तो नही हो रहा है उत्तरप्रदेश चुनाव मे समाजवादी पार्टी का अजीत सिंह की पार्टी से गठजोड़

By Shobhna Jain | Posted on 19th Jan 2017 | VNI स्पेशल
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लखनऊ,19 जनवरी(वी एन आई) समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव मे अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल से किसी तरह के गठजोड़ से इनकार किया है. हफ्तों की बातचीत के बाद भी पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के बीच पहुंच रखने वाली आरएलडी पार्टी के साथ किसी तरह के समझौते पर नहीं पहुंचा जा सका है.वैसे समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में महागंठबंधन बनने की संभावना भी लगभग खत्म सी गयी है, बल्कि वहां सपा व कांग्रेस दो बड़े दल ही सीट शेयर कर लड़ेंगे. समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता व मुख्यमंत्री अखिलेश के करीबी किरणमंय नंदा ने आज कहा है कि उनकी पार्टी का विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से सीटों का तालमेल होगा, उन्होंने अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल से किसी तरह के गठजोड़ से इनकार किया है. किरणमय नंदा ने कहा कि हम जल्द कांग्रेस से गंठबंधन का एलान कर देंगे और हमारे बीच कई चीजें लगभग तय हो गयी हैं. किरणमय नंदा ने आज समाजवादी पार्टी की छह घंटे चली मैराथन बैठक के बाद एलान किया कि उनकी पार्टी किसी क्षेत्रीय दल से गठजोड़ नहीं करेगा और सिर्फ व सिर्फ कांग्रेस से गंठबंधन होगा. उन्होंने कहा कि हमने पहले व दूसरे चरण के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम पक्के कर लिये हैं और कांग्रेस भी अपना नाम तय करे. उधर, रालोद नेता त्रिलोक त्यागी ने कहा कि पूर्व में समाजवादी पार्टी ने हमसे बात की थी, लेकिन हाल के दिनों में उन्होंने गठजोड़ पर कोई बात नहीं की है. रालोद प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा है कि हम सीट चाहते हैं पर अबतक हमारा समझौता नहीं हुआ है. उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता पश्चिम उत्तरप्रदेश में प्रभाव रखने वाले चौधरी अजीत सिंह को अपने गठजोड़ में शामिल करना चाहते थे, ताकि वहां जाट वोटों का उसे लाभ हो. सूत्रों का कहना है कि अजीत सिंह अपनी पार्टी के लिए महागंठबंधन में 30 सीटें चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता 20 सीटें देने के लिए तैयार हैं. सूत्रों का यह भी कहना है कि अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संपर्क में हैं. हालांकि समाजवादी पार्टी इसके लिए इच्छुक नहीं रही है और वह इस मामले को कांग्रेस के ऊपर टाल रही है. दरअसल, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान मुसलिम व जाट समुदाय आमने-सामने आ गये थे. उस दंगे में 60 लोगों की मौत हुई थी और 40 हजार लोग विस्थापित हुए थे. समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि ऐसे में जाट पार्टी की रूप में पहचान रखने वाली रालोद से गठजोड़ से उसका मजबूत वोट बैंक मुसलिम प्रभावित हो सकता है. नंदा ने आज मीडिया से कहा, हमारा घोषणापत्र तैयार है, हम चुनाव के लिए तैयार हैं. हमारा गठबंधन सिर्फ कांग्रेस के साथ हो रहा है. हम अखिलेश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने सीधे शब्दों में कहा कि रालोद के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा. 300 सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ेगी और शेष सीटों पर कांग्रेस. गौरतलब है कि च अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की घोषणा कर दी है. उन्होंने यह भी कहा है कि वे मिलकर 403 में से 300 सीटें हासिल कर लेंगे. मंगलवार को कांग्रेस ने भी पुष्टि की थी कि औपचारिक रूप से इस गठबंधन की घोषणा दो या तीन दिन में हो जाएगी. मीडिया रिपोर्टो के अनुसार किरणमय नंदा ने कहा कि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर (जिसे अजीत सिंह का गढ़ माना जाता है) दंगों के बाद सपा का जाट पार्टी से हाथ मिलाने का मतलब इलाके के मुसलमानों को खुद से दूर करना है. हिंदू-मुसलमानों के बीच हुए तनाव में करीब 60 लोग मारे गए थे और हज़ारो लोग बेघर हो गए थे. उधर बसपा अपनी पार्टी के दिग्‍गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफजल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में युवा मुस्लिम चेहरे की तरह पेश कर रही है. 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने केवल 9 सीटें जीती थीं. दो साल बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में जाटों का बड़ा तबका बीजेपी के साथ हो लिया. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटरों में से 17 फीसदी जाट हैं और अब वो बीजेपी से इस बात को लेकर नाराज हैं कि पार्टी उन्‍हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्‍थानों में आरक्षण पाने वाली जातियों में शामिल नहीं करा सकी. मुजफ्फरनगर में हाल ही में हजारों की संख्‍या में जुटे जाटों से उनके नेताओं ने बीजेपी को समर्थन नहीं देने की अपील की थी. सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने मजबूत जाट नेताओं का समर्थन हासिल करने के लिए उनसे अनौपचारिक बातचीत शुरू भी कर दी है. बीजपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने उम्‍मीदवारों की घोषणा कर चुकी है, जिसका मतलब है कि अबर अजित सिंह के साथ गठबंधन होता भी है तो राज्‍य के उन भागों के लिए होगा जहां बाद में चुनाव होने हैं. और उनकी तरफ से दिखाई जा रही दिलचस्पी से आरएलडी के हौसले बुलंद होते दिख रहे हैं.

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