दौरान इसकी जद में आने से पक्षियों के पंख कट जाते हैं। हवाई मार्गो की जद में आने से भी इनकी मौत हो जाती है। दूसरी तरफ, बच्चों की ओर से चिड़ियों को रंग दिया जाता है, जिससे उनका पंख गीला हो जाता है और वह उड़ नहीं पाती। हिंसक पक्षी जैसे बाज वगैरह हमला कर उन्हें मौत की नींद सुला देते हैं। वहीं मनोरंजन के लिए गौरैया के पैरों में धागा बांध दिया जाता है। कभी-कभी धागा पेड़ों में उलझ जाता है, जिससे उनकी जान चली जाती है। दुनियाभर में कई तरह के खास दिन हैं ठीक उसी तरह 20 मार्च का दिन भी गौरैया संरक्षण के लिए निर्धारित है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस की शुरूआत महाराष्ट्र से हुई। गौरैया गिद्ध के बाद सबसे संकटग्रस्त पक्षी है। दुनियाभर में प्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई. दिलावर नासिक से हैं। वह बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जुड़े हैं। उन्होंने यह मुहिम वर्ष 2008 से शुरू किया। आज यह दुनिया के 50 से अधिक मुल्कों तक पहुंच गई है। गौरैया के संरक्षण के लिए सरकारों की तरफ से कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखती है। हालांकि उप्र में 20 मार्च को गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में रखा गया है। दिलावर के विचार में गौरैया संरक्षण के लिए लकड़ी के बुरादे से छोटे-छोटे घर बनाएं जाएं और उसमें खाने की भी सुविधा भी उपलब्ध हो। गौरैया के विलुप्त होने का कारण वे बदलती आबोहवा और केमिकल के बढ़ते उपयोग को मानते हैं। वह कहते हैं कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों में पक्षियों का ब्यौरा रखा जाता है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। कुछ सालों से उनकी संस्था गौरैया को संरिक्षत करने वालों को स्पैरो अवार्डस देती है। शहरों और ग्रामीण इलाकों में घोसलों के लिए सुरक्षित जगह बनानी होगी। उन्हें प्राकृतिक वातावरण देना होगा।

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Connect with Social

प्रचलित खबरें

© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india